जीवन जीने का सही अर्थ छिपा है यातना और मुमुक्षु में

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
16-04-2020 09:40 AM
जीवन जीने का सही अर्थ छिपा है यातना और मुमुक्षु में

‘जीवन जीने का अगर कोई मतलब होता है, तो यातना का भी कोई मतलब ज़रूर होगा। यातना जीवन का ऐसा हिस्सा है जिसे समूल नष्ट नहीं किया जा सकता। बिना यातना और मृत्यु के मनुष्य का जीवन पूरा नहीं हो सकता।’
जीवन के अपने सबसे मुश्किल दौर में ऑस्ट्रीयन (Austrian) मनोचिकित्सक और द्वितीय विश्वयुद्ध की त्रासदी के भुक्तभोगी यहूदी विक्टर एमिल फ्रैंकल (Viktor Emil Frankl) ने नाज़ियों के यातना शिविर में एक क़ैदी के रूप में जीवन जीने का मतलब खोजते हुए यह निष्कर्ष निकाला था। उन्होंने उस दौर में अपना सब कुछ, यहाँ तक कि पूरा परिवार भी खो दिया था। फिर भी अपने ज़िंदा बचे रहने को लेकर विक्टर फ्रैंकल ने ‘Man’s Search For MEANING (मेंज सर्च फॉर मीनिंग)’ शीर्षक से एक अनोखी किताब लिखी। 1946 में प्रकाशित यह किताब मनोवैज्ञानिक वृत्तांत है। विक्टर फ्रैंकल को उनके सवाल का जवाब तीन माध्यमों से मिला- सोद्देश्य काम, प्यार और मुश्किल दौर में साहस। उनकी पत्नी को कैम्प में मार दिया गया था। ‘प्यार बहुत दूर चला जाता है, सबसे प्रिय के गुज़र जाने पर प्यार अपना सबसे गहरा अर्थ अपने आध्यात्मिक होने में, अपने भीतर से ढूँढता है। चाहे वह साक्षात मौजूद हो या नहीं, चाहे वह ज़िंदा हो या ना हो, मरकर महत्वपूर्ण हो जाता है।’ विक्टर फ्रैंकल अपनी यातना का कारण जानने के लिए मानसिक संघर्ष से गुज़र रहे थे। तिल-तिल मरने का एहसास उन्हें बहुत सारे सवालों से जोड़ रहा था। वह हास्य को आत्मरक्षा का एक हथियार बताकर लिखते हैं- ‘यह सबको मालूम है कि हास्य में दुनिया की किसी भी चीज़ से ज़्यादा क्षमता है और हास्य मनुष्य को किसी भी परिस्थिति से उबार लेता है चाहे सिर्फ़ कुछ क्षणों के लिए। हास्य पैदा करने की कोशिश और चीजों को मज़ाक़िया रोशनी में देखना एक प्रकार का नुस्ख़ा था जो मैंने यातना शिविर में जीने की कला सीखने के दौरान महसूस किया। हालाँकि यातना सर्वभूत है।’

विक्टर फ्रैंकल इस कल्पना को चुनौती देते हैं कि मनुष्य निरंतर अपने हालातों से गढ़ा जाता है-‘लेकिन मानवीय स्वतंत्रता का क्या? क्या कोई आध्यात्मिक आज़ादी नहीं है, हमारे ऊपर थोपी गई परिस्थितियों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के लिए? सबसे ज़रूरी सवाल क्या यातना शिविर की दुनिया के प्रति क़ैदी द्वारा दी गई प्रतिक्रिया यह साबित करती है कि वह अपने वातावरण के प्रभावों से बाहर नहीं निकल सकता है? क्या उस स्थिति में व्यक्ति के पास कोई विकल्प नहीं है ?’

विक्टर फ्रैंकल आगे लिखते हैं कि इन सवालों का जवाब व्यक्तिगत अनुभव और नियम के आधार पर दिया जा सकता है। यातना शिविर के अनुभव यह दिखाते हैं कि व्यक्ति के पास कार्रवाई चुनने का हक़ है। वह आध्यात्मिक और मानसिक आज़ादी के निशान इस भयावह मानसिकता और शारीरिक तनाव में भी संरक्षित रख सकता है। इंसान से हर चीज़ छीनी जा सकती है लेकिन एक चीज़,मानवीय स्वतंत्रता की आख़िरी कड़ी -किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति का आचरण और अपना रास्ता चुनने का अधिकार नहीं।’

