इतिहास वैसे तो कला संकाय या सामजिक विज्ञान संकाय या मानविकी संकाय का एक विषय है, तथा यह बड़े तौर पर अन्य विभाग के विद्यार्थियों द्वारा नहीं पढ़ा जाता। इस विषय की समझ ना होने के कारण बड़े स्तर पर लोग झूठ और हिंसा का शिकार हो जाते हैं। अब यह प्रश्न उठना लाजिमी है की एक इतिहासकार किस प्रकार से सत्य इतिहास लेखन करता है? इतिहास लेखन में कुछ बिंदु हैं जो की सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं जिनमे से लिखित दस्तावेज, अभिलेख, पुरातात्विक अवशेष तथा सिक्के। सिक्के इतिहास लेखन में हमेशा से एक महत्वपूर्ण योगदान देते रहे हैं।
सिक्कों के आधार पर यह हमें पता चलता है की किस राजा ने यह सिक्का बनवाया था, फला सिक्का किस सन में बना, सिक्का बनाने वाले का सम्प्रदाय क्या था आदि मात्र एक सिक्के से पता च सकता है। इसके अलावां सिक्कों के आधार पर ही एक सम्बंधित राजवंश के आर्थिक स्थिति का भी अंदाजा लगाया जा सकता। यह सिक्के ही हैं जिस कारण से गुप्त काल को भारत के स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है, कारण की गुप्त राजाओं ने बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलवाए थे। भारत भर में विभिन्न साम्राज्यों का शासन रहा और उन तमाम राजवंशों के अपने सिक्के भी रहे, इसी कड़ी में जौनपुर के शर्की सल्तनत का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान था। जौनपुर का शर्की सल्तनत अपने शिल्प कला के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है और इसका उदाहरण पेश करती हैं जौनपुर में उनके द्वारा बनायी गयी इमारतें। जौनपुर के शर्की सल्तनत ने अनेकों प्रकार के महत्वपूर्ण सिक्के प्रस्तुत किये जिन्हें आज भी संग्रहालयों और लोगों के निजी संग्रह में देखा जा सकता है। जौनपुर का शर्की सल्तनत कुल 100 वर्षों तक राज किया तथा यहाँ पर शासन करने वाले सुल्तानों ने अनेकों सिक्कों को प्रचलित किया जिसमे शम्स उद दीन इब्राहिम शाह, मुबारक शाह, मलिक सरवर आदि थे। जौनपुर के पास देश की सबसे बड़ी सेना हुआ करती थी तथा यह दिल्ली के सल्तनत से भी बड़ा हो चुका था। जौनपुर के सुल्तानों में शम्स अल दीन इब्राहिम शाह ने सोने के सिक्कों के साथ साथ चांदी के सिक्के भी चलवाया था। नासिर अल दीन मुहम्मद शाह ने बिलन के सिक्के चलवाए थे। जौनपुर पर लोदियों के आक्रमण के बाद जौनपुर सल्तनत दिल्ली सल्तनत से मिल गया और जौनपुर सल्तनत का खात्मा हुआ। लोदियों के बाद जौनपुर मुगलों की जागीर बना तथा इस पर अकबर का ख़ास प्रेम हमें देखने को मिला। अकबर ने जौनपुर में शाही पुल का निर्माण करवाया तथा यहाँ पर मस्जिदों आदि का भी निर्माण करवाया। अकबर के शासन काल में जौनपुर पुनः अपनी ख्याति पाने में सफल रहा। जौनपुर की टकसाल से अकबर ने भी कई सिक्कों को जारी किया जो की अपनी सौंदर्य के लिए जाने जाते हैं। जौनपुर से अकबर ने सोने के अत्यंत ही दुर्लभ मुहरों को ढलवाया, इन सिक्कों के दोनों और सुन्दर लेख शैली में कलीमा और अकबर बादशाह का नाम उकेरा गया है। आज वर्तमान में यह सिक्का अत्यंत ही दुर्लभ सिक्कों की श्रेणी में आता है। अकबर ने जौनपुर से ही चांदी के भी अत्यंत ही दुर्लभ सिक्के चलवाए। इनके अलावां जौनपुर की टकसाल से चांदी के चौकोर सिक्के, चांदी का एक रूपए का सिक्का आदि जौनपुर टकसाल से ही ढाले गए थे। ये सिक्के अपनी कला के लिए आज भी मशहूर हैं तथा वर्तमान में केवल कुछ ही सिक्के मौजूद हैं। अकबर एक ऐसा शासक था जिसके सिक्कों पर हम अनेकों प्रकार की कलाओं को देख सकते हैं तथा इसके द्वारा प्रयोग किया गया धातु भी विशुद्ध था। अकबर के सिक्कों पर हम स्वास्तिक, राम-सीता आदि को भी देख सकते हैं। अकबर के सिक्कों पर राम और गोबिंद शब्द के प्रयोग को भी देख सकते हैं। अकबर ने सिक्कों को तरासने के लिए अत्येंट ही हुनरमंद कलाकारों को अपने टकसालों में जगह दी इन्ही में से एक थे मौलाना अली अहमद। आज भी अकबर द्वारा चलाये गए ये सिक्के भारतीय कला के एक अनुपम उदाहरणों में से हैं जिन्हें हम विभिन्न स्थानों पर देख सकते हैं। जौनपुर का सिक्कों के क्षेत्र में किया गया योगदान ना भुलाया जा सकने वाला है।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र के पार्श्व में जौनपुर और में अग्र में अकबर (चौकोर), शम्स उद दीन इब्राहिम शाह आदि द्वारा जौनपुर टकसाल से जारी सिक्कों को दिखाया गया है। (Prarang)
दूसरे चित्र में नासिर अल दिन मुहम्मद शाह द्वारा जारी जौनपुर टकसाल के सिक्कों को दिखाया गया है। (Prarang)
तीसरे चित्र में मुहम्मद शाह द्वारा जारी जौनपुर टकसाल के सिक्कों को दिखाया गया है।(Prarang)
चौथे चित्र में अकबर द्वारा जारी कालिमा लेख मुद्रण के साथ जौनपुर टकसाल से जारी सुन्दर सिक्कों को दिखाया गए है। (Prarang)
पांचवे चित्र में अकबर द्वारा जारी हिन्दू स्वस्तिक चिन्ह और राम सिया की आकृति के मुद्रण वाले सिक्कों को दिखाया गया है। (Prarang)
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