भारत हमेशा से ही विशिष्ट उत्पादों के निर्माण के लिए जाना जाता रहा है। जौनपुर में निर्मित होने वाली कालीन भी इन्हीं में से एक हैं। यदि इसके इतिहास के बारे में बात कि जाये तो कुछ साक्ष्य इसकी उपस्थिति को करीब 8 से 9 हजार वर्ष पीछे तक ले जाते हैं। भेड़ बकरी आदि के बाल के मिले अवशेष यह इंगित करते हैं कि किसी ना किसी प्रकार का कालीन या वस्त्र उस काल में बनाया गया होगा। शुरुआती दौर के कालीनों का निर्माण शायद ठंड से बचने के लिये किया जाता होगा जो बाद में विश्वभर में साज-सज्जा की वस्तु के रूप में फैल गया। भारत में कालीन की शुरूआत 16 वीं शताब्दी से हुई। इन कालीनों को बनाने के लिए अकबर ने फारस (ईरान) से कालीन बुनकरों को भारत बुलवाया तथा एक राजसी कार्यशाला का निर्माण अपने महल मे करवाया। अकबर के बाद राजा जहाँगीर व शाहजहाँ ने भी कालीनों की कला का विस्तार किया| भारत के अनेक प्रदेशो में विभिन्न प्रकार की कालीनों का निर्माण होता है, जिनमे भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर आदि अपनी विशिष्ट कालीनों के लिए प्रसिद्ध हैं।
जौनपुर का कालीन भी यहां का एक उत्तम उत्पाद है, जिसकी मांग पूरी दुनिया में है। वर्तमान समय में, जौनपुर का कालीन उद्योग लगभग 3500 लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है। कालीन जौनपुर के मुख्य निर्यातित वस्तुओं में से एक है और यह एक जिला एक उत्पाद योजना के अंतर्गत भी आता है। पहले के समय में कालीन मुख्यतः हाथ से बनायी जाती थी किन्तु तकनीकी विकास के साथ कालीनों का निर्माण मशीनों द्वारा किया जाने लगा, इससे हस्तनिर्मित कालीन उद्योग में काफी गिरावट आयी। कालीन बनाने की हस्तनिर्मित विधि में करघे का इस्तेमाल भी किया जाता है। यह एक ऐसा उपकरण है जिससे कपड़ा बुना जाता है। किसी भी करघे का मूल उद्देश्य एक तनाव के तहत धागों को पकड़े रखना होता है, ताकि धागों की बुनाई करके कपड़ा बनाया जा सके। करघे की बनावट और कार्यप्रणाली भिन्न हो सकती है, लेकिन ये मूल रूप से समान कार्य करते हैं। करघे के विकास के साथ विभिन्न प्रकार के करघे का निर्माण होने लगा तथा बैकस्ट्रेप (Back strap), ताना-भार (Warp-weighted), ड्रालूम (Drawloom), हैंडलूम (Handloom), विद्युतीय लूम (Electric loom) इत्यादि का विकास हुआ।
आधुनिक युग में कालीन निर्माण मुख्य रूप से विद्युत् से चलने वाले करघे द्वारा किया जा रहा है, जिसे मशीनीकृत करघा कहा जा सकता है। मशीनीकृत करघा प्रारंभिक औद्योगिक क्रांति के दौरान बुनाई के औद्योगिकीकरण की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था। इसे पहली बार 1784 में एडमंड कार्टराइट (Edmund Cartwright) द्वारा डिजाइन (Design) किया गया और पहली बार 1785 में बनाया गया। अगले 47 वर्षों में इसे तब तक परिष्कृत किया जाता रहा जब तक केनवर्थी (Kenworthy) और बुलो (Bullough) के एक डिजाइन ने इस कार्य को पूरी तरह से स्वचालित नहीं किया। 1850 तक इंग्लैंड में 2,60,000 विद्युतीय करघे कार्य कर रहे थे। पचास साल बाद नॉर्थ्रॉप (Northrop) करघा आया जिसने लैंक्शायर (Lancashire) करघे को प्रतिस्थापित किया। एक स्वचालित करघे के लिए पहला विचार 1678 में पेरिस में एम. डी गेनेस (M. de Gennes) द्वारा और 1745 में वाउकसन (Vaucanson) द्वारा विकसित किया गया, लेकिन इन डिजाइनों को कभी निर्मित नहीं किया गया।
एक कपड़ा मिल में बुनाई का संचालन एक विशेष रूप से प्रशिक्षित ऑपरेटर (Operator) द्वारा किया जाता है जिसे एक बुनकर के रूप में जाना जाता है। बुनकरों से उच्च उद्योग मानकों को बनाए रखने की उम्मीद की जाती है। अपनी ऑपरेटिंग शिफ्ट (Operating shift) के दौरान, बुनकर पहले शिफ्ट चेंज (Shift change) को चिह्नित करने हेतु अपने प्रारंभिक हस्ताक्षर करने के लिए एक क्रेयॉन (Crayon) का उपयोग करते हैं। इसके बाद वे जिस करघे को चला रहे हैं, उसके कपड़े के किनारे (सामने) से चलते हुए धीरे-धीरे रीड (Reed) से आते हुए कपड़े को छूते हैं। यह किसी भी टूटे हुए भराव धागे को महसूस करने के लिए किया जाता है। टूटे हुए भराव धागे का पता लगाना आवश्यक है, क्योंकि इस दौरान बुनकर मशीन को निष्क्रिय देता