आज से करीब 70 साल पहले एक समुदाय जिसे भिश्ती नाम से जाना जाता है, अक्सर गर्मियों के दिनों में भारतीय शहरों में दिखाई देते थे, किंतु वर्तमान समय इस समुदाय को भारतीय सडकों में इस प्रकार से ढूंढना थोडा मुश्किल है। भिश्ती वास्तव में उत्तर भारत और पाकिस्तान में पाई जाने वाली एक मुस्लिम जनजाति या बिरादरी है, जो l कि मुख्य रूप से सालों पहले के अपने व्यवसाय के लिए जानी जाती है। ये पारंपरिक जल वाहक हैं, जो बकरी के चमडे से बने एक बैग में पानी को संग्रहित कर इधर-उधर ले जाते हैं। माना जाता है कि भिश्ती, अब्बास इब्न अब्द अल-मुत्तलिब के वंशज हैं, लेकिन वास्तव में वे हिंदू थे जिन्होंने अपना धर्म परिवर्तित करके इस्लाम धर्म को अपनाया तथा सक्का (Saqq) और मश्की, मशकी या मश्क (Mashk) के रूप में भी जाने गये।
भिश्ती मूलतः दक्षिण एशिया के पारंपरिक जल वाहक हैं। यह शब्द फारसी शब्द बेहेश्त (Behesht) से लिया गया है, जिसका अर्थ है स्वर्गलोक। कहा जाता है कि यह नाम एक युद्ध में मुस्लिम सैनिकों की सहायता करने के लिए उनको दिया गया था क्योंकि वे बकरी-त्वचा के थैले के द्वारा पानी की आपूर्ति किया करते थे। भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में मश्क, पानी और अन्य द्रव्यों को ले जाने वाली चमड़े की थैली का नाम होता है। यह चमड़ा अक्सर बकरी की ख़ाल का बनता है, जिस पर तेल या रोग़न से मालिश की गई होती है ताकि उसमें से पानी के रिसाव को रोका जा सके। मश्क़ अलग-अलग आकारों में आया करते थे। छोटी मश्क़ों को हाथ में उठाया जा सकता था और उनमें शराब जैसे द्रव्य रखे जाते थे। बड़ी मश्क़ ले जाने वालों को 'मश्क़ी' कहा जाता था और अक्सर 'भिश्ती' नामक जाति के लोग मश्क़ों में पानी ले जाया करते थे।
माना जाता है कि गुजरात में, भिश्ती मुगल सम्राट अकबर के शासन के दौरान उत्तर भारत से आये। उत्तर भारत की भिश्ती की तरह, उन्होंने गुजरात को जीतने वाली मुग़ल सेनाओं के लिए भी पानी उपलब्ध कराया। भारत के विभाजन के समय दिल्ली के भिश्ती समुदाय के कई लोग पाकिस्तान चले गए जहां अब वे मुख्य रूप से कराची में पाए जाते हैं, और बड़े मुहाजिर जातीय समूह के भीतर एक उप-समूह बनाते हैं। भारत के कई स्थानों में भी आज यह समुदाय मौजूद है, हालांकि अब कई लोगों ने सम्भवतः अपने इस पारंपरिक पेशे को नहीं अपनाया है।
भारत के महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश आदि स्थानों में यह प्रजाति पायी जाती है। महाराष्ट्र में, इस जनजाति को अक्सर पखाली (Pakhali कहा जाता है) जहां यह समुदाय उर्दू और साथ ही मराठी की दखिनी (Dakhini) बोली भी बोलता है। उत्तर प्रदेश का भिश्ती समुदाय एक भूमिहीन समुदाय है, जहां वे पानी आपूर्तिकर्ता के अलावा, मजदूरी का कार्य भी करते हैं। वे त्योहारों और धार्मिक समारोहों के दौरान पीने योग्य जल की भी आपूर्ति करते हैं। उत्तरप्रदेश का भिश्ती समुदाय उर्दू के साथ-साथ खड़ी बोली जैसी क्षेत्रीय भाषाएं भी बोलता है। हालाँकि भिश्ती समुदाय पूरे उत्तर प्रदेश में पाया जाता है, लेकिन उनकी सबसे बड़ी एकाग्रता अलीगढ़ और मेरठ के दोआब जिलों में है। दिल्ली जैसे अन्य शहरों में वर्तमान समय में भिश्ती, पानी आपूर्तिकर्ता के अलावा मोटर मैकेनिक (Motor Mechanic), बढ़ई, वेल्डर (Welder), फिटर (Fitter), रिक्शा चालक, चित्रकार आदि के रूप में भी कार्यरत हैं।
अन्य मुस्लिम समुदायों की तरह, भिश्ती ने एक भारत-व्यापी जाति संघ, अखिल भारतीय जमीयत उल अब्बास की स्थापना की है, जो एक कल्याण संघ के रूप में कार्य करता है, साथ ही भारत में भिश्ती समुदाय की पैरवी करने वाला संगठन भी है। हालांकि भिश्तियों का पारंपरिक व्यवसाय कहीं गायब सा हो गया है किंतु इनकी सामुदायिक पहचान मजबूत बनी हुई है। हुमायूं के जीवन में भी एक भिश्ती की महत्वपूर्ण भूमिका देखने को मिलती है। यह बात 26 जून 1539 की है जब चौसा के मैदान में मुगल बादशाह हुमायूं व अफगान शासक शेरशाह के बीच हुए भयंकर युद्ध में हुमायूं की करारी हार हुई।
