पृथ्वी पर 1.67 मिलियन विषाणु हैं और अनुमानित 631,000 से 827,000 लोगों को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन सभी विषाणु बीमारी और मृत्यु की स्थिति उत्पन्न नहीं करते हैं, कुछ विषाणु हमें बिना कोई नुकसान पहुंचाए भी रहते हैं और कुछ हमारे अपने जीव विज्ञान को बढ़ाने में शामिल हो सकते हैं। साथ ही ये हमारे माइक्रोबायोम (microbiome) का भी हिस्सा बन सकते हैं। बस हमें ये जानना होगा कि विषाणु केवल हमारे दुश्मन नहीं हैं, बल्कि ये हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभाते होंगे। साथ ही, प्रत्येक व्यक्तियों को किसी भी प्रकार की दवाइयों को लेने से पहले सतर्कता रखनी होगी।
दरसल, विषाणु कोई जीवित जीव नहीं होते हैं, बल्कि ये कुछ डीएनए (DNA) या आरएनए (RNA) को घेरने वाले प्रोटीन की चादरें हैं। इसके अलावा ये बिना मेजबान के जीवित रहने में सक्षम नहीं होते हैं, उन्हें प्रतिकृति के लिए आवश्यक अन्य सभी कोशीय तन्त्र वाले पारिस्थितिकी तंत्र की तलाश होती है। यानि उन्हें बढ़ने के लिए किसी जानवर के शरीर की आवश्यकता होती है और मनुष्य भी तो एक तरह से जानवर ही है। इसलिए विषाणु मनुष्य को ठीक उसी उद्देश्य से संक्रमित करता है, जिस उद्देश्य से वे चमगादड़ या सिवेट बिल्ली को संक्रमित करते हैं। कुछ विषाणु मानव शरीर को काफी लाभ पहुंचाते हैं, जैसे बैक्टीरियोफेज एक प्रकार का विषाणु है जो विशिष्ट जीवाणु को संक्रमित और नष्ट करते हैं। वे पाचन, श्वसन और प्रजनन पथ में श्लेम झिल्ली में पाए जाते हैं। ये हमलावर जीवाणु के विरुद्ध एक शारीरिक अवरोध प्रदान करते हैं और अंतर्निहित कोशिकाओं को संक्रमित होने से बचाते हैं। वहीं कुछ विषाणु संक्रमण हमारे लिए लाभदायक भी होते हैं, जो कम उम्र में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के समुचित विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, अन्य संक्रमणों के प्रतिरोध को विकसित करने के लिए पर्याप्त स्तर पर दैहिक विषाणु द्वारा प्रतिरक्षा प्रणाली को लगातार उत्तेजित किया जाता है।
इसके साथ ही केवल मनुष्यों को ही नहीं बल्कि ये विषाणु पौधों के लिए कई तरह की सेवाएं भी प्रदान करते हैं। उष्ण जल स्रोत के आसपास गर्म मिट्टी में कुछ पौधे उगते हैं। ऐसे ही उष्णकटिबंधीय आतंक घास, एक प्रकार के सहजीवी होते हैं इनमें एक कवक निर्भर रहता है, जो पौधे को उपनिवेशित करते हैं और इस कवक को विषाणु द्वारा संक्रमित किया जाता है। इस सहजीवन के तीनों सदस्य 122 डिग्री फ़ारेनहाइट (Fahrenheit) से अधिक मिट्टी में ही जीवन यापन करने में सक्षम होते हैं। आधुनिक तकनीक ने हमें सूक्ष्मजीव समुदायों (जो मानव शरीर का हिस्सा) की जटिलताओं के बारे में समझने में अधिक सक्षम बना दिया हैं। अच्छे जीवाणुओं के अलावा, अब हम जानते हैं कि मानव शरीर में आंत, त्वचा और यहां तक कि रक्त में भी लाभदायक विषाणु भी मौजूद हैं। लेकिन मनुष्यों द्वारा प्रकृति में हस्तक्षेप करने की वजह से आज हम ऐसे कई विषाणुओं के संपर्क में आ चुके हैं जिनके बारे में विज्ञान के पास अधिक जानकारी मौजूद नहीं है।
विषाणु एक नाजुक संतुलन बनाकर रहते हैं, वे अपने मेजबान को मारे बिना ही पनपते हैं। यदि वे अपने मेजबान को मार देते हैं तो वे जल्द ही समाप्त हो जाते हैं, जैसा कि SARS विषाणु में भी देखा जा सकता है, ऐसे जीवाणु महामारी में नहीं बदलते हैं। ये विषाणु स्वाभाविक रूप से उत्परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। आज जिन विषयों को लेकर हम चिंतित हैं, अवश्य नहीं है कि कुछ महीनों बाद हम इन्हीं के बारे में सोचेंगे। कोरोनावायरस आने वाले समय में अधिक घातक भी हो सकता है या यह आम सर्दी की तरह कम या गायब भी हो सकता है। बड़ा मुद्दा यह है कि क्या हमारे द्वारा इस पर नज़र रखी जा रही है? क्या हमारे पास पर्याप्त डेटा और पारदर्शिता और नमूनों की उपलब्धता है? क्या वास्तविक समय में पर्याप्त खुली पारदर्शिता है जो हमें इस चिंता की तय तक जाने की अनुमति देती है?
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/33QO4XR
2. https://www.sciencedaily.com/releases/2015/04/150430170750.htm
3. http://nautil.us/issue/83/intelligence/the-man-who-saw-the-pandemic-coming
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