आसमान में उड़ते हुए पक्षी को देख हम में से अधिकांश का मन पक्षियों की तरह अपने पंखों को फैलाकर आजादी से ऊंची उड़ान भरने का करता है। हमारे द्वारा आकांक्षाओं और हमारी आशाओं को हमारे सपनों के साथ जोड़ दिया जाता है, जैसे की मानो आकाश में उड़ान भरने की हमारी इच्छा हमारे सांस लेने जितना महत्वपूर्ण है। यदि हम मानव के प्यार, स्वतंत्रता, मुक्ति, पारगमन की लालसा में से किसी पर विचार करें, तो हमें पक्षियों के जीवन के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन खुद आजादी की लालसा रखने के बाद भी हम पक्षियों को पिंजरे में कैद करके क्यों रखते हैं? कौन या क्या निर्धारित करता है कि एक पालतू जानवर क्या है? ऐतिहासिक रूप से देखा जाएं तो इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट है। पिछले समाजों के पास हमारी तुलना में पालतू पशु को रखने का व्यापक दृष्टिकोण था।
शोधकर्ताओं का मानना है
ऐसे ही पक्षियों को 4,000 साल पहले उनकी सुंदरता के लिए पहली बार पालने के लिए कैद किया गया था। इससे पहले, मानव द्वारा पक्षियों को रात के खाने के रूप में पाला जाता था। मिस्र के चित्रलिपि दर्शाते हैं कि शायद कबूतर और तोते सहित कई अन्य को सबसे पहले पालतू पक्षी के रूप में रखा गया था। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें सबसे पहले पालतू पक्षी कब बनाया गया था। मानव की पसंद के चलते पक्षियों की कई प्रजातियों को कई पीढ़ियों के लिए कैद में रखकर पालन पोषण किया गया है। उदाहरण के लिए, पेरिस फ्रिल्ड कैनरी जंगल में कहीं भी नहीं पाई जाती है और अपने अनोखे झालरदार पंखों की वजह से शायद ही ये जंगलों में जीवित रह सकें। द्विजाति मैकॉव अपनी रंगीन विशेषताओं को बनाए रखते हुए एक समवेदनापूर्ण और शांत पालतू मैकॉव को खोजने के लिए प्रजनकों के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, कैटलिना मैकॉव, दो स्थापित प्रजातियों, ब्लू और गोल्ड मैकॉव और स्कारलेट मैकॉव के बीच एक क्रॉस (cross) है।
प्राचीन ग्रीस में, मियाना को पालतू जानवर के रूप में अभिजात वर्ग द्वारा पाला जाता था। वहीं प्राचीन यूनानी समाज में पैराकेट्स को पालतू जानवरों के रूप में भी रखा जाता था। अलेक्जेंडराइन पैराकेट का नाम अलेक्जेंडर द ग्रेट के नाम पर रखा गया। अभिजात वर्ग के घरों में पालतू पक्षी (अधिकांशतः तोता) की देखभाल करने के लिए एक दास को रखा जाता था। जाहिरा तौर पर, उस समय तोते को बात करते देखना टीवी देखने के बराबर हुआ करता था। मध्यकालीन और पुनस्र्त्थान यूरोप में, पक्षियों को केवल शाही या अमीर लोगों द्वारा रखा जाता था।
15 वीं शताब्दी में, कैनरी एक नियमित आधार पर पालतू पक्षी के रूप में पाले जाने वाला दूसरा पक्षी था। जबकि खेल के लिए कबूतरों को पाला जाने लग गया था, वहीं कैनरी को एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए पाला गया था: वे खदानों में जहरीली गैसों का पता लगाने के लिए कैनरी को पहले भेजते थे, यदि कैनरी पार हो गई तो वे भी सुरक्षित रूप से पार हो सकते थे। वहीं प्राचीन नाविक, पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के बेबीलोनियन, हिंदू व्यापारी, पॉलिनेशियन, वाइकिंग्स अक्सर लंबी समुद्र यात्रा पर पक्षियों को कैद करके अपने साथ ले जाते थे। और वे अक्सर जमीन की खोज करते समय एक पक्षी को छोड़ते थे और उसकी उड़ान का निरीक्षण करते थे। यदि पक्षी को दूर से भूमि दिख जाती थी तो वह उस दिशा में उद जाता है और दोबारा वापस नहीं आता था। यदि उसे कोई जमीन नहीं दिखती थी, तो वह जहाज पर वापस अपने पिंजरे में लौट जाता।
शोधकर्ताओं का मानना है
रेडियो और रिकॉर्ड किए गए संगीत के आने से दशकों पहले, घर के मनोरंजन के लिए पालतू पक्षी सबसे लोकप्रिय हुआ करते थे। (वर्तमान समय में केवल अमेरिका के लगभग छह प्रतिशत घरों में पक्षियों को पालतू जानवर के रूप में रखा जाता है)। सबसे अधिक आकर्षक पक्षियों में जंगली यूरोपीय और उत्तरी अमेरिकी प्रजातियां शामिल थीं जैसे कि लिनेट, थ्रश, नाइटिंगेल, यूरोपीय रॉबिन, बुलफिनिच, गोल्डफिंच, बैंगनी फ़िंच, मॉकिंगबर्ड, कार्डिनल, ग्रोसिन, और बंटिंग, लेकिन इन सब में अब तक सबसे लोकप्रिय कैनरी रही थी। वहीं पड़ोस में छोटी पक्षियों की दुकानें उन्नीसवीं सदी के शहरों में उतने ही सामान्य हुआ करती थीं, जितनी एक नई की दुकाने हुआ करती थी। साथ ही कई नई की दुकानों में भी पक्षियों को बेचा जाता था।
