जो खग हौं बसेरो करों मिल कालिंदी कूल कदम्ब की डारन
रसखान
Haldina cordifolia दक्षिण एशिया, पूर्वी भारत से लेकर यूनान और वियतनाम, दक्षिण में मलेशिया में पाए जाने वाला फूलदार वृक्ष होता है। हिंदी में इसे कदम या कदम्ब भी कहते हैं। वहीं कदम का पेड़ जिसके नीचे रचाई कृष्ण की लीलाओं के पद सूरदास ने लिखे और रसखान तो अपना सब कुछ भुला कर कृष्णमय हो गए। वह पक्षी बनकर कदम के पेड़ पर रहने की इच्छा रखते हैं थे ताकि नीचे चल रही कृष्ण लीला का आनंद ले सकें।Haldina cordifolia या कदंब का पेड़ 20 मीटर ऊंचा होता है। फूल की वैसे तो कोई पहचान नहीं होती, लेकिन जब सब मिलकर बड़े गुच्छों में खिलते हैं जिसका वृत्त 20-30 मिलीमीटर होता है तो उनका खिलाव देखने वाला होता है। आमतौर पर इनका रंग पीला होता है, कभी-कभी गुलाबी रंग के छींटे दिखाई देते हैं। ज्यादातर जाटों के सूखे मौसम में यह फूल खिलते हैं। इस पेड़ की छाल कीटाणु रोधी (antiseptic) होती है।
कदंब: सामान्य विशेषताएं
कदंब का पेड़ झड़ने वाला और 18 -30 मीटर तक ऊंचा होता है। शीर्ष पर फूलों का एक बड़ा मुकुट का जमाव होता है । लंबे, सीधे, साफ तने का व्यास 150 सेंटीमीटर होता है जो काफी मजबूत होता है और आधार पर लंबी धारियां होती है। पिछौटे (buttresses) कभी-कभी अनियत और अद्भुत आकार के होते हैं। जब यह आगे बढ़ने लगता है तब यह मोटे तने की शक्ल ले लेता है। उसमें तमाम शाखाएं और एक मुकुट की तरह का आकार वृक्ष ले लेता है। पेड़ों को जंगल से उसकी उपयोगी लकड़ी के कारण काटकर लाया जाता है जिसकी स्थानीय रूप से ही बिक्री हो पाती है क्योंकि इसकी मात्रा कम होती है। इसके औषधीय गुणों के कारण भी इसे काटा जाता है और इसी काम के लिए श्रीलंका में इसकी खेती की जाती है।
परिवेश और विकास
कदंब का वृक्ष उष्णकटिबंधीय जलवायु में 1000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में सबसे अच्छी तरह विकसित होता है जहां साल भर दिन का तापमान 25-35 सेंटीग्रेड रहता हो, लेकिन 5-47 डिग्री सेंटीग्रेड तक का ताप बर्दाश्त किया जा सके। अगर तापमान माइनस 1 डिग्री या उससे नीचे चला जाता है तो पेड़ की मौत हो जाती है । क्षेत्र में सालाना बारिश 1000-2000 लेकिन 800-4500 मिली मीटर में भी पेड़ पनप जाता है। युवा पौधे मध्यम प्रकाश पसंद करते हैं लेकिन जैसे जैसे बड़े होते हैं, ज्यादा उजाले की मांग होने लगती है। भूमियों में कदम की बढ़वार हो जाती है, फिर भी गहरी, उर्वर परिस्थितियों में अच्छी बढ़वार होती है। जमीन होनी चाहिए लेकिन उसमें पानी रुका हुआ नहीं होना चाहिए। कदम के लिए आदर्श ph 5.5-6.5 के बीच होना चाहिए, 5-7.5 भी चल जाता है। अपने आकार के अनुपात में इस पेड़ में बहुत विशाल मूल प्रक्रिया( रूट सिस्टम) होता है जो इसे सूखे से बचाता है। पेड़ काटे भी जा सकते हैं। यह वृक्ष जंगल की आग के प्रतिरोधी (resistant) नहीं होते हैं।
औषधीय उपयोग
कदंब के पेड़ की छाल रोग रोधक और ज्वरनाशक होती है।
पौधे का रस घावों पर बाहर से लगाने से उसके कीड़े मर जाते है।
कदंब के पेड़ की जड़ों का आसव लेने से दस्त और पेचिश ठीक हो जाते हैं।
पत्तियों और छाल से बनी क्रीम से घाव ठीक हो जाते हैं।
कदम की छाल से बने काढे का 25-30 मिलीलीटर विभाजित खुराक में देने से भूख और पाचन की समस्या दूर हो जाती है।
इसी काढ़े की 40-50 मिलीलीटर की खुराक से त्वचा संबंधी रोग और बुखार ठीक हो जाते हैं।
काढ़े की 40-50 मिलीलीटर विभाजित खुराक दैनिक रूप से लेने से 1 सप्ताह में यकृत(liver) काम करना शुरू कर देता है और उपापचय(metabolism) मैं सुधार होने लगता है।
हरिद्रु: पीतदारू: स्यात पीतकाष्ठश्च पीतक:
कदंबक: सुपुष्पश्च सुराहव् पीतकद्रुम:
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