मनुष्य के सबसे महत्वपूर्ण साधनों में से एक है बर्तन, अपने विकास के शुरूआती चरण में मनुष्य ने जब घर बनाना शुरू किया तथा एक ही जगह बसने का निर्णय लिया, तब मनुष्य के सामने सबसे बड़ी समस्या थी अपने खाद्य पदार्थों, जल आदि के संग्रहण की। इसी सोच ने मनुष्य को एक ऐसा आविष्कार करने को प्रेरित किया जिसने पूर्ण रूप से पूरे समाज को बदल कर रख दिया। नव पाषाणकाल और ताम्र पाषाणकाल ऐसे समय थे जब बर्तनों का निर्माण होना शुरू हुआ इन्हीं बर्तनों ने समय के साथ साथ कई स्वरुप और प्रकार को अपनाएं।
शुरूआती समय में ये मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाए जाने शुरू हुए बाद में चाक के आविष्कार के बाद चाक पर बने बर्तन समाज में आये। जैसा कि हमें विदित है हाथ से बने बर्तन मोटे और बेढंगे हुआ करते थे जबकि चाक पर बना बर्तन वास्तव में अत्यंत ही पतला और अनुपात में होता था। भारत भर में कई प्रकार के बर्तनों को बनाया जाता था जैसे कि लाल मृद्भांड, काला मृद्भांड, उत्तरी काला लेपित मृद्भांड, चित्रित लाल मृद्भांड, लाल काला मिश्रित मृद्भांड, चित्रित धूसर मृद्भांड आदि। ये तमाम मृद्भांड विभिन्न संस्कृतियों और उनके विभिन्न समयकालों में विकसित हुए थे।
जौनपुर से सटे हुए जिले आजमगढ़ के निजामाबाद नामक स्थल पर काले मृद्भांड आज भी बनाए जाते हैं जो कि एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण तकनिकी, इतिहास और कला को प्रदर्शित करते हैं। आइये हम पहले बात करते हैं काले मृद्भांड की-
काले मृद्भांड ऐतिहासिक रूप से ताम्रपाषाण काल के दौरान विकसित हुए थे तथा इसके प्रमाण नावदाटोली, चिचली, रायपुरा, लतीफ़ शाह आदि पुरास्थालों से मिलते हैं। इस काल में विकसित होकर यह मृद्भांड हड़प्पा सभ्यता (कुछ परिवर्तनों के साथ) से होते हुए लौह युग तक पहुँचती है। इस दौरान करीब 1000 ईसा पूर्व में एक ऐसे काले मिट्टी के बर्तन का जन्म हुआ जिसने पूरी की पूरी मृद्भांड परम्परा को एक नयी ऊंचाई तक पहुँचाया। यह एक विशेष संस्कृति थी जिसे उत्तरी कृष्णलेपित मृद्भांड परंपरा या उत्तरी काला लेपित मृद्भांड के रूप में जाना गया (NBPW)।
यह संस्कृति गंगा के मैदानी भाग में विकसित हुयी तथा करीब 300 ईसा पूर्व तक यह प्रकाश में रही। कालान्तर में प्राचीन इतिहास के काल जिसे कि 1200 ईसा पूर्व तक माना जा सकता है तक काले मिट्टी के बर्तनों का निर्माण होते रहा था परन्तु उनकी स्थिति (NBPW) पूर्व जैसी नहीं थी। काले मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा पूरे भारत भर में व्याप्त है परन्तु निजामाबाद में बने मृद्भांड उत्तरी कृष्णलेपित मृद्भांड की तरह प्रतीत होते हैं। मध्यकाल के दौरान मिट्टी के अत्यंत ही उत्तम काले मृद्भांड बनाने की परंपरा का ह्रास हो चुका था जिसका एक कारण धातु के बने बर्तनों का आ जाना भी था। निजामाबाद में जिस प्रकार के बर्तन पाए जाते हैं ऐसी बर्तन बनाने की कला गुजरात के कच्छ में जिन्दा थी और अंदाजन वहीँ से औरंगजेब इस कला को आजमगढ़ लाया था (इस विषय पर अभी कोई ठोस जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी है परन्तु कई विद्वानों का यही मत है)।
एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण बात मृद्भांडों के विषय में जानना जरूरी है और वह यह है कि मृद्भांड के प्रकार, उनके रंग और उनके रूप में दो बिंदु सबसे महत्वपूर्ण हैं-
1- मिट्टी का प्रकार- मिट्टी, मिट्टी के बर्तनों में एक अहम् योगदान देती हैं, जैसी मिट्टी वैसा ही बर्तन। मिट्टी के अत्यंत ही चिकने और मजबूत बर्तन बनाने के लिए अत्यंत ही चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है जिसमे कम से कम मात्रा में कंकड़ हों, तालाब की मिट्टी इसमें अहम् योगदान देती है। जैसे गंगा के मैदान में बढियां दोमट और बलुई मिट्टी की प्राप्ति होती है तो इस कारण से यहाँ पर ऐतिहासिक तौर पर शानदार मृद्भांड बनते आ रहे हैं।
2. पकाने का तापमान- मिट्टी के बर्तन को पकाने के लिए संयोजित तापमान की आवश्यकता होती है। संयोजित तापमान मृद्भांड को सही से पकाने के साथ ही साथ एक रंग भी देने का कार्य करता है।
निजामाबाद के मृद्भांड को 2015 में भौगोलिक संकेत टैग (GI Tag) से भी पंजीकृत किया गया। आज निजामाबाद शहर में एक बहुत ही बड़ी आबादी काले मृद्भांड के व्यवसाय से जुडी हुयी है। यहाँ के बर्तनों में रसायनशास्त्र का भी अहम् योगदान है जिसका कारण है यहाँ पर नसीरपुर मिट्टी का प्रयोग किया जाता है जो प्लास्टिक मिट्टी (Plastic Clay) की तरह व्यवहार करती है, इनको करीब 850 डिग्री सेल्सियस (Digree Celcius) पर गर्म किया जाता है जिससे इनको यह स्वरुप प्राप्त होता है। इनमें सजावट के लिए जिंक (Zinc) और मर्करी (Mercury) के पाउडर का भी प्रयोग किया जाता है। यहाँ के मृद्भांड को बनाने के उपरान्त उन पर सरसों का तेल लगाया जाता है जो इनको एक उत्तम चमक प्रदान करता है।
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चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में काले मृद्भाण्ड बनाते हुए एक भारतीय कुम्हार दिखाया गया है।
2. दूसरे चित्र में आज़मगढ़ में बनाये जाने वाले काले मृद्भाण्ड दिखाई दे रहे हैं।
3. तीसरे चित्र में सूखने के लिए रखे गए काले मृद्भाण्ड दृश्यांवित हैं।
4. चौथे चित्र में पोलिश के बाद तैयार काले मृद्भाण्ड दिख रहे हैं।
5. पांचवे चित्र में खुदाई में प्राप्त सुरक्षित काले मृद्भाण्ड दिख रहे हैं।
6. अंतिम चित्र में निजामाबाद में तैयार सुन्दर काले मृद्भाण्ड दिखाए गए हैं।
सन्दर्भ :
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Nizamabad_black_clay_pottery
2. http://www.airportsindia.online/black-beauty-of-nizamabad/
3. https://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/0371750X.1998.10804855
4. https://bit.ly/2Ly2C6k
5. https://www.ancient-asia-journal.com/articles/10.5334/aa.12305/
6. https://bit.ly/2WvQ6La
7. https://bit.ly/2zEfsgL
8. https://bit.ly/2WOZeJG
9. https://neostencil.com/upsc-art-culture-indus-valley-civilization-pottery
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