आयुर्वेद पद्धति भारत की अति प्राचीन चिकित्सा पद्धति के रूप में जानी जाती है। आयुर्वेद में वृक्षों का अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है और यह एक कारण है कि भारत में विभिन्न वृक्षों को एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। नीम वृक्ष को तो शीतला माता का दर्जा प्राप्त है, नीम का प्रयोग विभिन्न रोगों आदि के इलाज के लिए किया जाता है। जब बात वृक्षों की हो रही है तो एक महत्वपूर्ण वृक्ष की बात अत्यंत ही आवश्यक हो जाती है। यह वृक्ष है आवंला, आंवला एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण वृक्ष है तथा यह पारंपरिक ज्ञान का हिस्सा बन चुका है और पारंपरिक चिकित्सा में भी आंवला का बड़ा महत्व है।
आवंला को घरेलु चिकित्सा विधियों में भी बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाया जाता है तथा दवा के अलावां इसका प्रयोग अचार, मुरब्बा और चटनी आदि बनाने के लिए भी किया जाता है। आंवले का वैज्ञानिक नाम फाईलेंथस एम्ब्लिका (Phyllanthus Emblica) है तथा यह करौंदा प्रजाति का पेड़ है। यह एक मध्यम आकार का वृक्ष होता है तथा इसका आकार करीब 26 फुट तक का होता है। आंवले की कुछ अन्य प्रजातियाँ भी पायी जाती हैं जिनका आकार आम के वृक्ष के जितना भी होता है। इस वृक्ष की पत्तिया इमली की पत्तियों की तरह होती हैं तथा ये हल्के हरे रंग की होती हैं। यह वृक्ष फल देने के पहले पुष्प देता है जिसका रंग हरे-पीले रंग का मिश्रण होता है। इस वृक्ष का फल लगभग गोलाकार और हल्के पीले रंग का होता है तथा यह चिकना और कठोर होता है। आंवले में संतरे आदि की तरह फारे बंटे होते हैं जिनकी संख्या 6 होती है। भारतीय आंवले का स्वाद खट्टा, कसैला और कडवा होता है तथा इसका फल रेशेदार होता है।
आँवले का धार्मिक महत्व भी है, बौद्ध धर्म में इस फल से जुडी अत्यंत महत्वपूर्ण कहानी भी प्रचलित है। एक कथा के अनुसार यह फल अशोक द्वारा बौद्ध संघ को दिया गया अंतिम उपहार था जिसका विवरण अशोकावदान में हमें देखने को मिलता है। इसके अलावा थेरवाद बौद्ध धर्म में आंवला को बोधि प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किये गए पेड़ के रूप में गिना गया तथा इसे इक्कीसवें बुद्ध ने फुस्स बुद्ध का नाम दिया। हिन्दू धर्म में भी आंवला एक धार्मिक वृक्ष के रूप में पूजा जाता है तथा ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु इस वृक्ष में निवास करते हैं। हिन्दू धर्म में यह माना जाता है कि आंवला अमृत की बूंदों से बना हुआ वृक्ष है। हिन्दू धर्म में आंवला एकादशी नामक एक त्यौहार भी आता है, इस दिन स्त्रियां इस वृक्ष की पूजा करती हैं और इस वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करती हैं। धार्मिक महत्व होने के कारण लोगों का इस वृक्ष के प्रति आस्था और विश्वास बना रहता है।
आंवले के 100 ग्राम (Gram) के फल में कुल 720 एम.जी. (MG) तक विटामिन सी (Vitamin C) की मात्रा पायी जाती है। आंवले को प्राचीन मंदिर परंपरा से भी जोड़ के देखते हैं तथा इसको आमलक से जोड़ के देखते हैं जो कि मंदिर के शिखर के ऊपर स्थित होता है। भारत का प्रतापगढ़ जिला आंवले के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में जाना जाता है। आंवले के फल का प्रयोग सूखा कर और ताजा दोनों रूप से किया जाता है तथा इसका प्रयोग शरीर के अन्दर की समस्याओं के लिए ही नहीं अपितु बालों, आँखों आदि की मजबूती के लिए भी किया जाता है।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र - मुख्य चित्र में आंवला के वृक्ष की एक शाखा पर पत्तियाँ और फल दिखाए गए है। (Pixabay)
2. दूसरा चित्र - दूसरे चित्र में भी आंवला के वृक्ष पर फल और पत्तियाँ दिखाई दे रही हैं। (Pixabay)
3. तीसरा चित्र - तीसरे चित्र में बाजार में आंवला विक्रेता और खरीददार को दिखाया गया है। (Flickr)
4. अंतिम चित्र - अंतिम चित्र में आंवला का पूजन और परिक्रमा करती महिलाएं। (Youtube)
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Phyllanthus_emblica
2. https://bit.ly/3duHklQ
3. https://bit.ly/2Yx7ekN
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