ग्रामीण क्षेत्रों से होने वाला पलायन एक ऐसी घटना या प्रक्रिया है जो न केवल शहरी क्षेत्रों को बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है। यह पलायन मुख्य रूप से विभिन्न सुविधाओं की तलाश में होता है। वर्तमान समय में ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या शहरों की ओर पलायन कर रही है, जिससे शहरीकरण अत्यधिक बढता जा रहा है। परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र खाली होते जा रहे हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन की यह घटना ग्रामीण उड़ान (Rural flight) या ग्रामीण निर्गमन या पलायन कहलाती है। यह एक प्रकार का पलायन पैटर्न (Pattern) है, जिसके अंतर्गत लोग गांवों को छोड़कर शहरी क्षेत्रों में जाकर बस जाते हैं। वर्तमान समय में, यह प्रक्रिया अधिकतर ऐसे क्षेत्रों में हो रही है, जहां कृषि का औद्योगिकीकरण हुआ है। पलायन तब और अधिक बढ जाता है जब ग्रामीण जनसंख्या में गिरावट आने की वजह से ग्रामीण सेवाओं उदाहरण के लिए उद्यमों और स्कूलों, का नुकसान होने लगता है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या की और भी अधिक कमी होने लगती है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में बचे लोग सुविधाओं की तलाश में कहीं अन्य स्थानों विशेषकर शहरों में जाने लगते हैं। स्थानीय क्षेत्रों में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन औद्योगिक क्रांति से पूर्व हुआ। 19वीं शताब्दी के अंत में जब यूरोप (Europe) में औद्योगिक क्रांति शुरु हुई तब खाद्य आपूर्ति बढ़ने व स्थिर होने लगी जिसके प्रभाव से औद्योगिक केंद्रों का उदय हुआ, तथा शहरों ने बड़ी आबादी का वहन करना शुरू किया। इस प्रकार ग्रामीण पलायन की शुरुआत बड़े पैमाने पर होने लगी। 20वीं शताब्दी के दौरान औद्योगीकरण पूरी दुनिया में फैल गया और शहरीकरण के विस्तार में वृद्धि होने लगी। मशीनीकरण ने छोटे, श्रम प्रधान पारिवारिक खेतों को बड़े पैमाने पर औद्योगिक खेतों से प्रतिस्थापित किया। इस प्रकार खेतों पर कार्य करने वाले श्रमिक बेरोजगार हो गये। शहरी अबादी में अधिक वृद्धि का मुख्य कारण कृषि और उससे संबंधित व्यवसायों में लाखों आजीविकाओं की समाप्ति थी। 2011 की जनगणना बताती है कि 1921 के बाद पहली बार, भारत की शहरी आबादी देश की ग्रामीण आबादी की तुलना में अधिक थी, जिसका मुख्य कारण बड़े पैमाने पर हो रहा प्रवास ही है। ग्रामीण क्षेत्रों के युवा बेरोज़गारी के कारण रोजगार के लिए शहरों की ओर तेज़ी से पलायन कर रहे हैं। इसका एक अन्य मुख्य कारण कृषि क्षेत्रों में कम वेतन की प्राप्ति भी है। प्रवास का मुख्य कारण श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी या आय है, जोकि गाँवों में शहरों की तुलना में बहुत कम है। द जर्नल ऑफ द फाउंडेशन फॉर एग्रेरियन स्टडीज़ (The Journal of the Foundation for Agrarian Studies) के एक अध्ययन के अनुसार ग्रामीण श्रमिकों को वार्षिक वेतन (जो उन्हें संबंधित क्षेत्र की आधिकारिक गरीबी रेखा के बराबर कर दे) पाने के लिए अतिरिक्त दिनों में कार्य करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के एक गाँव में एक साल में 309 दिन का रोज़गार पाने के बाद, एक श्रमिक को आधिकारिक गरीबी रेखा के स्तर तक पहुंचने के लिए अन्य 290 दिनों की आवश्यकता थी। केंद्र सरकार का एक कर्मचारी साल में 205-210 दिन कार्य करता है, और इसके लिए उसे एक अच्छा वेतन प्राप्त होता है। इसके विपरीत एक श्रमिक केंद्र सरकार के कर्मचारी की तुलना में अधिक दिन कार्य करता है, लेकिन उसे एक अच्छा वेतन प्राप्त नहीं हो पाता। इसके प्रभाव से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले युवा कृषि और गांवों को छोड़कर नौकरियों के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। नीति निर्धारक इसे एक सकारात्मक विकास के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि कृषि में बहुत सारे लोग हैं, और उन्हें शहरों और गैर-कृषि व्यवसायों में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। भारत में भी, कृषि में लगातार नुकसान और शहरों में अधिक रोज़गार और वेतन के कारण, ग्रामीण युवा गांवों को त्याग रहे हैं तथा बूढ़े लोगों को अपना प्रबंधन स्वयं करने के लिए छोड़ रहे हैं। यह एक दोषपूर्ण चक्र है, जिसमें अधिकांश लोग गांवों से पलायन कर रहे हैं। इसके प्रभाव से खेतों में काम करने के लिए श्रमिकों की संख्या कम हो जाती है, मानव का स्थान मशीनें लेने लगती हैं। इससे गांवों में रहने वाले अन्य लोगों के लिए भी कोई श्रम नहीं बचता। इस प्रकार अधिक श्रमिक पलायन करते हैं और गाँव तेज़ी से खाली होते जाते हैं। वर्तमान समय में पूरा विश्व जहां कोरोना विषाणु का सामना कर रहा है, वहीं भारत में इस समय उत्क्रम (Reverse) प्रवास को देखा गया है। भारत एक विशाल देश है, और हर साल पर्याप्त संख्या में लोग विभिन्न राज्यों के बड़े शहरों में रोजगार के अवसरों की तलाश में पलायन करते हैं। उत्क्रम प्रवास से तात्पर्य रोज़गार के स्थान से अपने मूल स्थानों में लोगों की आवाजाही से है। 1947 में भारत के विभाजन के समय हुए पलायन के बाद यह दूसरी बार है जब भारत में इतनी बडी संख्या में पलायन हो रहा है। महामारी से निपटने के लिए की गयी तालाबंदी को देखते हुए, हजारों वंचितों और मजदूरों ने सीमित रोजगार के अवसर, अज्ञात भविष्य और वित्तीय संकट के डर से अपने मूल स्थानों और घरेलू राज्यों में वापस जाना शुरू किया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट (Report) के अनुसार, कोविड (Covid-19) के कारण 400 लाख से अधिक आंतरिक प्रवासी प्रभावित हुए हैं और लगभग 50,000 से 60,000 व्यक्ति शहरी से ग्रामीण क्षेत्रों में चले गए हैं।चित्र सन्दर्भ:
छाया में प्रवासी श्रमिक(Youtube)
माइग्रेशन मैप(Wikimedia)
घरों को छोड़ दिया(Youtube)
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