ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा संचालित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) पूरे भारतवर्ष में राज्य सरकारों के सहयोग से चलाई जा रही है। बी.पी.एल. कार्डधारकों को उनके घर के 5 किलोमीटर क्षेत्र में यह योजना 100 दिन के रोज़गार की गारंटी देती है।
पूरे भारत में इस समय लॉकडाउन चल रहा है। ऐसे में सरकार द्वारा चलाई जा रही सामाजिक योजनाएँ ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं। पिछले कुछ समय से कुछ ज़िलों में इस योजना को लेकर चल रहे फ़र्ज़ीवाड़े पर सरकार ने कड़े कदम उठाए हैं। जौनपुर में मज़दूर की फ़रियाद कोई नहीं सुन रहा और मनरेगा का काम धड़ल्ले से जे सी बी के द्वारा हो रहा है, जौनपुर में मनरेगा मज़दूरों का काम ग्राम प्रधान अब जेसीबी मशीन से करवाने लगे हैं। शुरुआत में दिखावे के लिए 8-10 मज़दूर लगवाकर काम शुरू किया जाता है। जैसे ही 2-3 दिन बीतते हैं , जेसीबी से काम ख़त्म करवाया जाता है।हालात यह हैं कि मनरेगा मज़दूर काम के लिए भटक रहे हैं। वहीं सरपंच से लेकर सम्बंधित अधिकारी तक सब अपनी जेब गर्म करने में लगे हैं। ताज़ा उदाहरण धर्मापुर विकास खंड के अंतर्गत विशेषपुर गाँव का सामने आया है। गाँव में स्थित नाले के बग़ल में चकरोड का निर्माण होना था। यह चकरोड कच्ची बननी थी। 8-10 मज़दूरों को लगाकर काम शुरू करा दिया गया। जैसे ही काम बढ़ा, मज़दूरों को छुट्टी दे दी गई। आगे का काम जेसीबी मशीन से कराया जाने लगा। मज़दूरों ने ग्राम प्रधान से शिकायत की तो उन्हें टरका दिया गया।
प्रधान ने काम करनेवालों की सूची में अपने जानने वालों के नाम दे दिये ताकि भुगतान कराने में समस्या ना आए। गाँव के रामफेर और रामधनी का कहना है कि मुख्यालय में भी सूचना दी गई लेकिन कोई झांकने भी नहीं आया। जौनपुर में सिविल लाइन बाज़ार थाना क्षेत्र के पचोखर गाँव के प्रधानपति ने मनरेगा मज़दूर के खाते से रु 4900/- निकाल लिए और उसे रु 400/- देकर चलता किया। शिकायत पर ज़िलाधिकारी ने जाँच कराई तो आरोप सही निकला। प्रधान को गिरफ़्तार कर लिया गया।
सरकार ने मनरेगा योजना के अंतर्गत बनाये लगभग 1 करोड़ फ़र्ज़ी जॉब कार्ड्स निरस्त किए हैं। ऐसा करके सरकार ने फंड लीकेज के बड़े स्रोत पर ढक्कन लगा दिया है। लगभग 9.3 मिलियन जॉब कार्ड्स को हटाने से फ़र्ज़ी लाभार्थियों की संख्या 31 मिलियन से अधिक घट गई। अधिकारियों का कहना है कि मनरेगा स्कीम की छवि को साफ़ करने की ज़रूरत तब महसूस की गई जब तीव्र गति से राशि का बहाव हुआ और बहुत से राज्यों से राशि के दूसरे मदों में इस्तेमाल की शिकायतें आयीं। ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा ने बताया- हमने घर-घर जाकर मनरेगा कर्मचारियों की सत्यता की जाँच की। हमने दो चीज़ों पर ध्यान केंद्रित किया- काम ढूँढने वालों के विस्थापन और उनकी मृत्यु पर। सबसे अधिक फ़र्ज़ी जॉब कार्ड्स (लगभग 21.67 लाख) मध्य प्रदेश में कैंसिल हुए जबकि उ.