सडकों का जाल विकास या विनाश ?

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
25-04-2020 09:30 AM
सडकों का जाल विकास या विनाश ?

विकासशील देशों में निर्माण कार्य बहुत तेज़ी से होता है, क्यूँकि उनकी भौतिक और समाजिक संरचना विकसित देशों की अपेक्षा कमतर होती है। विकसित देशों के सामानांतर आने के लिए, विकासशील देश अपने यहाँ इमारत का निर्माण, सड़कों का निर्माण, तकनीकी क्षेत्र में तथा अन्य क्षेत्रों में भी उन्नत होने का प्रयास करते है। इस प्रगति के लिए सरकार हर क्षेत्र में एक मोटी रक़म लगाती हैं, जिससे प्रगति तो होती है, लोगों को भी इसका लाभ प्राप्त है, पर उसके अन्य नकरात्मक प्रभाव समाजिक परिवेश में देखने को मिलते है, समाज में भ्रष्टाचार, नैतिकता में गिरावट, परिस्थितक तंत्र में गड़बड़ी और भी अन्य कुप्रभाव देखने को मिलते है।

अगर हम एक उदाहरण सड़क निर्माण का ही लेकर देखे तो आसानी से समझ में आएगा कि किस तरह से विकासशील देशों में निर्माण कार्य सम्पूर्ण परिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। भारत जैसे विस्तृत विकासशील देशों में सड़क निर्माण कार्य बहुत अहम है, सड़क मार्ग ही उत्तम उपाय है दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए, आर्थिक दृष्टि से यह अत्यंत लाभकारी है, लोगों को रोज़गार तो मिलता ही है साथ ही यह व्यापार के लिए प्राण के समान है, परंतु इसका सबसे ज्यादा नकरात्मक प्रभाव हमारे परिस्थितिक तंत्र पर पड़ता है।

एक सड़क निर्माण के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरत ज़मीन की होती है, और ज़मीन अक्सर किसान के पास होती है, तो जब सड़क निर्माण का कार्य प्रारम्भ भी नहीं होता है उससे भी पहले किसनो को विस्थापन के लिए मजबूर होना पड़ता है। सरकार इन विस्थापित किसानों को अक्सर बाजार में चल रहे मूल्य के अनुसार मुआवज़ा देती है, जो कि क्षेत्रानुसार अलग-अलग होते हैं, छोटे किसानों पर इसका गम्भीर प्रभाव देखने को मिलता है, ज़मीन देकर या तो वो शहर को पलायन कर जाते है या तो ज़मींदारों के यहाँ मज़दूर बन जाते है। सड़क निर्माण का दूसरा प्रभाव पशु पक्षियों पर पड़ता है, भले ही वो मनुष्य पर आश्रित हो या नहीं, ज़मीन को समतल करके ही सड़क का निर्माण सम्भव है जिसके लिए बहुत सारे पेड़ों और जंगलो को काट दिया जाता है, जो कि पशु पक्षियों का आवास होते हैं। आवास छिन जाने के कारण इन जीवों को भी विस्थापित होना पड़ता हैं, जिसमें अक्सर उनकी मृत्यु हो जाती है, पशु पक्षियों की कुछ प्रजातियाँ इसी कारणवश विलुप्त होने के कगार पर हैं, इसके साथ ही लगातार पेड़ों के काटे जाने से विभिन्न पेड़ों की प्रजातियाँ भी लुप्त होने के कगार पर हैं।

सड़कों के किनारे जो नए पेड़ सरकार के द्वारा लगाए जा रहे है वो पारंपरिक पेड़ ना होकर आकर्षक पेड़ हैं जिनका लाभ ना तो मनुष्यों को मिल रहा है और ना ही जीवों को। जौनपुर में जिस प्रकार से अभी हाल ही में राष्ट्रीय राज्यमार्ग 56 को 4 लेन (Lane) का कार्य शुरू हुआ हो मानों वह वहां पर स्थित सैकड़ों साल पुराने पेड़ पौधों के लिए एक अकाल बन कर बरपा हो। जो सड़क आज से 2-3 वर्ष पहले तक दोनों तरफ अनेकों वृक्षों से गुंजायमान था आज वह एक रेगिस्तान में तब्दील हो चुका है। हाँ सड़क से कुछ लोगों को मोटी रकम मिली लेकिन वो रकम भी ऐसी कि जिसका किसी भी व्यवस्थित तरीके से प्रयोग नहीं किया गया और यह अल्प काल में ही ख़त्म होने की ओर अग्रसर हो चली है। सड़क, एक प्रकार से मन जाए तो विकास की आधारशिला रखती है लेकिन यह भी झुठलाया नहीं जा सकता कि यह पारिस्थितिकि तंत्र पर एक बहुत ही गहरा प्रभाव डालने का कार्य करती है।

चित्र(सन्दर्भ):
1.
मुख्य चित्र में जौनपुर से इलाहाबाद मार्ग को दिखाया गया है।, Youtube
2. दूसरे चित्र में सड़क निर्माण में लगे हुए कर्मचारी दिखाई दे रहे हैं।, Pxhere
3. तीसरे चित्र में एक निर्माणाधीन सड़क के किनारे एक रोडरोलर खड़ा है।, Pixiano
4. अंतिम चित्र में प्रतापगढ़ इलाहाबाद (NH 96) के निर्माण का दृस्य है।, Youtube
संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2Y2xzr1
2. https://www.jstor.org/stable/30302341?seq=1