जब कभी किसी व्यक्ति को कोई संक्रमक रोग होता है तो चिकित्सकों द्वारा सर्वप्रथम उसे टीका लगाया जाता है, ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि टीका हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले संक्रामक रोगों के खिलाफ बड़ी चतुराई से प्रतिरक्षा का निर्माण करते हैं। वहीं एक बार जब बीमार व्यक्ति को टीका लगाया जाता है, तो यदि उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली वास्तविक रोग के रोगाणु का पता लगाने में सक्षम होती है और शरीर को सुरक्षा देने के लिए प्रतिरक्षियों और मेमोरी सेल (memory cells) का निर्माण करने में मदद करता है। टीकाकरण गंभीर बीमारियों के खिलाफ सबसे प्रभावी निवारक उपाय है, जिनमें कुछ टीके आजीवन प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं। 200 साल पहले चेचक जैसी घातक बीमारी से लड़ने के लिए एडवर्ड जेनर नाम के अठारहवीं सदी के एक डॉक्टर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया था। वहीं वर्तमान समय में प्रत्येक टीके को विशिष्ट रोगाणु द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बीमारी के अनुसार बनाया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक नया टीका विकसित करने में काफी लंबा समय (आमतौर पर 10 से 15 साल) लगते हैं। टीके विकास के कई चरणों से गुजरते हैं - जिसमें अनुसंधान, खोज, पूर्व-नैदानिक परीक्षण, नैदानिक परीक्षण (जिसमें सात वर्ष तक का समय लग सकता है) और नियामक अनुमोदन शामिल हैं। एक बार टीका स्वीकृत (दो साल तक की दूसरी लंबी प्रक्रिया) हो जाने के बाद टीके का निर्माण किया जाता है और जहां उनकी जरूरत होती है उन स्थानों में भेज दिया जाता है। वहीं अधिकांश लोग जानते ही हैं कि चीन में हाल ही में उत्पन्न हुए एक गंभीर संक्रमक रोग कोरोनावायरस की चपेट में काफी लोग आ चुके हैं, आकस्मिक आए इस रोग का निवारण करने के लिए विश्व के पास कोई निश्चित उपचार न होने के कारण काफी प्रकोप फैल चुका है। 2003 से ही विश्व को कोरोनवीरस के कारण तीन प्रकोपों का सामना करना पड़ा है - सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome), मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome), और अब नॉवल कोरोनवायरस (2019-nCoV) नामक घातक वायरस का प्रकोप।
जहां वैज्ञानिक इन सभी प्रकोपों से निपटने के लिए कोई रास्ता खोज रहे हैं, वहीं पिछले 17 वर्षों में, उनके द्वारा इन वायरसों से उभरने के लिए नए टीके को विकसित करने में लगने वाले समय को काफी कम कर दिया है। यह काफी हद तक तकनीकी विकास और सरकारों और गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा बढ़ती संक्रामक बीमारियों पर अनुसंधान के वित्तपोषण के लिए एक बड़ी प्रतिबद्धता के कारण हुआ है। हालांकि चीनी वैज्ञानिकों द्वारा वायरस के आनुवांशिक अनुक्रम को 10 जनवरी को एक ऑनलाइन सार्वजनिक डेटाबेस में साझा किए जाने के तुरंत बाद कई समूहों ने 2019-nCoV के लिए टीके की खोज पर काम करना शुरू कर दिया। 2002-2003 के सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम के लिए टीका तैयार करने में लगभग 20 महीने लग गए थे, अभी यह नहीं बताया जा सकता है कि कोरोनावायरस को रोकने के लिए टीका कब बनकर तैयार होगा। महामारी विज्ञान तैयारियों और नवाचारों के गठबंधन के भारत अध्याय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारतीय कंपनियों को 2019-nCoV और अन्य उभरते संक्रामक रोगों के खिलाफ टीकों के विकास के लिए समर्थन करेगा। जैवप्रौद्योगिकी विभाग वैश्विक स्तर पर उन संगठनों का एक नेटवर्क बना रहा है जो संक्रमण का पता लगाने के लिए बेहतर निदान और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी पर काम कर रहे हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक अच्छी कहानी की तरह, एक अच्छे टीकाकरण कार्यक्रम की भी एक शुरुआत, एक मध्य, एक आदर्श रूप और एक अंत होता है।
निम्नलिखित टीकाकरण कार्यक्रम के जीवनचक्र के बारे में संक्षिप्त पंक्तियाँ हैं, जो ये भी बताने में मदद करेगी की कैसे एक बीमारी जो लगभग टीकाकरण के माध्यम से समाप्त हो गई है वह अचानक फिर से शुरू हो जाती है :-
1) जब किसी बीमारी को रोकने के लिए कोई टीका नहीं होता है, तो आमतौर पर उस बीमारी से पीड़ित होने वालों की संख्या अधिक हो जाती है। लोग बीमारी और इसकी जटिलताओं के बारे में चिंता करने लगते हैं।
2) वहीं एक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने के बाद टीकाकरण लेने वाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा हो जाती है। साथ ही टीके से संबंधित कुछ प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं होने की संभावनाएं भी रहती हैं।
3) जैसे जैसे टीकाकरण लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ती रहती है, वैसे वैसे बीमार व्यक्तियों की संख्य भी घट जाती है। ऐसे में अक्सर टीके से स्वस्थ होने वाले व्यक्तियों की संख्य टीके के प्रतिकूल प्रक्रियाओं से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों से ज्यादा ही होती है।
4) इस चरण में अधिकांश लोग जिन्होंने इस बीमारी का अनुभव नहीं किया होगा, वे उस बीमारी के बारे में कम और टीके से संभावित दुष्प्रभावों के बारे में अधिक चिंता करना शुरू कर देते हैं। वे सवाल करना शुरू कर देते हैं कि क्या टीकाकरण करवाना आवश्यक है या सुरक्षित है, और उनमें से कुछ टीकाकरण करवाना बंद कर देते हैं।
5) यदि पर्याप्त लोग टीकाकरण करवाना बंद कर देते हैं, जो वो रोग दुबारा से फैलने लगता है। तब फिर से लोगों को बताया जाता है कि वह रोग कितना घातक है और उससे बचने के लिए टीकाकरण करवाना आवश्यक है। इससे एक बार फिर टीकाकरण की संख्या बढ़ जाती है और रोग संख्या में गिरावट आ जाती है। अंत में, यदि पर्याप्त लोग प्रतिरक्षित हो जाएं तो बीमारी पूरी तरह से गायब हो जाती है। जो चेचक के रोग में भी देखा गया है।
संदर्भ :-
1. https://www.cdc.gov/vaccines/vac-gen/life-cycle.htm
2. https://www.betterhealth.vic.gov.au/health/healthyliving/vaccines
3. https://bit.ly/3bJHPsr
4. https://bit.ly/2HsJftu
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