रहस्यमयी गाथाओं को समेटे है जौनपुर का त्रिलोचन महादेव मंदिर

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
21-02-2020 11:30 AM
रहस्यमयी गाथाओं को समेटे है जौनपुर का त्रिलोचन महादेव मंदिर

भारत को अपनी परंपरा और सांस्कृतिक विरासत के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इन सांस्कृतिक विरासतों में वे मंदिर भी सम्मिलित हैं जिनकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। जौनपुर के पास स्थित त्रिलोचन महादेव मंदिर जहां अपनी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है वहीं पर्यटन का भी मुख्य केंद्र है। त्रिलोचन महादेव मंदिर क्षेत्र का सबसे प्रमुख मंदिर है, जोकि भगवान शिव को समर्पित है और एक छोटे से कुंड के सामने बनाया गया है। किंवदंतियों के अनुसार यहां भगवान ब्रह्मा ने एक यज्ञ का आयोजन किया था जिसके बाद शिव यहां प्रकट हुए थे। मंदिर के अंदर एक शिवलिंग और कई छोटे मंदिर हैं जो अन्य देवताओं को समर्पित हैं। यह मंदिर शिवनगरी काशी से करीब 40 किमी दूर वाराणसी-लखनऊ मार्ग पर बसा है। माना जाता है कि इस धाम में पवित्र मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है, और इसलिए शिवरात्रि या सावन जैसे अवसरों पर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां स्थित शिवलिंग के संदर्भ में यह मान्यता है कि शिवलिंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है। करीब 60 साल पहले शिवलिंग की ऊंचाई 2 फ़ीट थी जबकि आज यह ऊंचाई 3 फ़ीट से भी अधिक हो गयी है। इतना ही नहीं, समय के साथ शिवलिंग की चमक भी बढ़ी है तथा शिवलिंग पर भोलेबाबा की तीसरी आंख भी साफ नज़र आने लगी है। इस घटना से महादेव पर लोगों की आस्था और भी प्रगाढ़ होती जा रही है।

भक्तों की आस्था देख कर मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। इसके अलावा मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी कराया गया है। यह मंदिर रहस्यमयी गाथाओं को समेटे हुए है। ऐसा विश्वास है कि यहां स्थित शिवलिंग कहीं से लाया नहीं गया है अपितु बाबा भोलेशंकर यहां स्वयं विराजमान हुए हैं। कहा जाता है कि मंदिर को लेकर समीपवर्ती दो गांवों रेहटी और डिंगुरपुर में विवाद था कि यह मंदिर किस गांव की सरहद के भीतर है। कई पंचायतें और तर्क-वितर्क हुए किंतु कोई परिणाम न आया। तब दोनों गांवों के बुज़ुर्गो ने फैसला किया कि यह फैसला स्वयं भगवान भोलेनाथ करेंगे और उन्होंने मंदिर को बाहर से बंद कर अपने-अपने पक्षों का ताला जड़ दिया और घर चले गए। अगले दिन जब पक्षों के लोग मंदिर पहुंचे तो शिव लिंग स्पष्ट रूप से उत्तर दिशा में रेहटी ग्राम की तरफ झुका हुआ था जिसे देख लोग आश्चर्यचकित हो गये। तभी से उस शिव मंदिर को रेहटी गांव में माना जाता है।

मंदिर के सामने पूर्व दिशा में रहस्यमयी ऐतिहासिक कुंड भी है जिसमें हमेशा जल रहता है। मान्यता है कि कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है। त्रिलोचन महादेव मंदिर जाने का रास्ता बहुत आसान है। काशी विश्वनाथ से यह मंदिर महज़ एक घंटे की दूरी पर स्थित है तथा सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों का प्रयोग मंदिर पहुंचने के लिए किया जा सकता है। यदि आप सड़क मार्ग का प्रयोग कर रहे हैं तो आप वाराणसी से लखनऊ राजमार्ग के ज़रिए मंदिर पहुंच सकते हैं। वाराणसी से करीब 40 किमी दूर त्रिलोचन बाज़ार स्थित है। यहां से दाहिने हाथ पर त्रिलोचन महादेव मंदिर का दरवाज़ा आपको सीधे मंदिर तक ले जाएगा। दरवाज़े से मंदिर की दूरी महज़ 500 मीटर है। रेल मार्ग से जाने के लिए आपको वाराणसी-लखनऊ रेल मार्ग पर त्रिलोचन रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ेगा। स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब 2 किमी है।

भगवान शिव का सम्बंध पवित्र विभूति से भी है जिसे महाशिवरात्रि के दिन शरीर पर लगाया जाता है। किसी भी जली हुई वस्तु की राख को पवित्र राख या विभूति नहीं माना जाता। बल्कि इसे विशेष रूप से तैयार किया जाता है। वार्षिक महाशिवरात्रि उत्सव के दौरान पवित्र विभूति को सूखे गोबर के कंडों से बनाया जाता है। इसे बनाने की तैयारी उत्सव से कई दिन पहले शुरू हो जाती है जिसमें गोबर के कंडे तैयार किये जाते हैं और उन्हें सुखाया जाता है। पारंपरिक तौर पर कंडे तैयार करते समय, वैदिक मंत्रों के साथ भगवान शिव की स्तुति की जाती है। कारुक्कई- धान का अर्ध विकसित रूप, विभूति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिवरात्रि के दिन सुबह विभूति तैयार करने वाली जगह को गोबर से साफ किया जाता है जिसके बाद इसे रंगोली से सजाया जाता है। इस स्थान पर गोबर के कंडों को कारुक्कई के साथ एक पिरामिड (Pyramid) या शिवलिंग जैसी संरचना में स्थापित किया जाता है जिसे ‘शिवरात्रि मुत्तन’ कहा जाता है। इसकी ऊंचाई 5-7 फीट तक हो सकती है। इसके बाद संरचना के आस-पास कारुक्कई को ज़मीन पर फैलाया जाता है तथा इसे कंडे की प्रत्येक परत के भीतर रखा जाता है। शिवरात्रि की सुबह, विराजा होमाम (Viraja homam) की प्रक्रिया की जाती है, जिसके बाद संरचना को जला दिया जाता है। कुछ दिनों बाद यह पूरी तरह जल जाता है। लगभग एक सप्ताह या उससे भी अधिक समय तक इस संरचना को ऐसे ही रखा जाता है। इससे संरचना चमकदार सफेद रंग की हो जाती है। अगली पूर्णिमा के दिन, इसे तोड़ दिया जाता है तथा उपयोग में लाया जाता है। माना जाता है कि इसके प्रयोग से शरीर के कई रोग ठीक होते हैं।

संदर्भ:
1.
https://bit.ly/2HwrCJu
2. http://uttarpradesh.gov.in/en/details/trilochan-mahadev-temple/320034003000
3. https://www.jagran.com/uttar-pradesh/jaunpur-10619246.html
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Vibhuti
5. https://shaivam.org/campaigns-of-shaivite/making-of-vibhuthi
6. https://bit.ly/2uJOGSe
7. https://bit.ly/2HI7DHT
चित्र सन्दर्भ:
1.
https://bit.ly/3bTeFHr
2. https://storage.needpix.com/rsynced_images/india-1137014_1280.jpg
3. https://live.staticflickr.com/8739/16972176188_6e049c9863_b.jpg
4. https://bit.ly/2T6hz2U