भारत एक उत्सवों का देश है। कई सारे धर्मों और सम्प्रदायों से जुड़ा होने के कारण देश में कई त्यौहार समय समय पर मनाये जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है रथयात्रा का, रथयात्रा प्रत्येक वर्ष उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर पुरी से शुरू होती है। यह त्यौहार देखने के लिए दुनिया भर से लोग भारत के उड़ीसा राज्य में सिरकत करते हैं।
जौनपुर जिले में भी इसी प्रकार की एक अन्य जगन्नाथ रथयात्रा प्रत्येक वर्ष निकाली जाती है। जौनपुर शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर उर्दू बाजार से रथयात्रा का आयोजन किया जाता है जहाँ पर पुरी उड़ीसा के ही तर्ज पर काष्ठ के रथ बनाए जाते हैं जिसे श्रद्धालु रस्से के सहारे पूरे शहर में खींचते है। इस रथयात्रा में भगवान् जगन्नाथ, बलभद्र और देवी शुभद्रा तीनों को संमर्पित तीन रथ होते हैं जिस पर क्रमशः तीनों देव विराजित होते हैं। जैसा कि हमें नाम से ही ज्ञात है, यह यात्रा रथ से शुरू होती है तो यह जानना अत्यंत आवश्यक हो जाता है आखिर यह किस प्रकार का रथ होता है तथा यह रथयात्रा इस प्रकार से किस लिए मशहूर है?
प्रत्येक वर्ष यह पर्व और भगवान् जगन्नाथ की प्रमुख रथयात्रा पुरी उड़ीसा में मनाई जाती है। इस वर्ष यह यात्रा 23 जून को मनाया जाना तयं हुआ है। इस यात्रा के शुरू होने के बहुत पहले से ही रथों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाता है, ये रथ पुरी के प्राचीन भगवान् जगन्नाथ के मंदिर के प्रांगण में बनाए जाते हैं। पुरी में कोई भी इन रथों के निर्माण का कार्य नहीं कर सकता है, यहाँ पर शताब्दियों से रथों का निर्माण विश्वकर्मा सेवक करते हैं। इन विश्वकर्मा सेवकों का कार्य निश्चित होता है तथा वे इन रथों का निर्माण शास्त्र में वर्णित विधियों के आधार पर ही करते हैं। मुख्यतया इन रथों का निर्माण प्रत्येक वर्ष की अक्षय तृतीय के दिन से शुरू होता है। इन रथों को बनाने के लिए विशेष पेड़ों का चयन किया जाता है, रथों को बनाने के लिये पेड़ों का चयन प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन से शुरू हो जाता है। इन रथों को बनाने के लिए दो प्रमुख प्रकार की लकड़ियों का चयन किया जाता है जिसमे से प्रथम है नीम तथा द्वितीय है नारियल। ये पेड़ भी मात्र दसपल्ला के जंगलों से ही लाये जाते हैं। इन पेड़ों को भी काटने के लिए शास्त्रों में वर्णित विधान को प्रमुखता से माना जाता है तथा ग्राम देवी तथा गाँव के मंदिर में पूजा करने के उपरान्त ही इन पेड़ों को काटा जाता है तथा उनको पुरी लाया जाता है। इन रथों के निर्माण के समय से ही चन्दन यात्रा की शुरुआत होती है तथा इन पेड़ों के तनों को मंदिर परिसर में रखकर पूजा आदि के बाद एक चांदी की कुल्हाड़ी से सांकेतिक रूप से काटा जाता है तथा फिर इनसे रथों का निर्माण किया जाता है। इसको बनाने वाले विश्वकर्मा सेवक आठ श्रेणियों में बटे होते हैं।
ये सभी विश्वकर्मा सेवक अलग अलग कला के जानकार होते हैं जैसे गुणकार, पहि महाराणा, कमर कंट नायक/ ओझा महाराणा, चंदाकार, रूपकार और मूर्तिकार, चित्रकार, सुचिकार/दरजी सेवक और रथभोई आदि। इन रथों को बनाते वक्त इनके आकार का भी ख़ास ख्याल किया जाता है जैसे की गरुणध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। इनकी उंचाई परस्पर 13 मीटर (meter), 13.2 मीटर 12.9 मीटर। इनमे पहिये भी भिन्न भिन्न संख्या में होते हैं 16 पहिये, 14 पहिये और 12 पहिये।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में जेम्स फर्ग्यूसन (James Fergusson) की पेंटिंग में पुरी रथ यात्रा का चित्रण है। (Wikimedia)
2. द्वितीय चित्र में विश्वकर्मा सेवक दल के सदस्यों को दिखाया गया है जो रथ का निर्माण कार्य सँभालते है। (Youtube, Flickr)
3. तीसरे चित्र में भारतीय डाक द्वारा जगन्नाथ रथ यात्रा तथा विश्वकर्मा सेवक दल के सदस्यों के सम्मान में जारी किया गया आवरण और डाक टिकट है। (Publicdomainpictures)
सन्दर्भ :
1. https://bit.ly/3fMLA1C
2. https://bit.ly/3etFZgw
3. https://bit.ly/2B07Iqv
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