भारत में अनेकों वंशों और राजाओं ने राज किया तथा इन सभी के समय में कई लिपियाँ विकसित हुई, उत्तर भारत में दो प्रमुख लिपियाँ प्रकाश में आयी। इन लिपियों में ब्राह्मी और खरोष्ठी प्रमुख थी। ब्राह्मी लिपि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में विकसित होना शुरू हुई थी और अशोक का समय आते आते यह लिपि पूरी तरह विकसित हो चुकी थी। बुद्ध धर्म में लिखित प्रमुख ग्रन्थ जैसे कि 'तिपिटक' इसी लिपि में लिखे गए हैं, तिपिटकों में विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक हैं। ब्राह्मी में ही अशोक के सभी अभिलेख और स्तम्भ लेख लिखे गए हैं, इन अभिलेखों में सारनाथ, अहरौरा, टोपरा आदि प्रमुख हैं। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण तक, इसी लिपि का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया था। जैसा कि अखंड भारत अफगानिस्तान (Afghanistan) तक फैला हुआ था, तब के समय की यदि बात करें तो इस क्षेत्र में 300 ईसा पूर्व में एक नयी लिपि का जन्म हुआ था, जिसे हम 'खरोष्ठी लिपि' के नाम से जानते हैं। खरोष्ठी लिपि का भी प्रयोग अशोक के अभिलेखों में देखने को मिलता है, इसके अलावा इस लिपि का प्रयोग विभिन्न वंशों के सिक्कों पर देखने को मिलता है। खरोष्ठी लिपि को इंडो-बक्ट्रियन (Indo-Bactrian) लिपि के रूप में भी जाना जाता है, यह लिपि मूल रूप से उत्तरी पकिस्तान (Northern Pakistan) में विकसित हुई थी। इस लिपि का प्रसार उत्तरी पाकिस्तान, पूर्वी अफगानिस्तान (Eastern Afghanistan), उत्तर-पश्चिमी भारत (North-Western India) और मध्य एशिया (Central Asia) में हुआ। इस लिपि को सबसे पहले अशोक के स्तम्भ पर देखा गया था, जो कि शाहबाजगढ़ से प्राप्त हुआ था। अशोक के अभिलेख की बात करें तो इसके अभिलेख मुख्यतः ब्राह्मी लिपि में होते थे और भाषा प्राकृत थी किन्तु खरोष्ठी लिपि में भी प्राप्त इसके अभिलेख प्राकृत भाषा में ही हैं तथा कहीं कहीं पर आरमेइक और ग्रीक (Aramaic and Greek) में भी इनका अनुवाद किया गया था। खरोष्ठी लिपि का उद्भव फारसी (Persian) के सिमेटिक (Semitic) लिपि के प्रभाव से हुआ था। कुछ विद्वानों का मत है कि यह लिपि हिब्रू खरोशेठ (Hebrew Kharosheth) से उत्पन्न हो सकती है। खरोष्ठी के नाम के विषय में बात की जाए तो इसका इतिहास अत्यंत ही दुर्लभ था। इसके नाम के विषय में कहा गया था कि यह भाषा बोलने में बिलकुल भी सौम्य नहीं थी तथा कुछ विद्वानों का कथन है की इसका अर्थ है 'गधे के होंठ की तरह की भाषा' क्योंकि 'खर' को गधा कहा जाता है तथा 'ओष्ठ' का अर्थ होता है होंठ। खरोष्ठी लिपि का विकास 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के मध्य में हुआ था। सिल्क रोड के कारण इस लिपि का विकास और प्रसार मध्य एशिया के कई क्षेत्रों में हुआ था, शानशान जो कि चीन का हिस्सा है में भी खरोष्ठी लिपि का प्रयोग हमें देखने को मिलता है। भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में फैले कुषाण साम्राज्य में इस लिपि का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया था, जिसका प्रमाण कुषाणों के सिक्कों पर देखने को मिलता है। चीन के हान वंश (Han Dynasty) में भी हमें खरोष्ठी के उदाहरण देखने को मिलते हैं। खरोष्ठी लिपि के कई लकड़ी के पट लेख दिल्ली में स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे गए हैं, चीन (China) से भी लकड़ी के पट्ठों पर लिखे खरोष्ठी के अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिसमे से एक शिनजियांग (Xinjiang) से उत्खनित है। मिनेंडर (Menander) के सिक्कों पर भी हमें खरोष्ठी के लेख दिखाई देते हैं।
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