जौनपुर और आलू का अत्यंत ही मधुर सम्बन्ध है, यहाँ पर आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। 16वी सदी में यूरोप को आलू का परिचय दक्षिण अमेरिका (South America) से हुआ और वहां से भारत में यह 17वी सदी में आया। लेकिन भारत में आलू का सफलतापूर्वक उत्पादन 1990 के आस पास से हुआ, जब भारत आलू उत्पादक देश की कतार में चीन के बाद दूसरे स्थान पर रहा। आलू उत्पादक किसानों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिप्स (Chips) बनाने वाली कम्पनियों (Company) जैसे कि पेप्सिको (Pepsico) के उत्पादन में एक अहम भूमिका होती है। कंपनी और किसानों के बीच एक कॉन्ट्रैक्ट (Contract) होता है, जिसमें किसानों को अच्छे किस्म के बीज और खाद कंपनी मुहैया कराती है और उनके उत्पादित आलू को वो खरीदती भी है। इसके अलावा कंपनी उनकी फसल का बीमा भी करवाती है। समय समय पर कंपनी के अधिकारी किसानों के खेतों की मिट्टी और उगती फसलों की जांच करते रहते हैं। एक तरह से किसानों के लिए यह एक फायदे का सौदा है, इसमें किसान अपनी फसल निश्चिन्त होकर उगाते हैं। लेकिन इसके कुछ नुकसान भी होते हैं।
किसान अपनी फसल को कंपनी के अलावा कहीं और नहीं बेच सकता, उसे कंपनी के निर्धारित मूल्य पर ही अपनी फसल को कंपनी को बेचना होता है, कई बार खराब बीज के कारण उत्पादन भी खराब हो जाता है और कंपनी उस उत्पादन को नहीं खरीदती और इस हालात में किसानों को फिर उसके लिए बाज़ार ढूंढने में बड़ी परेशानी होती है, इत्यादि। इस कॉन्ट्रैक्ट में ज्यादातर मध्य वर्ग के किसान शामिल हैं, जो अपने लिए आलू के उत्पादन के साथ साथ बाज़ार के लिए भी काफी उत्पादन कर लेते हैं। हाल ही में गुजरात के कुछ किसानों ने कॉन्ट्रैक्ट का उल्लघंन किया था। यह किसान पेप्सिको कंपनी द्वारा आरक्षित आलू के उत्पाद को बाज़ार में बेच रहे थे। कंपनी ने उन किसानों पर एक करोड़ से अधिक का जुर्माना लगाया। लेकिन किसान संगठनों ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई और परिणामस्वरूप कंपनी ने उन किसानों को अपने कॉन्ट्रैक्ट में शामिल कर, उन्हें एक नए किस्म के आलू (एफ सी 5) (FC 5) का उत्पादन करने और उसे कंपनी को बेचने के लिए मंजूरी दे दी।
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