प्र. में लगभग 19.4 लाख। जॉब कार्ड्स एक ऐसी चाबी है जिससे न केवल रोज़गार मिलता है बल्कि भुगतान भी होता है। मनरेगा के शुरुआती वर्षों में बहुत तरह की अनियमितताओं की शिकायतें मिलती थीं। भ्रष्टाचार चरम पर था क्योंकि सारा कामकाज हाथ से होते थे।जॉब शीट में फ़र्ज़ी उपस्थिति के ज़रिए फ़ंड्स इधर से उधर हो रहे थे, फ़र्ज़ी लोगों के नाम से जॉब कार्ड्स बन रहे थे जिनका कोई अता-पता नहीं था। बहुत से मामलों में लोगों के पास कई -कई जॉब कार्ड्स होते थे। पिछले एक साल में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक मिशन के तौर पर काम शुरू किया। लाभार्थीयों की इलेक्ट्रॉनिक उपस्थिति और आधार आधारित भुगतान व्यवस्था के द्वारा भी सरकार का मानना है कि पूरी तरह से व्यवस्था को दुरुस्त करने में अभी और वक़्त लगेगा।
2018-19 के आर्थिक सर्वे ने यह सिद्ध किया कि कैसे तकनीक ने भारत सरकार को ‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी एक्ट (MGNREGA) में धन के दुरुपयोग को रोकने में सहायता की। इसने त्रिमूर्ति जनधन, आधार और मोबाइल भुगतान कार्यक्रमों (JAM) को सफल बनाया। राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (NeFMS) ने सरकार को ज़्यादा सही आँकड़े दिए कि कितने कर्मचारी वास्तव में लाभार्थी हैं और वो काम पर भी आ रहे हैं। ‘काम के बदले अनाज’ योजना के पीछे कौटिल्य के अर्थशास्त्र के शासन कला, आर्थिक नीति और सैन्य रणनीति आधार रही है। जॉन कीन्स (John Keynes) जिसने इस सिद्धांत को प्रचारित किया खुद उससे एक शताब्दी पहले लखनऊ के नवाब आसफ़ुद्दौला ने ‘काम के बदले अनाज’ योजना 1784 में पड़े अकाल से निबटने के लिए शुरू की थी। आज के समय में भारत की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी क़ानून (मनरेगा ) तकनीक के माध्यम से ‘काम के बदले अनाज’ योजना को वित्तीय और आर्थिक समावेश से पूर्णता प्रदान करना चाहती है।
2005 में योजना की शुरुआत से कुछ मुद्दे आड़े आते रहे।लेकिन डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (Direct Benefit Transfer, DBT) और आधार से जुड़े भुगतान (ALP) के माध्यम से सरकार ने मज़दूरी के भुगतान में विलम्ब कम किया, राजनीतिक दख़ल और भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया और पैसे के दुरुपयोग पर रोक लगाई। DBT के लिए कर्मचारियों के बैंक खातों की आवश्यकता को प्रधानमंत्री ‘जन-धन-योजना’ के माध्यम से हल किया गया।
आधार से जुड़ी भुगतान व्यवस्था के कारण अब सरकार छद्म लाभान्वितों के मकड़जाल से मुक्त हो गई है। वास्तविक कर्मचारी को उसका देय भुगतान मिल रहा है। मोबाइल एप्स जैसे ग्राम संवाद मोबाइल एप और जनमनरेगा से ग्रामीण कर्मचारी को सीधे सूचना उपलब्ध होती है और वह अपना फ़ीडबैक भी भेज सकते हैं कि कामकाज कैसा चल रहा है। इससे माँग और आपूर्ति के अंतर को कम करने में मदद मिल रही है। समाज के उपेक्षित वर्ग के सदस्य महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की इस योजना में भागीदारी बढ़ी है। आगे बढ़ते हुए सरकार रोज़गार की संख्या बढ़ाने, कर्मचारियों की योग्यता सुधारने, JAM के उपयोग के विस्तार के साथ-साथ डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रयोग से मनरेगा में मज़दूरी के अलावा माइक्रो इंस्युरेन्स, माइक्रो पेंशंस और माइक्रो क्रेडिट्स की सुविधा समाज के पिछड़े लोगों तक पहुँचाने को संकल्पबद्ध है।
