शाश्वत प्रतीक्षा का प्रतीक है नंदी (बैल)

जौनपुर

 03-07-2020 11:09 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

हिंदू धर्म में प्रत्येक देवता को उनके वाहनों के साथ वर्णित या चित्रित किया गया है। भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं तथा उन्हें अक्सर उनके वाहन अर्थात नंदी (बैल) के साथ चित्रित या वर्णित किया जाता है। दुनिया भर में पाये जाने वाले शिव मंदिरों में भी नंदी मंडप अवश्य बना होता है, जहां नंदी अपनी प्रतीक्षा और ध्यान वाली मुद्रा में विराजित होते हैं। नंदी विशेष रूप से भगवान शिव के वाहन और उनके निवास स्थान कैलास के द्वारपाल के रूप में जाने जाते हैं। नंदी शब्द, मूल रूप से तमिल शब्द 'नंधु' से आया है, जिसका अर्थ होता है, विकसित होना, फलना-फूलना या प्रकट होना। इस शब्द का उपयोग सफेद बैल, या दिव्य बैल नंदी के बढ़ने या पनपने का संकेत देने के लिए किया जाता था। नंदी, नंदिनाथ सम्प्रदाय के आठ शिष्यों अर्थात् सनक, सनातन, सनंदना, सनतकुमारा, तिरुमुलर, व्यग्रपदा, पतंजलि और शिवयोग मुनि, के प्रमुख गुरू माने जाते हैं। उनके इन शिष्यों को शैव धर्म का ज्ञान फैलाने के लिए दुनिया भर में भेजा गया था। संस्कृत शब्द नंदी का अर्थ खुश, आनंद और संतुष्टि है, जो शिव के दिव्य संरक्षक नंदी में विद्यमान हैं।

लगभग सभी शिव मंदिरों में बैठे हुए नंदी की मूर्ति लगी हुई होती है, जोकि मुख्य तीर्थ के ठीक सामने की ओर होती है। भगवान शिव के साथ नंदी की पूजा कई हजारों वर्षों से की जा रही है और इस बात की पुष्टि तब हुई जब सिंधु घाटी मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से इस बात के कुछ साक्ष्य प्राप्त हुए। प्रसिद्ध 'पशुपति सील' और कई बैल-मुहरें भी प्राप्त हुईं, जिन्होंने यह संकेत दिया कि नंदी की पूजा कई हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा है। नंदी को ऋषि शिलाद के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। शिलाद ने गंभीर तपस्या करके भगवान शिव से एक ऐसा पुत्र मांगा जो अमरता और भगवान शिव के आशीर्वादों से युक्त हो। माना जाता है कि शिलदा द्वारा किए गए यज्ञ से नंदी का जन्म हुआ और जन्म के समय उनका पूरा शरीर हीरे से बना हुआ था। नंदी ने मध्यप्रदेश के जबलपुर में त्रिपुर तीर्थक्षेत्र के पास वर्तमान नंदिकेश्वर मंदिर में, नर्मदा नदी के तट पर तपस्या की ताकि वे भगवान शिव का द्वारपाल तथा वाहन बन सकें। माना जाता है कि नंदी ने ही रावण को यह श्राप दिया कि उसका राज्य एक वानर द्वारा जलाया जाएगा। बाद में, सीता की खोज में हनुमान ने लंका को जलाया। जीवित बैल के प्रति हिंदू श्रद्धा के लिए नंदी आज भी आंशिक रूप से उत्तरदायी है, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में। सौर पुराण में नंदी की भूमिका को शिव के द्वारपाल के रूप में वर्णित किया गया है। सौर पुराण में उन्हें एक ऐसे प्राणी के रूप में वर्णित किया गया है, जो सभी प्रकार के आभूषणों से सुशोभित है, एक हजार सूर्य की तरह चमक रहा है, हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए, तीन नेत्रों वाला, चंद्रमा की चांदनी से सुशोभित है। शिव का वाहन होने के अलावा, वे भगवान के गणों या परिचारकों के समूह के प्रमुख और सभी चौपाया पशुओं के संरक्षक भी हैं। वे सृष्टि के लौकिक नृत्य शिव तांडव के संगीत प्रदाता भी हैं। माना जाता है कि शिव के आदेश पर ही नंदी ने हाथी ऐरावत को मारा जोकि इंद्र देवता के वाहन के रूप में सुशोभित था। अधिकांश शिव मंदिरों के सामने नंदी की एक मूर्ति एक बैल के रूप में मौजूद है। वह एक समर्पित स्तंभ मंडप में विराजित मिलते हैं, जिसे नंदी मंडप के रूप में जाना जाता है। उन्हें मंदिर के सामने स्थापित किया गया है ताकि वे मुख्य मंदिर के भीतर शिवलिंग को निरंतर देख सकें। बैल को अक्सर श्रद्धालुओं द्वारा घंटियों, फूलों आदि की माला पहनाई जाती हैं। हिंदू चित्रों में नंदी सबसे अधिक बार शिव के साथ दिखायी दिए हैं। वे पहली-दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में गांधार में कुषाणों द्वारा अंकित सोने के सिक्कों में भी शिव के साथ दिखाई दिये थे। नंदी शाश्वत प्रतीक्षा का प्रतीक हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति में प्रतीक्षा को सबसे बड़ा नैतिक सद्गुण माना जाता है। शिव मंदिरों में नंदी को जिस प्रकार से स्थापित किया गया है, वह ये बताता है कि कैसे बैठना है और प्रतीक्षा करनी है। प्रतीक्षा स्वाभाविक रूप से ध्यान है। इस मुद्रा में नंदी बिना किसी अपेक्षा के भगवान शिव की निरंतर प्रतीक्षा करता है। नंदी शिव के सबसे करीबी साथी हैं क्योंकि वे ग्रहणशीलता का सार हैं।

