प्रकृति में ऐसे कई कीट मौजूद हैं, जो व्यावसायिक रूप से काफ़ी महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं कीटों में से एक कीट लाख या लाह कीट (Lac insect) भी हैं, जिनमें से कुछ अत्यधिक रंजित मोम का स्राव करते हैं। भारतीय लाख कीट लैक्शिफर लैका (Laccifer Lacca) व्यावसायिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बरगद और अन्य पौधों पर पाया जाता है। मादा कीट गोलाकार होती हैं और राल (Resin) कोशिकाओं की टहनियों पर रहती हैं, जिसे लाख के स्राव द्वारा बनाया जाता है। कभी-कभी टहनियाँ 1.3 से 3.4 सेंटीमीटर (0.5 से 1.3 इंच) की मोटाई से लेपित हो जाती हैं। इस उपज को प्राप्त करने के लिए टहनियों को काटा जाता है, लाख को पिघलाया जाता है, परिष्कृत किया जाता है और वार्निश (Varnish) में उपयोग किया जाता है। केरिडी (Kerriidae) शल्क कीटों का एक परिवार है, जिसे आमतौर पर लाख कीट या लाख शल्क कहते हैं। वंश मेटाटैचर्डिया (Metatachardia), टचरैडेला (Tachardiella), ऑस्ट्रोटाचारिडिया (Austrotacharidia), केरिया (Kerria) के कुछ सदस्यों को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है। हालांकि सबसे अधिक उत्पादित की जाने वाली प्रजाति केरिया लैक्का (Kerria Lacca) है। ये कीट एक मोमी राल का स्राव करते हैं, जिसे वाणिज्यिक रूप से लाह में परिवर्तित किया जाता है और विभिन्न रंजक, सौंदर्य प्रसाधन, पॉलिश (Polish), वार्निश इत्यादि में उपयोग किया जाता है।
मादा लाख कीट को निषेचित करते ही नर कीट की मृत्यु हो जाती है। निषेचन के बाद मादा तेजी से विकसित होती है। वे अधिक राल और मोम का स्राव करने लगती हैं, जिससे एक बड़े आकार का प्रकोष्ठ (Chamber) बनता है। इस प्रकार, मादाओं द्वारा निकाला गया स्राव मुख्य रूप से लाख में योगदान देता है। इनके जीवन चक्र में तीन चरण शामिल हैं: अंडा, निम्फ (Nymph) और वयस्क। एक निषेचित मादा अपने शरीर को आगे की दिशा में अनुबंधित करके 200-500 अंडे देती है। अंडों को ऊष्मायन कक्ष में रखा जाता है। मादाओं द्वारा अंडे आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर के महीने में दिये जाते हैं। अंडे से पहले इंस्टार (Instar) निम्फ निकलते हैं, जिनकी संख्या बहुत अधिक होती है। अंडे से निकलने के बाद निम्फ टहनियों और पौधों की शाखाओं की सतह पर रेंगते हैं तथा उन्हें संक्रमित करते हैं। इस अवस्था में कठिन टहनियों पर भोजन करने में असमर्थ होने के कारण वे कोमल, रसीले पौधों के रस को चूसना शुरू करते हैं। वे एक दूसरे के बहुत करीब बसते हैं ताकि एक टहनी में 150-200 निम्फ हो सकें। अपने स्थान को सुनिश्चित करने के तुरंत बाद वे पूरे शरीर में मौजूद विशेष त्वचीय ग्रंथियों के माध्यम से अपने शरीर के चारों ओर एक राल पदार्थ को स्रावित करना शुरू करते हैं। कुछ समय बाद निम्फ पूरी तरह से लाख के आवरण से ढक जाते हैं, जिसे लाख कोशिका भी कहा जाता है। एक बार जब वे पूरी तरह से आवरित हो जाते हैं, तो रूपांतरण शुरू हो जाता है। लाख के कीड़ों के पेट में मौजूद कुछ ग्रंथियों द्वारा स्रावित किया जाने वाला लाख एक राल पदार्थ है। यह स्राव पहली बार एक चमकदार परत के रूप में प्रकट होता है, जो हवा के संपर्क में आने के बाद जल्द ही कठोर हो जाता है। लाख कई पदार्थों का मिश्रण है, जिसमें राल 68 से 90%, रंजक 2 से 10%, मोम 5 से 6%, खनिज पदार्थ 3 से 7%, पानी 2 से 3% आदि मौजूद होते हैं। प्राचीन हिंदू साहित्य अथर्ववेद में भी लाख का उपयोग वर्णित है। इसमें उल्लेखित एक सूक्ति इसके उपयोग के लिए समर्पित है। इसमें कई प्राचीन प्रथाओं का वर्णन है, उदाहरण के लिए इसमें कहा गया है कि ‘जो लोग लाख पीते हैं, वे लंबे समय तक जीवित रहते हैं। यह मानव को जीवन देती है और उन्हें रोग मुक्त बनाती है। लाख रंजक का उपयोग प्राचीन काल से किया जा रहा है। भारत में लाख का प्रमुख उत्पादक झारखंड है, इसके बाद छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र राज्य का स्थान है। लाख उत्पादन बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, चीन के कुछ हिस्सों और मैक्सिको में भी पाया जाता है। भारत ने 1700 के दशक से लेकर 1800 के दशक तक लाख रंजक की महत्वपूर्ण मात्रा का निर्यात किया था। 1950 के दशक के मध्य में, भारत ने लगभग 50,000 टन (Tonne) स्टिकलैक (Sticklac) का उत्पादन किया और लगभग 29,000 टन का निर्यात किया। 1980 के दशक के उत्तरार्ध में आंकड़े क्रमशः 12,000 टन और 7,000 टन थे। इसका उपयोग प्राचीन भारत और पड़ोसी क्षेत्रों में लकड़ी की फिनिश (Finish), सौंदर्य प्रसाधन, ऊन और रेशम के लिए रंजक के रूप में किया जाता था। चीन में यह चमड़े के सामान के लिए एक पारंपरिक रंजक है। कुछ फल रसों, कार्बोनेटेड (Carbonated) पेय, वाइन (Wine), जैम (Jam), सॉस (Sauce) आदि को रंग देने के लिए भी लाख का उपयोग किया जाता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.