प्राचीन काल में पक्षियों को मनुष्यों द्वारा विभिन्न उद्देश्य के चलते पालतू बनाया गया था। लेकिन की वर्तमान समय में यह आवश्यक है, हालांकि एक पक्षी खरीदने का विचार बेशक आकर्षक हो सकता है, परंतु क्या आप जानते हैं बाजारों में बिकने वाले ये पक्षी किस हालातों से गुजरकर वहाँ पहुंचते हैं। 1992 में अमेरिका में वाइल्ड बर्ड पॉपुलेशन एक्ट (Wild Bird Population Act) जो जंगली पक्षियों को पालतू बनाने से रोकने के लिए बनाया गया था, के पारित होने के बावजूद भी कई पक्षियों को जंगली प्रजातियों के अवैध व्यापार के चलते काफी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इन पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवासों से उठा लिया जाता है और फिर उनकी तस्करी की जाती है। इस संपूर्ण प्रक्रिया में पक्षियों को काफी क्रूरता का सामना करना पड़ता है, जैसे उन्हें पिंजरों में कैद किया जाता है और फिर उनके बच्चों को पालतू जानवरों की दुकानों में बेचा जाता है।
पक्षियों को पालतू रूप से रखने की लालसा के परिणामस्वरूप, अमेरिका में पालतू पक्षियों का अतिरिक्त भाग मौजूद है और इसके चलते अब अमेरिका में पालतू पक्षियों को शरणस्थान में छोड़ने की संख्या में भी वृद्धि देखी जा सकती है। पक्षी मिलनसार साथी तो बन सकते हैं, लेकिन कुत्ते और बिल्ली के मुकाबले उन्हें उच्च रखरखाव और घरेलू जीवन के आदी होने में काफी समय लगता है। वहीं एक बार पालतू बनने के बाद इन पक्षियों को जंगल में दुबारा छोड़ा नहीं जा सकता है। वाइल्ड बर्ड कंजर्वेशन एक्ट से पहले, सालाना 800,000 जंगली-पकड़े गए पक्षियों को पालतू व्यापार के लिए अमेरिका में आयात किया गया था। इस संख्या में उन पक्षियों का एक बड़ा हिस्सा शामिल नहीं है, जो परिवहन में ही मर गए थे। हालाँकि, वाइल्ड बर्ड कंज़र्वेशन एक्ट और लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम (जैसे सफ़ेद और पीला कॉकटू) से सुरक्षा के बावजूद, लाखों जंगली पक्षियों को अभी भी अवैध रूप से सीमा पार से तस्करी किया जा रहा है और काले बाजार में इनका कारोबार चल रहा है।
लेकिन तस्करों द्वारा बड़े पक्षियों, जैसे तोतों को कैसे लाया जाता है? जाहीर सी बात है सबसे क्रूर तरीके से। द एनिमल लॉ गठबंधन बताता है कि तोतों को टूथ पेस्ट ट्यूब, स्टॉकिंग्स, और टॉयलेट पेपर ट्यूब से लेकर दस्ताओं के डिब्बों और हबकैप आदि में छिपा हुआ पाया गया है। यात्रा के दौरान इन्हें यथासंभव शांत रखने के लिए आमतौर पर दवा दी जाती है या शराब दी जाती है। कुछ मामलों में, पक्षियों की चोंच को टेप द्वारा बाँध दिया जाता है। ये पक्षी 2-3 दिनों तक भूखे और प्यासे रहते हैं और कुछ तो यात्रा के दौरान दम तोड़ देते हैं। क्योंकि बहुत से लोग इस बात से अनजान होते हैं कि पक्षी हमारे पालतू जानवरों की दुकानों में कहाँ से लाए जाते हैं, तो वे जान लें कि ये जानवर क्रूर और अमानवीय प्रथाओं के शिकार होते हैं। आज, हालांकि अभी भी पालतू पक्षियों की मांग काफी है, लेकिन इन पक्षियों को बचाना काफी आवश्यक बन गया है।
वर्तमान समय में पूरे विश्व भर में कोरोना महामारी ने जीवन को काफी गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया है। क्योंकि यह केवल बीमारी को ही नहीं बल्कि भ्रम और भय को भी पैदा कर रही है। वहीं इस उभरती हुई बीमारी के संदर्भ में अभी भी ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनका अभी पता नहीं लग पाया है। ऐसे में अधिकांश पालतू जानवरों के मालिकों के मन में यह सवाल उत्पन्न हुआ है कि क्या विषाणु लोगों से उनके पालतू जानवरों तक पहुंच सकता है?
ऐसे में पालतू पक्षियों के संदर्भ में भी चिंता का उत्पन्न होना आम है। किंतु यदि पालतू पक्षियों की बात की जाएं तो इस बात का समर्थन करने के लिए ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो यह पुष्टि करे कि संक्रमण पालतू पक्षी में स्थानांतरित हो सकता है। यह देखते हुए कि पक्षी और स्तनधारी दो बड़े पैमाने पर अलग-अलग समूह हैं और विषाणु इस समय स्तनधारी प्रजातियों के बीच अच्छी तरह से स्थानांतरित नहीं हो पाया है, तो पक्षियों में स्थानांतरित होने की संभावना काफी कम है। प्रजाति-विशिष्ट होने के कारण कोरोना वायरस मनुष्यों से पालतू पक्षियों तक नहीं फैल सकता है।
चित्र सन्दर्भ:
पहले चित्र में एक चिड़ियाघर में बंदी पक्षी को दिखाया गया है। (youtube)
दूसरे चित्र में पिंजरे में एक तोता चित्रित है। (Wikipedia)
तीसरे चित्र में एक पिंजरे में पक्षियों की छाया को दर्शाया गया है। (Freepic)
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