है और त्रुटि को ठीक करने के लिए जितना संभव हो सके उतने कम समय में भराव धागे की रील (Bobbin) को बदल देता है। किसी भी मशीन को कार्य करने के दौरान एक मिनट से अधिक समय तक बंद नहीं किया जा सकता। एक बार जब बुनकर मशीनों के सामने का सर्किट (Circuit) बना देता है, तब वे पीछे की ओर घूमते हैं। इस बिंदु पर वे धीरे से अपना हाथ मशीन के पिछले भाग पर ऊपर उठी हुई धातु पर फेरते हैं। यह एक विशेष धातु सर्किट पर स्थित होती है तथा ताने (Warp) से आ रहे धागे के तनाव द्वारा वहन की जाती है। अगर तने हुए धागे को तोड दिया जाता है तो उभरी हुई धातु गिर जायेगी और मशीन काम करना बंद कर देगी। ऐसा करने से बुनाई में समस्याएँ पैदा होती हैं। उभरी हुई धातु को धीरे-धीरे स्पर्श करने से, बुनकर उस धागे को ढूंढ सकता है जो अटक गए हैं, और उस त्रुटि को ठीक कर सकता है।
विद्युत् से चलने वाले करघों के विकास से हस्तनिर्मित कालीन उद्योग में गिरावट आयी क्योंकि विद्युत् से चलने वाले करघों से एक समय में अनेक कालीनों का निर्माण किया जा सकता था तथा यह अपेक्षाकृत सस्ता भी था। एक हस्तनिर्मित कालीन और मशीन से बने कालीन के बीच अंतर करना बहुत आसान होता है। यदि आपके पास दोनों प्रकार की कालीन हो तो बस कुछ चीजों को देखकर आप उन दोनों के बीच आसानी से अन्तर कर सकते हैं। जैसे एक हस्तनिर्मित कालीन एक विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए करघे के उपयोग के साथ बनाया गया है, जिसमें बाकी का काम हाथ से किया जाता है। इसके विपरीत, मशीन द्वारा बनाए कालीन, स्वचालित होते हैं और वर्तमान समय में ज्यादातर कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं। इसकी सहायता से कालीन, हस्तनिर्मित कालीनों की अपेक्षा बहुत ही तीव्र गति से बनाये जा सकते हैं। इतनी मात्रा के उत्पादन में हस्तनिर्मित विधि को कई साल लग सकते हैं। मशीन से बने कालीनों में सिंथेटिक (Synthetic) सामग्री का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है, जबकि हस्तनिर्मित कालीनों में ऊन सबसे अधिक प्रचलित सामग्री है। इन्हें पहचानने के लिए सेल्वेज (Selvedge) को भी देखा जा सकता है, जोकि कालीन का बाहरी, लंबा भाग है। यह बाने के धागों के बाहरी किनारों को मोड़कर बनाया जाता है, जिसे बाद में लपेटा जाता है और एक साथ रखा जाता है। मशीन से बने कालीन पर सेल्वेज आमतौर पर बहुत बारीक और सटीक होती है, जबकि एक हस्तनिर्मित कालीन में किनारों को हाथ से सिला जाता है, जिससे अक्सर कालीन के किनारे कुछ असमान हो जाते हैं और पूरी तरह से सीधे नहीं होते। मशीन से बने कालीन पर पैटर्न (Pattern) और डिजाइन भी आमतौर पर बहुत सटीक होते हैं।
डिजाईनों का विन्यास आमतौर पर एक समान होता है, किन्तु हाथ से बने कालीन के डिजाइन में कुछ विसंगतियां पाई जाती हैं। अक्सर कालीन बुनने वाले व्यक्ति किसी डिज़ाइन का उपयोग नहीं करते जिसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच आकर्षक विषमता उत्पन्न होती है। एक मशीन और हस्तनिर्मित कालीन के बीच अंतर को देखने के लिए उसके पीछे के भाग की भी जांच की जा सकती है। मशीन से बने कालीन के पिछले भाग पर गाँठ और बुनाई लगभग हमेशा सही और समान होती है, जबकि हस्तनिर्मित कालीनों के पिछले भाग पर गांठ और बुनाई पूरी तरह से परिष्कृत नहीं होती। मशीन से बने कालीन का आकार सभी जगह से एक समान और सटीक होता है, जबकि हस्तनिर्मित कालीन में कुछ मामूली असमानता आ सकती है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र बुनाई करघा के चित्र के साथ जारी पोस्टकार्ड से उद्धृत है। (Pinterest)
2. TM158 मजबूत कैलिको लूम नियोजित फ्रेमिंग और कैटलो पेटेंट डोबी के साथ (Wikipedia Commons)
3. करघा से बुनाई करता एक उत्तर भारतीय बुनकर (Peakpx)
4. आधुनिक लूस रीड बिजली करघा (Wikipedia)
सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Power_loom
2. https://jaunpur.prarang.in/posts/723/postname
3. https://www.carpetvista.com/blog/54/machine-vs-handmade
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Loom
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