उद्देश्य का मनोविज्ञान
मानवीय उद्देश्य पर आधुनिक वैज्ञानिक शोध की शुरुआत नाज़ी यातना शिविरों में क़ैदी रहे मनोविज्ञानी विक्टर फ्रैंकल के अनुभवों पर आधारित है। विक्टर फ्रैंकल ने अनुभव किया कि उनके साथी क़ैदी जिनके पास अपने उद्देश्य की भावना थी, उन्होंने अपने प्रति हो रहे अत्याचारों का बहुत लचीलेपन से मुक़ाबला किया। दासों की तरह काम किया,भूखे रहकर यातना सहन की। बाद में अपने अनुभव लिखते समय विक्टर फ्रैंकल ने फ़्रेडरिक नीत्शे (Frederick Nietzsche) का एक वाक्य उद्धृत किया-‘जिनके पास जीने का एक कारण था, वह किसी भी प्रकार का अत्याचार झेल सकते थे ।’ 1959 में प्रकाशित विक्टर फ्रैंकल की किताब ‘Man’s Search For Meaning’ में बहुत गहराई से ‘अर्थ और उद्देश्य’ की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में लेखक ने अपनी अवधारणा व्यक्त की है। दस वर्ष बाद इस विषय से सम्बंधित एक सर्वे में फ्रैंकी ने सहयोग किया। यह था- ‘21 सूत्रीय ‘Purpose of Life’(जीवन का उद्देश्य) टेस्ट।

कैसे मापते हैं उद्देश्य?
मनोवैज्ञानिक भाषा में,आम सहमति से उद्देश्य की एक परिभाषा सामने आई है जिसके अनुसार उद्देश्य एक स्थिर और सामान्य आशय है जिससे कुछ काम पूरा किया जा सके जो अभी अर्थपूर्ण है और साथ ही वह किसी उत्पादक काम से अपने से अलग, दुनिया के नज़रिए से जोड़ता है।सारे लक्ष्य और व्यक्तिगत सार्थक अनुभव मक़सद में योगदान नहीं देते लेकिन लक्ष्य सम्बन्धी दिशा निर्देशों में व्यक्तिगत अर्थपूर्णता,अपने से अलग ध्यान केंद्रित करने हेतु उद्देश्य की एक अलग धारणा निकल कर आती है। शब्द चित्र की सामर्थ्य भाषा के व्याकरण सम्बन्धी जो नियम हम प्रयोग करते हैं , उनका कारण और प्रभाव सीधा (Linear) होता है । इनकी शाब्दिक अपर्याप्तता को दृश्यात्मक नक़्शों की सहायता से बेहतर बना सकते हैं। इसमें हम शब्दों के साथ-साथ तस्वीरों,नमूनों और आरेखन की मदद से भी संवाद करते हैं। कोई रास्ता खोजकर जिससे मस्तिष्क की विविध प्रकार की परिस्थितियों द्वारा व्याख्या की जा सके, विक्टर फ्रैंकी ने निम्नलिखित रूपक(Metaphor) का प्रयोग किया - एक ठोस पदार्थ जैसे सिलिंडर ,गोला या कोन(cone) की छाया अलग-अलग होती है। भिन्नता सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि किस दिशा से हम उसके ऊपर रोशनी डालते हैं। इसी प्रकार दिमाग़ और स्वभाव का द्वन्द्व अलग-अलग दिखता है क्योंकि यह इस बात पर निर्भर होता है कि दर्शक कैसे विभाजन करता है,कौन से सवाल वह करता है और बातचीत के कौन से नेटवर्क्स(Networks) पर वह ध्यान केंद्रित करता है।

सार्थक जीवन के लक्ष्य
एक सार्थक जीवन का अर्थ है कि हमारे अस्तित्व से जुड़े उद्देश्यों को हमने कितना पूरा किया -
1. पुरुषार्थ - (पुरुष माने मनुष्य और अर्थ माने उद्देश्य )
2. धर्म - (न्याय परायणता)
3. अर्थ-(धन - दौलत)
4. काम- (इच्छाएँ)
5. मोक्ष- (मुक्ति)

आधुनिक समाज ने थोड़ा-बहुत अर्थ और काम को तो स्वीकार कर लिया है लेकिन पहले और अंतिम उद्देश्य को अनदेखा करने के पीछे कुछ स्पष्ट कारण हैं।धर्म को ग़लती से पुजारी का काम मान लिया गया है और उसका अनादि सत्य वाला सच्चा सार चलन में नहीं रह गया।जहां तक मोक्ष का मामला है, कुछ लोग इसे पौराणिक कहानियों के लिए ही उपयुक्त मानते हैं।समस्या यह है कि बिना चीजों के बारे में जाने हम उनकी अनदेखी करने लगते हैं।कुछ यह महसूस करते हैं कि आचार (रस्म-रिवाज) ज़रूरी नहीं हैं, वहीं दूसरे यह मानते हैं कि विचार (ज्ञान) का कोई उपयोग नहीं है जबकि कुछ की राय यह है कि मोक्ष हमें कहीं नहीं पहुँचाता।लेकिन आचार हमें विचार तक और विचार के बाद हम मोक्ष तक पहुँचते हैं।क्या आचार का अर्थ सिर्फ़ रस्म-रिवाज है? नहीं, आचार का मतलब सही व्यवहार है।यह अनुशासन से सम्भव होता है।इसके लिए हमें सही काम सही समय पर करने की आदत डालनी होती है।इसे आचार कहते हैं।विचार का मतलब है ज्ञान।यह सबसे अधिक पवित्र और प्रेरणादायक होता है।ज्ञान को सदव्यवहार का सहारा ज़रूरी होता है वरना कभी-कभी ज्ञान का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ जाता है।इसके उदाहरण मिलते हैं कि जघन्य अपराध बहुत ही मेधावी लोगों द्वारा किए गए जिन्होंने ज्ञान को नकारात्मक उद्देश्य से अपने यहाँ रोज़गार दिया।इसलिए यह ज़रूरी है कि ज्ञान को सही रास्ता अच्छे आचरण से दिखाया जाए।यह सही व्यवहार सही ज्ञान के साथ मोक्ष पाने की दिशा में पहला क़दम है।

