जौनपुर उत्तर प्रदेश तथा भारत के सबसे महत्वपूर्ण जिलों में से एक है। यहाँ पर एक महान शहर के तमाम आयाम मौजूद हैं। यह जिला प्राचीन काल से ही विभिन्न सभ्यताओं को देख चुका है जिसका प्रमाण यहाँ के मछलीशहर से लेकर अन्य स्थानों और गावों तक में देख सकते हैं। जौनपुर में प्रतिहारों का, गुप्तों का और मौर्यों का शासन रहा। यहाँ पर इन राजवंशों ने एक बेहतर गति की प्राप्ति की। मध्यकाल में यह जिला अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा था जब दिल्ली के सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक की निगाहें गोमती के किनारे बसे और बनारस के नज़दीक की इस धरा पर पड़ी। नदी के किनारे होने के कारण इसे शहर बनाना एक अत्यंत ही सुगम कार्य हो गया।
जौनपुर में सबसे पहले जिस इमारत का निर्माण हुआ वह है यहाँ का शाही किला। इस किले का निर्माण दिल्ली के सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक ने किया था जो कि सन 1360 में शुरू हुआ था। इस किले में आस–पास के मंदिरों और विहारों आदि के पत्थरों का प्रयोग हुआ था जो कि आज भी यहाँ के किले की दीवारों आदि में देखे जा सकते हैं। जैसा कि यहाँ उत्तम किस्म के बलुए पत्थर का एक मात्र नज़दीकी स्रोत मिर्जापुर या चुनार ही है तो यहाँ पर किले में वहीँ से लाये गए प्रस्तरों का प्रयोग हुआ था। यह किला जिस स्थान पर बनाया गया है उसे केरार कोट के नाम से भी जाना जाता है। इस कोट का विवरण रामायण में भी मिलता है। वर्तमान काल में यहाँ पर केरार कोट मंदिर भी स्थित है। यह किला चारों ओर से बुर्जों से घिरा हुआ है। जैसा कि यह किला एक जमीनी किला है तो इसके बुर्जों का वास्तु बेलनाकार है जो कि नीचे की ओर मोटे और ऊपर की ओर पतले हैं। इस किले में घुसने के लिए दो द्वार हैं। दूसरा द्वार मुग़ल काल में बनाया गया था और इस पर आज भी लाजवर्द पत्थर का प्रयोग देखा जा सकता है। लाजवर्द पत्थर अफगानिस्तान से भारत में लाया जाता था।
टीले पर स्थित होने के कारण यह किला अत्यंत उंचाई पर दिखाई देता है। इस किले का प्रमुख द्वार (द्वितीय द्वार) करीब 14 मीटर उंचा है जिसके दोनों ओर कमरों का निर्माण किया गया है जिसका सामरिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्व होता है। प्रथम द्वार करीब 11 फीट उंचा है तथा इस द्वार का निर्माण अकबर के राज्यपाल मुनीम खान ने करवाया था। इस द्वार के दोनों ओर से भी किलेबंदी की गयी है। इस किले में कुछ अत्यंत ही महत्वपूर्ण इमारतें भी स्थित हैं जिनमें से हमाम या भूलभुलैया, बंगाल शैली की मस्जिद जिसमें तीन गुम्बद हैं और सामने एक मीनार भी स्थित है जिसपर कुरान की आयतें लिखी हुयी हैं। इस मीनार पर सन 1376 की तिथि अंकित है और इसके अनुसार इस मस्जिद का निर्माण इब्राहिम नायब बर्बक ने कराया था। बाहरी दरवाज़े पर लिखा गया है कि हिन्दुओं को गीता, मुस्लिमों को कुरान और ईसाईयों को बाइबल पढ़ना चाहिए।
इस किले के सामने एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण 6 फीट ऊंचा स्तम्भ लगाया गया है जो कि सन 1769 की तिथि का निर्धारण करता है। इस पट पर फारसी भाषा में एक लेख उकेरा गया है जिसमें यह लिखा गया है, “मैं भगवान और उनके नबी के नाम पर एक मुसलमान को शपथ दिलाता हूँ; और अगर वह हिंदू है तो मैं उसे राम, गंगा और त्रिवेणी के नाम की शपथ दिलाता हूं। यदि वह इस विलेख पर अमल नहीं करता है तो वह भगवान और उसके पैगंबर द्वारा शापित हो जाएगा और यदि भगवान ने चाहा तो उसके चेहरे को पुनरुत्थान के दिन काला कर दिया जाएगा, और वह नर्क में जाएगा।” इस लेख में कुल 17 पंक्तियाँ हैं जो कि हिन्दू और मुस्लिम कोतवालों को शर्की वंशजों का प्रवेश जारी रखने का परामर्श देता है, परन्तु इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं उपलब्ध हैं।
सन्दर्भ:
1. https://www.jaunpuronline.in/city-guide/shahi-qila-in-jaunpur
2. https://military.wikia.org/wiki/Shahi_Qila,_Jaunpur
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Shahi_Qila,_Jaunpur
4. https://www.jaunpurcity.in/2013/12/what-is-written-on-pillar-placed.html
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