भारत में प्राचीन काल में ऐसे कई खेलों का विकास हुआ, जो लोगों द्वारा बहुत अधिक पसंद किये गये। राजाओं के बीच खेलों से सम्बंधित कई कहानियां हैं, जोकि पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित हो रही हैं। एक विशेष कहानी उस राजा के बारे में बताती है, जिसने सुंध्री और मुंध्री नामक दो चूहों को खेल के लिए प्रशिक्षित किया। कहानियों के अनुसार राजा ने, सुंध्री और मुंध्री का उपयोग अपने प्रतिद्वन्दी को हराने के लिए किया। दोनों चूहे प्रतिद्वन्दी का ध्यान आकर्षित किये बिना गोटियों (Pieces) को स्थानांतरित कर देते थे। दरअसल इस खेल का नाम चौपर है, जिसे चौपड़ या अन्य नामों से भी जाना जाता है। चौपड़ एक क्रॉस और सर्कल बोर्ड (Cross and Circle board) खेल है, जो कुछ हद तक भारत में खेले जाने वाले अन्य खेल 'पचीसी' के समान है। लकड़ी के प्यादों और छह कौडियों (Cowrie Shells) के साथ बोर्ड ऊन या कपड़े से बना होता है, जो प्रत्येक खिलाड़ी की चाल को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। विभिन्न विविधताओं के साथ यह पूरे भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में खेला जाता है। कुछ मायनों में यह पचीसी, पारचेसी और लूडो (Ludo) के समान है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अधिकांश गांवों में यह खेल आज भी पुराने व्यक्तियों द्वारा खेला जाता है। इस खेल को महाकाव्य महाभारत में युधिष्ठिर और दुर्योधन के बीच खेले जाने वाले खेल का रूपांतर माना जाता है। ऐसे कई संदर्भ हैं, जो यह बताते हैं कि इस खेल को हिंदू देवता शिव और पार्वती ने भी खेला।
चौपड़ बोर्ड पारंपरिक रूप से क्रॉस के आकार का एक कपड़ा होता है। क्रॉस की प्रत्येक भुजा को तीन स्तंभों में और प्रत्येक स्तंभ को आठ वर्गों में विभाजित किया गया है। गोटियां आमतौर पर लकड़ी के बने होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के पास चार गोटियां होती हैं। अधिकतम चार खिलाड़ी इस खेल को खेलते हैं, तथा प्रत्येक क्रॉस की एक भुजा के सामने बैठता है। क्रॉस के केंद्र को ‘घर’ कहा जाता है। प्रत्येक खिलाड़ी की गोटी के लिए क्रॉस की प्रत्येक भुजा पर केंद्र स्तंभ को ‘होम कॉलम (Home column)’ कहते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के लिए शुरुआती बिंदु उसके होम कॉलम के बाईं ओर स्थित स्तंभ पर स्थित फूल आकृति (Flower Motif) होती है। प्रत्येक खिलाड़ी को अपनी चार गोटियों को शुरुआती बिंदु से खेल में प्रवेश कराना होता है।
गोटियां बाहरी परिधि स्तंभों के चारों ओर एक दक्षिणावर्त दिशा में घूमती हैं। इससे पहले कि कोई खिलाड़ी अपनी किसी भी गोटी को ‘घर’ ला सके, उसे दूसरे खिलाड़ी की कम से कम एक गोटी को हटाना होता है, ऐसा करना तोड़ (Todh) कहा जाता है। खिलाड़ी की केवल अपनी गोटियां ही उसके होम स्तम्भ में प्रवेश कर सकती हैं। शुरू करने के लिए, प्रत्येक खिलाड़ी को कौडियां उछालनी होती है। जिसका स्कोर (Score) उच्चतम होता है, वह खिलाड़ी पहले शुरू करता है। एक बार जब गोटी फूल की आकृति को पार कर लेती है, तो यह इंगित करता है कि वो गोटी अब सुरक्षित है।
पच्चीसी, चौपड से ही मिलता जुलता क्रॉस और सर्कल बोर्ड खेल है तथा इसकी उत्पत्ति मध्यकालीन भारत में हुई जिसे ‘भारत के राष्ट्रीय खेल’ के रूप में भी वर्णित किया गया था। यह एक सममित क्रॉस के आकार के बोर्ड पर खेला जाता है। खेल का नाम हिंदी शब्द पच्चीस से लिया गया है, जिसका अर्थ है संख्या पच्चीस, जोकि खेल का सबसे बड़ा स्कोर है। इस खेल के अन्य संस्करण भी हैं जिनमें सबसे बड़ा स्कोर तीस होता है। माना जाता है कि इन खेलों में से किसी एक का पहला वर्णन 16वीं शताब्दी में किया गया था, जब आगरा और फतेहपुर सीकरी में मुगल सम्राट अकबर के दरबार में चौपड एक सामान्य जुआ खेल था। सम्राट स्वयं इस खेल के आदी थे तथा उन्होंने फतेहपुर सीकरी में अपने महल के आंगन में एक विशाल बोर्ड का निर्माण भी किया जहां उन्होंने तथा उनके दरबारियों ने इस खेल का आनंद लिया। पच्चीसी के खेल को गरीब आदमी का चौपर कहा जा सकता है। स्टिक (Stick) पासे के साथ खेलने के बजाय, इसे कौडी के साथ खेला जाता है। खेल में उपयोग की जाने वाली कौड़ियों की संख्या पाँच, छः या सात हो सकती है।
यह खेल अकबर युग से कितने समय पहले से खेला जा रहा था, यह कहना मुश्किल है लेकिन अकबर के वजीर और इतिहासकार अबुल फज़ल के अनुसार हिंदुस्तान के लोग पुराने समय से इस खेल के शौकीन रहे हैं। अबुल फ़ज़ल बताते हैं कि कैसे खेल को सोलह टुकड़ों, तीन पासों और एक क्रॉस के आकार के बोर्ड के साथ खेला जाता था। उन्होंने खेल के विभिन्न नियमों और तरीकों को भी अपने विवरण में शामिल किया। चौपर के खेल के अन्य संदर्भ या विवरण 19वीं और 20वीं शताब्दी में दिखाई देते हैं, लेकिन अबुल फजल के बाद सबसे महत्वपूर्ण विवरण रिचर्ड कार्नेक टेम्पले (Richard Carnac Temple) द्वारा दिया गया। विशेष रूप से दिलचस्प तथ्य यह है कि यह लंबे पासे के साथ खेला जाता है, जो दक्षिण पूर्व एशिया में आम हैं। खेल में ऐसे तीन लंबे पासे का इस्तेमाल किया गया था। खेल के विभिन्न रूपांतर प्राचीन काल में इस खेल की लोकप्रियता की ओर इशारा करते हैं।
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