मंदिर में जाने से पहले, किसी भी भक्त के पास नंदी जैसी गुणवत्ता होनी चाहिए। भक्त के अंदर बिना किसी अपेक्षा के प्रतीक्षा का भाव होना चाहिए। इसलिए, यहां बैठकर नंदी यह संदेश या सार देते हैं कि जब आप मंदिर में प्रवेश करें तो अपनी काल्पनिक चीजें न करें। नंदी किसी प्रत्याशा या अपेक्षा में इंतजार नहीं करते, वे बस प्रतीक्षा या ध्यान करते हैं। लोगों ने हमेशा ध्यान को एक प्रकार की गतिविधि के रूप में समझा है, लेकिन ध्यान गतिविधि नहीं गुणवत्ता है। ध्यान का अर्थ है कि आप अस्तित्व की अंतिम प्रकृति तक, अस्तित्व को सुनने के लिए तैयार हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता, आपको बस सुनना है। नंदी का गुण है कि वह सिर्फ बैठता है और सतर्क है। वह नींद में या निष्क्रिय तरीके से नहीं बैठा है। वह बहुत सक्रिय, सतर्कता और जीवन से भरा है, लेकिन कोई उम्मीद या प्रत्याशा नहीं है, बस यही ध्यान है।


चित्र सन्दर्भ:
1.कुरनूल जिले के पास महानंदिसवारा स्वामी मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी नंदी प्रतिमा है (wikimedia)
2.सिंधु घाटी सभ्यता से बुल सील(wikimedia)
3.तंजावुर में मंदिर में नंदी को सजाया(wikimedia)
4.गंगाईकोंडा चोलापुरम में नंदी(wikimedia)

संदर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Nandi_(mythology)
https://isha.sadhguru.org/mahashivratri/shiva-adiyogi/what-makes-nandi-a-meditative-bull/
https://www.ancient.eu/Nandi/


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