शेरशाह द्वारा रात में किये गये अचानक आक्रमण ने हुमायूं को संभलने का भी मौका नहीं दिया और परिणामस्वरूप हुमायूं के ज्यादातर सैनिक गंगा नदी में डूब गये और जो बचे वो अफगान सैनिकों के शिकार हो गये। हुमायूं के पास अपनी जान बचाने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं था तथा चारों तरफ से अफगान सैनिकों से घिरा हुमायूं अपनी जान बचाने के लिए उफनती गंगा में कूद गया। उफनती गंगा में जब वह डूबने लगा तो तब चौसा के भिश्ती निजाम ने हुमायूं की जान बचायी। हुमायूं ने हिम्मत नहीं हारी और फिर से सैनिकों को इकट्ठा किया तथा दिल्ली की सत्ता हासिल कर ली।
दूसरी बार बादशाह बनने के बाद हुमायूं ने उस जान बचाने वाले भिश्ती को ढूंढ निकाला और उसे एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बनाया। चौसा के भिश्ती निजाम को एक दिन के लिए दिल्ली की बादशाहत क्या मिली, उसने चमडे का सिक्का चलाकर सदा के लिए भारतीय इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। भारत के मध्यकालीन इतिहास में चमडे का सिक्का चलाने वाले बादशाह के नाम से निजाम विख्यात है। निजाम के द्वारा चलाया गया चमड़े का सिक्का आज भी पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। इंडिया विज़ुअल फेसबुक पेज (India Visual FB Page) पर प्रारंभिक चित्र पोस्टकार्ड (Postcard) में भी एक भिश्ती को प्रदर्शित किया गया है। रुडयार्ड किपलिंग की कविता ‘गुंगादीन’ की लोकप्रियता तथा 1930 के दशक में हॉलीवुड (Hollywood) द्वारा इस शीर्षक पर किये गये फिल्म निर्माण से भिश्ती केवल भारत में ही नहीं बल्कि यूरोप और अमेरिका में भी प्रसिद्ध हुए।
रुडयार्ड किपलिंग की कविता ‘गूंगादीन’ का शीर्षक चरित्र एक भिश्ती ही है। ऐसे कई चित्र हैं जो आज भी भिश्ती समुदाय तथा इनसे जुडे व्यवसाय को प्रदर्शित करते हैं। इन चित्रों में ए सीरीज ऑफ कंपनी स्कूल वाटर कलर्स ऑफ वेरियस ट्रेड्स (a series of Company School watercolors of various trades) से एक भिश्ती पटना 1819, जॉन लुआर्ड का 1838 का एक चित्र, भारत कार्यालय के लिए डब्ल्यू एच. एलन द्वारा ‘द पीपल ऑफ इंडिया (The People of India-1868 से 1870 के प्रारंभ तक) से, लुईस रूसेलेट द्वारा 'इंडिया एंड इट्स नेटिव प्रिंसेस (India and its Native Princes)', 1878 से द उत्तरी कोंकण (The Northern Konkan), भिश्ती या वाटर-कैरियर (Water-carrier) आदि चित्र शामिल हैं, जिन्हें आप निम्नलिखित लिंक पर जाकर देख सकते हैं।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में एक भिश्ती को अपने घोड़े पर मश्क़ी लादते हुए दिखाया है। एक अन्य भिश्ती उसके करीब दिख रहा है। (Ebay)
2. दूसरे चित्र में तीन अलग अलग भिश्ती दिखाए गए है। (Wikipedia)
3. तीसरे चित्र में भिश्तियों का दल जल एकत्र कर रहा है। (Wikipedia)
4. अंतिम चित्र में एक भिश्ती बिना स्पर्श के जल पिला रहा है। (Ebay)
5. एक भिश्ती, पटना, 1819, विभिन्न ट्रेडों की कंपनी स्कूल जल रंग की एक श्रृंखला से (Ebay)
6. एक तस्वीर, 1900 की शुरुआत में; एक इज़ाफ़ा, c.1918 (Ebay)
7. एक एल्बम फोटो, c.1880; एक और दृश्य (Ebay)
8. धूल को नीचे रखने के लिए जमीन को पानी देना: एक तस्वीर 1935 से (Ebay)
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Bhishti
2. https://bit.ly/2TQ3xnf
3. https://bit.ly/2MaPuEI
4. https://bit.ly/3gw5bnP
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.