अब ,मोक्ष क्या है? मुमुक्षु कौन है?
मुमुक्षु वह है जो बड़ी तीव्रता से इस जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने के लिए तड़प रहा है। मुमुक्षुत्व वह शक्ति है जो वैराग्य और विरक्ति का भाव पैदा करने में सहायक है।

मोक्ष किसलिए?
सूक्ष्म शरीर (मन और बुद्धि) के लिए जो अधूरी इच्छाओं और अनकही महत्वाकांक्षाओं को अवचेतन मन में रखे रहते हैं।वास्तव में मुमुक्षुत्व वह तरीक़ा है जिससे मन के कबाड़ को साफ़ किया जाता है।सच्चा मुमुक्षु कभी जीवन की ज़िम्मेदारियों से भागता नहीं है।वह सामान्य तौर पर दूसरों की तरह अपना काम करता है,फ़र्क़ इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस तरीक़े से अपने काम को ग्रहण करता है और कैसे उसे पूरा करता है।वह पूरे मन से काम करता है लेकिन अपनी सफलता को अपने सिर नहीं चढ़ने देता।वह दुनिया की मुसीबतों से डरता नहीं है,लेकिन उसकी आकांक्षा होती है पवित्रता को प्राप्त करना,अनंतकाल तक सच्ची ख़ुशी प्राप्त करना जिसकी कोई सीमा न हो और जो समय, स्थान और कारणत्व के बंधनों से मुक्त हो।

निर्बंध जीवन के चार लक्ष्य
जीवन के चार लक्ष्य - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हरेक की ज़िंदगी के लिए ज़रूरी होते हैं। अर्थ से आर्थिक सुरक्षा तो मिलती ही है,जीवन के सभी कामों के पूरा होने के पीछे आर्थिक आत्मनिर्भरता ज़रूरी शर्त है।काम के द्वारा आनंद की प्राप्ति होती है।हमें यह समझना चाहिए कि अपने हर पल का क्या सार्थक उपयोग कर सकें।संसारी लक्ष्यों की पूर्ति में अर्थ और काम का बड़ा योगदान होता है।तीसरा लक्ष्य धर्म है।हमें दूसरों के प्रति भी उतना ही संवेदनशील होना चाहिए जितना अपने प्रति।यही धर्म का मूल संदेश है।एक संसारी व्यक्ति होने के कारण मनुष्य को दूसरों को सम्मान,स्नेह और सहयोग देना अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए ज़रूरी होता है।एक तरह की ज़िंदगी निरंतर जीते-जीते व्यक्ति उससे ऊब जाता है और अपने अंदर बड़ा ख़ालीपन महसूस करने लगता है।इस ख़ालीपन से मुक्ति की इच्छाउसे अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक पहुँचा देती है।जो जीवन की सीमाओं से मुक्ति चाहते हैं,निर्बंध जीवन जीना चाहते हैं, उन्हें मुमुक्षु कहते हैं।

सन्दर्भ:
1. https://www.speakingtree.in/blog/what-is-moksha-who-is-a-mumukshu
2. http://vedantamission.tripod.com/Pub/1Read/TBodha-1.htm
3. https://www.brainpickings.org/2013/03/26/viktor-frankl-mans-search-for-meaning/
4. https://www.templeton.org/discoveries/the-psychology-of-purpose
5. http://www.shabdachitra.com/basics/vv
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र के पार्श्व में विक्टर फ्रैंकी द्वारा लिखित पुस्तक मेंज सर्च फॉर मीनिंग और विक्टर फ्रैंकी का चित्र दृश्यांवित है।
2. Wikimedia Commons - द्वितीय चित्र में सन डिएगो विश्वविद्यालय (Universit
y of San Diego) में सभा को सम्बोधित करते हुए विक्टर फ्रैंकी दृश्यांवित हैं।
3. तृतीय चित्र पूर्णतः कलात्मक अभिव्यक्ति है।