सिकंदर के अफगानिस्तान और पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले ही ग्रीस और भारत में बहुत अधिक आदान-प्रदान हुआ करता था। हालांकि पौराणिक कथाओं का आदान-प्रदान, भाषाई ऋण-शब्द और अन्य संदर्भ यहां तक कि भाषाओँ में व्याकरणीय समानताएं अभी तक मौजूद हैं, लेकिन इस तरह के आदान-प्रदान के पुरातत्व प्रमाणों को खोजना मुश्किल है। यहां तक कि इतिहास में न्यासा नामक एक शहर(राज्य) का संदर्भ भी मिलता है, जहां एक शराब (वाइन) ग्रहण करने वाला ग्रीक भाषीय समुदाय रहता था, जो डायोनिसियस (ग्रीक पौराणिक देवता) का अनुयायी था। जिसको देखकर सिकंदर को काफी आश्चर्य हुआ था। सिकंदर के बाद का इतिहास भारत और ग्रीस के आदान प्रदान (भारत में शहरी योजना, सिक्कों की बनावट, वस्त्र और आभूषणों की बनावट और अन्य कलाओं) के विशाल पद्चिन्हों को पीछे छोड़ता है। विशेष रूप से गांधार (कंधार, अलेक्जेंडर से लिया गया नाम जैसे काफी सारे शहरों में से एक जिसका नाम सिकंदर के नाम पर रखा गया है।) और तक्षशिला की मूर्तिकला में।
323 ईसा पूर्व में सिकंदर की मृत्यु के तुरंत बाद, सेल्यूकस साम्राज्य को उनके सेनापति, सेल्यूकस निकेटर और उनकी फारसी रानी को विरासत में मिल गया था। मौर्य साम्राज्य (322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व), जिसे चंद्रगुप्त मौर्य (सान्द्रकोटस)(सेल्यूकस निकेटर की बेटी से विवाहित) द्वारा स्थापित किया गया था, ने अपनी खुद की पहचान बनाने के लिए फारसी और ग्रीक बनावट और शिल्प-कौशल के संयोजन का उपयोग किया था। मौर्य काल के इस चरण के दौरान, ग्रीस और भारत के बीच कूटनीति का एक नया अध्याय शुरू हुआ और दोनों देशों के राजदूत संबंधित अदालतों में मौजूद थे। प्रसिद्ध रूप से, सेल्यूकस निकेटर (सीरिया और अफगानिस्तान) के लिए मेगास्थनीज, एंटिओकस प्रथम (मैसिडोनिया, ग्रीस और थ्रेशिया) के लिए डिमाकस और टॉलेमी फिलाडेल्फस (मिस्र) के लिए डायोनिसियस आदि राजदूत चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहते और काम करते थे। विदेश नियुक्तवद में राजनायिकों/ राजदूतों के आधार का ऐसा रूप आज भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आदर्श बन गया है लेकिन वास्तव में सिकंदर के बाद इसकी शुरूआत यूनान और भारत के साथ शुरू हुई।
185 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य को पाकिस्तान/उत्तरी-भारत क्षेत्र में एक इंडो-ग्रीक साम्राज्य द्वारा बदल दिए जाने के बाद भी, यह राजनयिक संलेख जारी रहा जो कि मौर्य साम्राज्य के विभाजित होने से उभरे जनपदों या राज्यों में फैल गया। इंडो-ग्रीक राज्यों (बैक्ट्रिया/अफगानिस्तान के डेमेट्रियस द्वारा शुरू) ने सियालकोट (पंजाब, पाकिस्तान) में अपनी राजधानी स्थापित की, जो लगभग 185 ईसा पूर्व से 10 वीं ईस्वी तक रही थी। वहीं इंडो-ग्रीक राजाओं में सबसे प्रसिद्ध, राजा मेनाण्डर (Menandar) द्वारा बौद्ध धर्म अपना लिया गया था। इस युग में इंडो-ग्रीक राजाओं के अतिरिक्त सीथियन/शक शासकों द्वारा भी भारत पर अनेक आक्रमण किए गए और अंतत: अपना सम्राज्य विकसित किया गया। इसके बाद इंडो-सीथियन राजाओं ने इंडो-यूनानियों से तक्षशिला के उत्तरी क्षेत्रों पर कब्जा करने से पहले अपनी स्थापना सिंध, पाकिस्तान से की और उसके बाद दक्षिण-पूर्व में कच्छ, सौराष्ट्र / गुजरात और फिर उज्जैन / मध्य प्रदेश का अधिग्रहण किया। हालांकि 4 वीं ईस्वी तक इंडो-सीथियन राज्य किसी न किसी रूप में विभाजित हुए और अपना विस्तार करते रहे, लेकिन उनका सबसे बड़ा विस्तार सबसे पहले राजा मोअस (20 वीं ईसा पूर्व से 22 वीं ईस्वी) और