कोई भी व्यक्ति जिसने रोज़गार के लिए मनरेगा में आवेदन किया है और उसे जॉब कार्ड प्राप्त नहीं हुआ है, या उन्हें मज़दूरी नियमित रूप से नहीं मिलती, या कम पैसे मिलते हैं इत्यादि समस्याओं के लिए वह लाभार्थी अपनी शिकायत सम्बंधित राज्य अधिकारी के पास ऑनलाइन भेज सकते हैं।
कब कर सकते हैं, मनरेगा सम्बन्धी शिकायत दर्ज -
रजिस्ट्रेशन /जॉब कार्ड
1. यदि ग्राम पंचायत, योग्य व्यक्ति को जॉब कार्ड के लिए रजिस्टर न कर रही हो।
2. यदि ग्राम पंचायत ने जॉब कार्ड जारी न किया हो।
3. अगर मज़दूरों को जॉब कार्ड वितरित न किया गया हो।
भुगतान-
1. भुगतान में देरी
2. आंशिक भुगतान
3. कोई भुगतान नहीं
4. ग़लत तरीक़े का प्रयोग
नाप-
1. समय से नपाई न होना।
2. सही नपाई न होना।
3. नपाई के लिए इंजीनियर का न आना।
4. नपाई का संयंत्र उपलब्ध न होना।
काम के लिए माँग-
1. माँग रजिस्टर न करना
2. तारीखवार रसीद न देना।
काम का आबँटन
1. काम उपलब्ध न होना।
2. पाँच किलोमीटर के अंदर काम न मिलना।
3. TA/DA (आने-जाने का खर्च) न देना जबकि काम की जगह 5 KM से दूर हो।
4. समय पर काम का आवंटन न करना।
काम का प्रबंध-
1. काम के अवसर न पैदा करना।
2. कार्यस्थल पर कोई स्वास्थ्य व्यवस्था न होना।
3. कुशल/ अर्धकुशल नियमानुसार वेतन न देना।
बेरोज़गारी भत्ता-
1. बेरोज़गारी भत्ते का भुगतान न होना।
2. आवेदन स्वीकार न करना।
निधि (Fund)-
1. फंड उपलब्ध नहीं।
2. फंड खाते में ट्रांसफ़र नहीं हुआ।
3. निधि पारगमन(Transit) में हो।
4. बैंक पैसे ट्रांसफ़र करने के लिए पैसे माँगे।
सामग्री -
1. सामग्री उपलब्ध न होना।
2. क़ीमतों में बढ़ोतरी।
3. ख़राब गुणवत्ता की सामग्री।
कौन शिकायत दर्ज कर सकता है -
1. कर्मचारी
2. निवासी
3. NGOs
4. मीडिया
5. अति विशिष्ट व्यक्ति
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में उत्तर प्रदेश में मनरेगा में कार्यरत ग्रामीणों को दिखाया गया है।, Mgnrega
2. चित्र में उत्तर प्रदेश में मनरेगा में कार्यरत ग्रामीणों को दिखाया गया है।, Mgnrega
3. चित्र में उत्तर प्रदेश में मनरेगा में कार्यरत ग्रामीणों को दिखाया गया है।, Prarang
4. चित्र में उत्तर प्रदेश में मनरेगा में कार्यरत ग्रामीणों को दिखाया गया है।, Youtube
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2Y03SGN
2. https://www.patrika.com/jaunpur-news/reality-of-manrega-work-n-jaunpur-1279874/
3. https://bit.ly/2zrtiTF
4. https://nrega.nic.in/Netnrega/stHome.aspx
5. https://bit.ly/2Y74D17
6. https://bit.ly/354Fg1o
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