वर्तमान समय में सिंधी प्रवासी, चाहे वे भारत में हों या विश्व भर में, शाह अब्दुल लतीफ़ के लिए सबके मन में एक हार्दिक स्थान है, जो सिंध, पाकिस्तान के एक 18वीं सदी के सूफी कवि और पंजाबी सूफी कवि बुल्ले शाह के समकालीन थे। शाह अब्दुल लतीफ की काव्य रचना ‘शाह जो रिसालो’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता का सुन्दर वर्णन किया गया है। वहीं एक ऐसे समय में जब सिंधी भाषा कई भारतीय शहरों से तेज़ी से गायब हो रही है और सिंधी पढ़ाने वाले विद्यालय बंद हो रहे हैं, तो रिसालो सिंधी भाषा के लिए सम्मान और समुदाय की विरासत के रूप में नज़र आती है।
लतीफ की रिसालो प्यार और प्रिय की बात करती है और इसमें मदिरा और योगाभ्यास के रूपकों को भी शामिल किया गया है, जो इस्लाम के एकेश्वरवादी चरित्र को झुठलाते हैं। इसके अलावा लतीफ की कविताओं में धार्मिक सीमाओं को पार करने के बारे में तर्क मिलते हैं। लतीफ का कहना था कि ईश्वर को पाने की प्रथा किसी भी तरह से किसी एक धर्मग्रंथ द्वारा तय किए गए रास्तों से नहीं मिल सकती है। उनकी दृष्टि से सूफियों और योगियों का भगवान से प्रेम करने का तरीका समान है। वे दोनों ही ईश्वर के प्यार में एक जुनून से भस्म हैं और दोनों ही उसकी खोज अपने-अपने तरीके से करते हैं।
“राम उनकी आत्मा में बसते हैं, और वे इसके अलावा और कुछ नहीं बोलते। उन्होंने प्रेम का प्याला भर दिया और उसे गहराई से पिया। इसके बाद वे अपना घर बंद कर वहां से चले गए। उनके माथे पर बंधी हुई चोटी के साथ, योगी हमेशा विलाप करते रहते हैं। कभी भी कोई उनसे यह नहीं पूछता है कि उन्हें क्या दुख है। वे अपना पूरा जीवन कष्ट में व्यतीत करते हैं।” 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश यात्री, रिचर्ड बर्टन ने, सिंध प्रांत को धार्मिक विश्वास के अद्वितीय मिश्रणों के साथ ब्रिटिश भारत के सबसे शांत क्षेत्रों में से एक बताया। 1800 के दशक के मध्य में लिखते हुए, बर्टन ने सिंध का वर्णन कई सूफी संतों के तीर्थस्थान के रूप में किया था, जहां मुस्लिम और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में आते थे।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/32DziTC
2. https://www.dawn.com/news/1094446/old-sufis-new-challenges
3. https://en.wikiquote.org/wiki/Shah_Abdul_Latif_Bhittai
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