उनके उत्तराधिकारी, राजा अज़ेस प्रथम के अधीन किया गया था। इन इंडो-ग्रीक और इंडो-सीथियन राजाओं के सिक्कों की एक अद्भुत सरणी आज भी पूरे भारत में फैली हुई है। इन सिक्कों में एक तरफ ग्रीक देवताओं और दूसरी तरफ भारतीय देवताओं की आकृति देखने को मिलती है। इस तरह के सभी सिक्कों में भारतीय त्रिमूर्ति देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) की पूर्व-तिथि की प्रतिमा और उस समय की भाषा अंकित हैं। जौनपुर के पास उत्तर भारत के प्राचीन स्थलों में इंडो सीथियन सिक्के पाए गए हैं।
मोअस द्वारा एक रानी माचेने का उल्लेख करते हुए संयुक्त सिक्के जारी किए। संभवतः माचेने इंडो-ग्रीक परिवार की बेटी हो सकती है। वहीं एक इंडो-ग्रीक राजा, आर्टेमिडोरोस द्वारा भी सिक्के जारी किए गए जिसमें उन्होंने खुद को "मोअस का बेटा" बताया। भारतीय वर्ग मानक के अनुसार, मोअस के कुछ सिक्के में एक राजा को पैर के ऊपर पैर रखकर बैठी हुई स्थिति में दर्शाया गया है। ये आकृति या तो स्वयं मोअस का प्रतिनिधित्व कर सकती है, या संभवतः उसकी दिव्यताओं में से एक हो सकती है। वहीं कई लोगों का ऐसा मानना है कि सिक्के पर मौजूद आकृति बुद्ध के प्रथम प्रतिरूप में से एक हो सकती है, क्योंकि उस समय इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म फल-फूल रहा था, लेकिन बैठे हुए व्यक्ति क्षैतिज रूप से एक तलवार धारण करते हैं, जो चित्रण में स्वयं मोअस होने पर जोर देते हैं। इसके अलावा, मोअस के कुछ सिक्कों में बौद्ध प्रतीकों (जैसे कि शेर, मौर्य राजा अशोक के समय से बौद्ध धर्म का प्रतीक) को भी देखा जा सकता है। शेर का प्रतीकवाद बौद्ध इंडो-ग्रीक राजा मीनान्डर द्वितीय द्वारा भी अपनाया गया था। मोअस ने संभवतः बौद्ध धर्म का समर्थन किया, हालांकि ईमानदारी के पथ पर चलने के लिए या राजनीतिक उद्देश्यों के लिए यह स्पष्ट नहीं है। उनके सिक्कों में शिव के बैल (नंदी) जैसे विभिन्न धार्मिक प्रतीकों को भी देखा गया है, जो व्यापक धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
चित्र संदर्भ:
1. मुख्य चित्र में बुनेर-राहत में से एक, जो सीथियन सैनिकों को नाचते हुए दिखा रहा है (ऊपर)। प्रारंभिक इंडो-सिथियन या शक राजा मोअस (90-60 ईसा पूर्व) का एक ड्राच्मा (drachma, 100 पेटा के बराबर), जिन्होंने गांधार में शासन किया; बाईं ओर की छवि खरोष्ठी लिपि को दिखाती है (नीचे)। (Prarang)
2. एक अन्य सिक्का जो मोअस द्वारा जारी किया गया था, सिक्के के दाहिने ओर खरोष्ठी लिपि के साथ। (vcoins)
3. मोअस से प्राप्त एक और द्विभाषी और द्विसंस्कृतिक उदाहरण (Wikipedia)
4. ग्रीक और खरोष्ठी शिलालेखों के साथ एज़स प्रथम (57-35 ईसा पूर्व) का एक सिक्का (David L. Tranbarger Rare Coins)
5. अज़ीलिसेस (Azilises), जिन्होंने एज़स के साथ सह-शासक के रूप में शासन किया, जिसमें अज़ीलिसेस ने खुद को इंडिक "महाराजा राजाराजसा" की उपाधि दी। खरोष्ठी लिपि में। (vcoins)
6. अज़ीलिसेस के कई सिक्कों पर खरोष्ठी विशेष रूप से स्पष्ट और सुरुचिपूर्ण है। (Wikimedia)
7. एज़स द्वितीय द्वारा जारी एक और ग्रीक-खरोष्ठी सिक्का। (publicdomainpictures)
8. एज़स द्वितीय ने यह ज़ेबू-सजी (कूबड़दार बैल) वाला "हेक्सा चॉकन" सिक्का भी जारी किया। (vcoins)
9. एज़स द्वारा ऊँट की सवारी; सिक्के के दूसरे चेहरे पर कूबड़ वाला बैल मुश्किल से ही समझ आता है। (flickr)
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Scythians
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Maues
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.