मुस्लिमों के लिए हज यात्रा का मतलब पैगंबर मोहम्मद साहब द्वारा 632 AD में की गई 'विदाई तीर्थ यात्रा' को दोहराना होता है। यह इस्लामी विश्वास का केंद्रीय आधार है, जिसका मतलब है पाप के रास्ते पर चलने वालों का शुद्धिकरण कर उन्हें अल्लाह के नजदीक लाना। यह हर मुस्लिम के लिए अनिवार्य माना जाता है। अक्सर हज के लिए जाने वालों से सुना है कि इस यात्रा के लिए यह जरूरी होता है कि आप पर किसी का कुछ बकाया ना हो।
इस वर्ष सऊदी अरब ने बहुत प्रभावशाली तरीके से दुनिया के तमाम मुसलमानों के लिए हज यात्रा स्थगित कर दी है। सिर्फ सऊदी अरब में रह रहे मुस्लिम ही इस यात्रा में शामिल हो सकेंगे। यह सारी व्यवस्थाएं कोरोना वायरस के प्रकोप को ध्यान में रखते हुए की गई हैं। लेकिन यह पहला मौका नहीं है, जब हज यात्रा विश्व स्तर के लिए प्रतिबंधित की गई है। ऐसे में अनायास ही पुरानी सामान्य हज यात्राओं के आंकड़े याद आ जाते हैं, जब भीड़ की भीड़ चलते हुए यात्रा पूरी करती थी। हज यात्राओं के स्वरूप परिवर्तन का इतिहास इस साल की शुरुआत में, सऊदी प्रशासन ने ऐसे संकेत देने शुरू किए थे कि कोरोना वायरस महामारी को नजर में रखते हुए, सुरक्षात्मक कारणों से हज यात्रा बड़े पैमाने पर करना संभव ना हो, यह संकेत भी दिए कि साल भर धार्मिक यात्राएं सीमित तरीके से की जाएगी। नाटकीय ढंग से बड़े पैमाने पर हज पर रोक से इस देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा झटका लगा है। वैश्विक स्तर पर तमाम व्यवसायों जैसे कि हज ट्रेवल उद्योग पर चोट पहुंची है। लाखों मुस्लिम हर वर्ष सऊदी अरब की यात्रा करते हैं। 1932 में सऊदी साम्राज्य की स्थापना से लेकर यह तीर्थ यात्रा कभी स्थगित नहीं की गई । लेकिन अगर वैश्विक इस्लाम का अध्ययन करें तो 1400 वर्षों की धार्मिक यात्राओं में बहुत से उदाहरण ऐसे मिलेंगे जब हथियारबंद लड़ाइयों, बीमारियों या सिर्फ राजनीति के कारण उनकी योजना में परिवर्तन किए गए। हथियारबंद संघर्ष सबसे पुरानी एवं प्रमुख रुकावट हज यात्रा में 930 AD में आई, जब इस्लामियों के एक अल्पसंख्यक शिया समुदाय ने मक्का पर धावा बोला क्योंकि वह हज को एक बुत परस्त रिवाज मानते थे। उन्होंने तमाम तीर्थ यात्रियों को मार डाला और काबा के उस काले पत्थर को लेकर फरार हो गए जो मुस्लिमों के विश्वास के अनुसार जन्नत से आया है। इसके बाद हज यात्रा स्थगित हो गई। जब अब्बासीद(Abbasid) वंश ( जिसने 750 -1258 AD में उत्तर अफ्रीका, मध्य पूर्व एशिया से लेकर आधुनिक भारत तक फैले विशाल साम्राज्य पर शासन किया) ने फिरौती अदा करके काबा का काला पत्थर 20 साल बाद वापस हासिल किया। राजनीतिक विवाद राजनीतिक सहमति और विवाद अक्सर इसलिए होते थे क्योंकि हज यात्रा जिन स्थानों और रास्तों से गुजरती थी, वहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। 983 AD में, बगदाद और मिस्र के बीच लड़ाई हुई। मिस्र के फ़तिमिद शासकों का दावा था कि वे इस्लाम के सच्चे नेता हैं और इसलिए वे इराक व सीरिया में अब्बासीद वंश के शासन का विरोध करते थे। इन दोनों के बीच की रस्साकशी में 8 साल(991 AD तक) विभिन्न धार्मिक यात्राएं मक्का मदीना से होती रही। उसके बाद,1168 AD में फ़तिमिद के पतन के बाद, मिस्र के लोग हिजाज में घुस नहीं सके। यह भी कहा जाता है कि 1258 AD में बगदाद पर हुए मंगोल आक्रमण के बाद बरसों तक बगदाद से किसी ने हज नहीं किया। अनेक वर्षों बाद जब नेपोलियन की सेनाओं ने इस क्षेत्र पर चढ़ाई की और इस क्षेत्र पर ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रभावों को देखा तो बहुत ही धार्मिक यात्राओं को हज करने से 1798 और 1801 AD के बीच रोका । बीमारियां और हज आज की तरह ही पहले भी बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं ने हज के रास्ते में रुकावट डाली है। पहली बार 967 AD में प्लेग महामारी फैलने के कारण हज स्थगित हो गया। 19वीं शताब्दी में अनेक वर्षों तक हैजा फैलने से हजारों तीर्थयात्री अपने जीवन से हाथ धो बैठे। 1858 में पवित्र शहर मक्का और मदीना में हैजा फैलने पर हजारों हाजियों को जबरन लाल सागर की सीमा पर ले जाकर संगरोध(क्वॉरेंटाइन) किया गया। हाल के वर्ष हाल के वर्षों में भी हज यात्रा मिलते जुलते कारणों से प्रभावित होती रही है। मिडिल ईस्ट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम(Middle East Respiratory सिंड्रोम (MERS)) के चलते 2012 और 2013 में सऊदी प्रशासन ने बीमार और बूढ़े लोगों को हज ना करने की सलाह दी। समकालीन राजनीति और मानव अधिकार मुद्दों ने भी इसमें दखल दिया कि कौन हज करने लायक है। 2017 में 1.8 मिलियन कतर के मुस्लिमों को हज नहीं करने दिया गया। इसके पीछे सऊदी अरब और तीन अन्य अरब देशों द्वारा लिया गया निर्णय था, जिसका आधार गंभीर राजनायिक संबंध और तमाम भू राजनीतिक प्रकरणों पर मतभेद थे। उसी साल सिया सरकारों जैसे ईरान ने आरोप लगाया कि सऊदी सुन्नी प्रशासन उन्हें हज करने से रोकता है। हज यात्रा के लिए उत्सुक मुस्लिमों को इस तरह यात्रा का स्थगन निश्चित रूप से निराश करेगा। यह फैसला उन्हें मोहम्मद साहब की उस नसीहत की याद दिला रहा है, जो उन्होंने महामारी के दौरान यात्रा के लिए दी है- ‘अगर किसी जमीन पर प्लेग फैलने की खबर मिले, तो वहां दाखिल ना हो, लेकिन अगर प्लेग ऐसी जगह फैले जहां आप हैं, तो उस जगह को ना छोड़ें।’© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.