धरती पर मानव जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जल बहुत ही जरूरी है। जल के बिना धरती पर किसी जीवन की कल्पना करना संम्भव नहीं है, किंतु आज भी भारत में 163 मिलियन (16.3 करोड़) से अधिक लोग ऐसे हैं जिनकी पहुंच स्वच्छ जल तक नहीं है। यह आंकड़ा पूरी दुनिया में सबसे अधिक है। वाटरएड (WaterAid) द्वारा किए गये एक नये अध्ययन के अनुसार यह जलवायु परिवर्तन के कारण जल संसाधनों पर कई चुनौतियों का सामना भी करता है। भारत के बाद लगभग 60 लाख से अधिक लोगों के साथ इथियोपिया (Ethiopia) एक ऐसा देश है जहां पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। इस समस्या का मुख्य कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति तथा वित्त की कमी को माना जाता है जिसकी वजह से विश्व का 11 प्रतिशत हिस्सा स्वच्छ पानी की पहुंच के बिना है। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भारत में भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। 2013 में भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए एक मास्टर प्लान (Master Plan) तैयार किया गया था लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया जा सका क्योंकि अधिकांश राज्य सरकारें इसमें बाधा उत्पन्न कर रही हैं। योजना के तहत देश 79,178 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ 1,110 मिलियन कृत्रिम रिचार्ज संरचनाओं (Artificial recharge structures) का निर्माण करेगा। हालांकि, जुलाई 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से पूछा कि उन्होंने इस बारे में हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया कि वे योजना को लागू करेंगे या नहीं। यह चिंताजनक है क्योंकि देश अपनी पेयजल जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है।
यूं तो कई शहरी क्षेत्रों में पानी की पहुँच प्रदान करने के लिए पाइप लाइनें (Pipe lines) तैयार की गयी हैं, लेकिन नलों से पानी निकाल पाना आसान काम नहीं है। पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (People's Research on India's Consumer Economy - PRICE) के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत के 90% शहरी परिवार पीने योग्य पानी के लिए पाइप लाइनों का इस्तेमाल करते हैं, किंतु पानी की कमी के चलते नलों से पानी निकालना एक चुनौती बन गया है। गर्मी के दिनों में यह समस्या और भी अधिक बढ जाती है जब अधिकतर जलाशय सूख जाते हैं तथा भूजल स्तर कम हो जाता है। 2014-18 में जल लाइनों में वृद्धि 6.7 दर्ज की गयी जो पहले की तुलना में अधिक थी। ग्रामीण भारत की यदि बात करें तो यहां यह वृद्धि (28 प्रतिशत) शहरों में हुई वृद्धि (22 प्रतिशत) की तुलना में अधिक थी। भारत में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य उन राज्यों में से हैं, जहां पाइप लाइनों के माध्यम से पानी केवल आधे घरों तक ही पहुंचा है। समस्या केवल सभी तक पाइप लाइनें पहुंचाने की ही नहीं बल्कि यह भी है कि इनके द्वारा उपलब्ध कराया जाने वाला पानी पीने योग्य भी हो। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल (National Health Profile) द्वारा जारी किये गए आंकड़े हैजा, डायरिया (diarrhoeal ) संबंधी बीमारियों और टाइफाइड (typhoid) के मामलों में वृद्धि दर्शाते हैं। गर्मियों के महीनों के दौरान भारत के कई हिस्सों को पानी की गंभीर कमी और सूखे का सामना करना पड़ता है। इस पानी की कमी का कारण जमीनी स्तर पर है अर्थात असतत पानी की खपत और जल आपूर्ति के प्रबंधन के अवैज्ञानिक तरीके। पारंपरिक जल स्रोतों तथा भूजल रिचार्जिंग पॉइंट (recharging points) जैसे टैंक (tank), तालाब, नहरों और झीलों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। ये संसाधन या तो प्रदूषित हैं या फिर अन्य प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। केवल समाज के सभी हितधारकों की रचनात्मक भागीदारी ही इस समस्या को हल कर सकती है। जल आपूर्ति का उचित प्रबंधन, वर्षा जल संचयन तथा संसाधनों का उपयुक्त दोहन इस समस्या से उभरने में मदद कर सकता है।
इस समस्या का सबसे बुरा असर महिलाओं के जीवन पर पडता है। भारत में जल संग्रह का काम आमतौर पर महिलाओं को सौंपा जाता है। चाहे कितनी भी शारीरिक दिक्कत क्यों न हो लेकिन जल संग्रह करने का काम महिलाएं ही करती हैं। हालांकि शहरों में अधिकाँश पानी की आपूर्ति पाइपलाइनों द्वारा हो जाती है किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाओं को पानी के लिए कई मील की दूरी तय करनी पड़ती है। इस प्रकार इन क्षेत्रों में महिलाओं को प्लास्टिक (Plastic) या मिट्टी बर्तन में पानी ले जाते देखा जा सकता है। पूरे दिन भर यह प्रक्रिया दो या तीन बार बनी रहती है। चूंकि अति-निर्भरता और निरंतर खपत के कारण भूजल संसाधनों पर दबाव अत्यधिक बढ़ता जा रहा है इसलिए कुएं, तालाब और टैंक भी सूखने लगे हैं, जो जल संकट को बढ़ा सकते हैं। इसका सीधा-सीधा असर लंबी दूरी तय करने वाली महिलाओं पर पड़ता है। असुरक्षित पेयजल के उपयोग से जल जनित रोगों का प्रसार भी होता है। और महिलाएं अक्सर पानी की कमी और जल प्रदूषण दोनों की पहली शिकार होती हैं। शहरी क्षेत्रों में भी रंगीन प्लास्टिक के पानी के बर्तनों के साथ महिलाओं की लंबी कतारें दिखाई देती हैं। शहरी महिलाएं, विशेष रूप से शहरों के बाहरी इलाकों और मलिन बस्तियों में रहने वाली महिलाएं पानी की कमी के विशेष बोझ का सामना करती है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां कभी-कभी, रात के बीच में पानी की आपूर्ति की जाती है, तथा महिलाएं नींद से वंचित होकर पानी एकत्रित करने का कार्य करती है। कई क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा से पूरी तरह वंचित रखा जाता है क्योंकि उन्हें स्कूल जाने के बजाय पानी इकट्ठा करना पड़ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 23% लड़कियां पानी और स्वच्छता सुविधाओं की कमी के कारण युवावस्था में स्कूल नहीं जा पाती हैं। उन्हें पानी इकट्ठा करने और घर के अन्य कार्यों में अपनी माता की मदद करने के लिए स्कूल से वंचित कर दिया जाता है। इस तरह की छवियां स्वच्छ पानी की कमी की समस्याओं तथा प्रभावों को उजागर करती हैं। जो यह दिखाती हैं कि कैसे महिलाएं लंबे समय से पानी की इस समस्या से जूझ रही हैं।
सन्दर्भ:
1. https://timesofindia.indiatimes.com/india/why-tap-water-to-every-home-is-not-a-pipe-dream/articleshow/69852764.cms
2. https://www.downtoearth.org.in/news/water/19-of-world-s-people-without-access-to-clean-water-live-in-india-60011
3. https://qz.com/india/1431496/in-india-women-bear-the-burden-of-water-scarcity/
चित्र सन्दर्भ:
1. youtube.com - water crisis
2. prarang archive
3. publicdomainpictures.net - water india
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