तुलसीदास कृत रामचरितमानस में आदि गंगा ( प्राचीन गंगा) के नाम से संदर्भित और सई नाम से लोकप्रिय नदी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। यह अपने उद्गम तक सूख चुकी है। पारसोई,450 लोगों की बस्ती वाला हरदोई जिले का एक गांव। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 180 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। जौनपुर शहर की, सांस्कृतिक महत्व के लिए विख्यात सई नदी विलुप्ति की कगार पर है । कैसे इसे फिर से नया जीवन दिया जा सकता है, आइए जानते हैं।
कहानी सही नदी की सई उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नदी गोमती की सहायक नदी है। इसका उद्गम हरदोई जिले के पास कोई गांव में पहाड़ की चोटी पर स्थित एक विशालकाय तालाब से हुआ है। क्षेत्र को उन्नाव से अलग करती है। रायबरेली के दक्षिण से होती हुई है पश्चिम में स्थित प्रतापगढ़ और जौनपुर तक पहुंचकर पूर्व में मुड़कर घुईसारनाथ धाम को छूती है। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिले सई नदी के तट पर स्थित है। शनिदेव धाम सई नदी के किनारे परसादीपुर में है। भक्तगण नदी में स्नान कर बाबा घुईसारनाथ का पूजन नदी के जल से करते हैं। हिंदू धर्म में से पवित्रतम नदियों में शुमार किया जाता है। पुराणों और रामचरितमानस में इसका संदर्भ दिया हुआ है। इसके धार्मिक महत्व के साथ साथ लाखों भारतीयों के लिए जीवन रेखा की तरह है जो इसके तटों पर स्थित है और दैनिक आवश्यकताओं के लिए सई पर निर्भर हैं। 35 वर्षीय ईट भट्टा मालिक मनोज कुमार याद करते हैं कैसे 2006 तक वह अपने गांव के झाबर ( तालाब) से सीधे पानी लेकर पी लेते थे। इधर के 10 वर्षों में यह पूरी तरह सूख चुका है और इसका पानी पीने योग्य नहीं रह गया है। यहां तक कि खेतों की सिंचाई तक के लायक नहीं है यह पानी। 2017 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आए, प्रदेश की बहुत सी दूसरी नदियों की तरह सई का भी कोई जिक्र राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में नहीं था। अपने उद्गम से 25 किलोमीटर आगे तक सई एक धारा में बहती है, जब तक कि यह रामपुर कोड़ा गांव तक नहीं पहुंच जाती। इसके जलभराव में खेती और निर्माण कार्यो ने इस के जल क्षेत्र पर कब्जा करके जमीन के पानी के स्रोत को सुखा डाला है। गोस्वामी तुलसीदास नदी का उल्लेख अपनी कई रचनाओं में किया है। 2005-06 तक इसके पानी से 500 मीटर तक फसलों की सिंचाई मानव निर्मित खाइयों की सहायता से होती थी और 1 किलोमीटर से अधिक में पंप द्वारा सिंचाई होती थी। आज नदी के एकदम किनारे स्थित खेती की जमीन की सिंचाई डीजल पंप से होती है। समस्याओं की बाढ़ जैसे-जैसे नदी का प्रवाह नीचे लखनऊ की ओर उतरता है, हरदोई जिले के दक्षिण में तेज कब्जों से बंद छोटी नदियां सई का आयतन अपने पानी से बढा देती हैं,जिससे उसका प्रवाह तीव्र हो जाता है। बनी के पास सई लखनऊ और उन्नाव जिलों में बंट जाती है,मानसून में इसकी स्थिति सबसे अच्छी होती है, लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं। पर्याप्त बारिश ना होने से पानी का स्तर गिर जाता है। छोटी नदियां फिर से बंद हो जाती हैं। आखिर पानी जब तक बढ़ेगा नहीं, नदी तो सुखी जाएगी। उत्तर प्रदेश: बारिश में भारी गिरावट हरदोई, उन्नाव और लखनऊ के बाद सई नदी रायबरेली, प्रतापगढ़ और जौनपुर होते हुए बहती है। इस प्रकार में 500 गांव, 715 किलोमीटर की यात्रा करके अंतिम रूप से जौनपुर में गोमती में मिल जाती है। गोमती बाद में गंगा से जुड़ जाती है। उत्तर प्रदेश के 6 जिलों से होते हुए सई अपरिष्कृत नगर निगम और औद्योगिक कचरे से प्रदूषित हो जाती है। पूरे मार्ग में इसमें 200 नालिया खुलती हैं। नदियां जो ऊंचे उद्गम स्थल से निकलती है, वह सदियों तक प्रवाह मान रह सकती हैं अगर मनुष्य इसमें बाधा ना डालें। अवैध कब्जे हटा दिए जाएं और पारंपरिक जमीनी पानी के स्रोत पानी उपलब्ध कराएं, तो सई नदी फिर से लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा बन सकती है। राजनीतिक प्राथमिकता में नहीं गोमती से भिन्न सई नदी नीति निर्माताओं के ध्यानाकर्षण के लिए गुहार लगा रही है लेकिन उनका ध्यान मंदिरों के घाटों के सौंदर्यीकरण पर तो है, खत्म होती नदी पर नहीं। सई नदी 6 जिलों की जीवन रेखा है लेकिन यह उस सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है जो नदियों की शपथ खाती हैं। अस्तित्व के लिए संघर्ष 2008 में अंतिम प्रयास सही के संरक्षण के लिए किया गया जब शारदा नहर से बनी के पास पानी निकालकर सई में छोड़ा गया। जो इस नदी से सिंचाई, पशुओं और पीने के पानी के लिए निर्भर है, उनके लिए यह बेनतीजा इंतजार है। अब प्रशासन तो नहीं, पर सामाजिक आंदोलन ही सई को बचा सकते हैं।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.