भारत में ऐसे कई फूल पाये जाते हैं जिनकी सुंदरता देखते ही बनती है। पलाश या बटिया मोनोस्प्रेमा (Butea monosperma) भी इन्हीं फूलों में से एक है जिसे उत्तर प्रदेश और झारखंड के राज्य पुष्प के रूप में भी सुशोभित किया गया है। यह फूल भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर पूरे भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, मलेशिया, और पश्चिमी इंडोनेशिया की एक मूल प्रजाति है। इसे फ्लेम ऑफ द फॉरेस्ट (flame-of-the-forest), बास्टर्ड टीक (bastard teak) आदि नामों से भी जाना जाता है।
पलाश एक छोटे आकार का शुष्क पर्णपाती वृक्ष है, जो 15 मीटर (49 फीट) तक बढ़ सकता है। यह एक तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है जिसके कारण युवा पेड़ों में प्रति वर्ष कुछ फीट की वृद्धि होती है। तीन पत्तियां संयुक्त रूप से तने के दोनों ओर लगी होती हैं जोकि 8-16 सेमी तक की हो सकती हैं। प्रत्येक पत्ती 10-20 सेमी लंबी होती है तथा फूल 2।5 सेंटीमीटर लंबे, चमकीले नारंगी-लाल रंग के होते हैं जो 15 सेंटीमीटर तक हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल में पलाश का फूल मुख्य रूप से बसंत के मौसम से जुडा हुआ है तथा नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं और गीतों का प्रमुख हिस्सा रहा है। रवींद्रनाथ टैगोर ने इस फूल की तुलना उज्ज्वल नारंगी लौ से की है। शहर प्लासी जोकि ऐतिहासिक युद्ध के लिए प्रसिद्ध है, का नाम इसी फूल के नाम पर रखा गया है। झारखंड राज्य में यह लोक परंपरा से जुड़ा हुआ है तथा लोक साहित्य इस फूल को जंगल की आग (forest fire) के रूप में भी अभिव्यक्त करते हैं। कहा जाता है कि यह पेड युद्ध और अग्नि के देवता का ही एक रूप है। तेलंगाना में, इन फूलों का उपयोग शिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पूजा में विशेष रूप से किया जाता है। गीतागोविंदम में जयदेव ने इन पेड़ों के फूलों की तुलना कामदेव से की है। रूडयार्ड किपलिंग की ‘प्लेन टेल्स फ्रॉम हिल्स’ (Plain tales from hills) में भी यह फूल गर्मियों की शुरुआत और जंगल में वन्यजीव अशांति को वर्णित करता है। भारत में पलाश की पूजा की जाती है तथा इसे कई समारोहों का हिस्सा भी बनाया जाता है। आदिवासियों द्वारा इसके फूलों और फलों का इस्तेमाल मुख्य रूप से किया जाता है। इसके अलवा इस फूल और पेड के अनेक औषधीय गुण भी हैं जिनका उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी आदि चिकित्सा में किया जाता है। इसके लगभग सभी भागों अर्थात् जड़, पत्ते, फल, तने की छाल, फूल, गोंद, शाखाएं आदि का उपयोग दवा, भोजन, फाइबर (Fiber) और अन्य विविध प्रयोजनों के लिए किया जाता है। लगभग 45 औषधीय उपयोग इस पौधे से जुड़े हुए हैं तथा आधुनिक वैज्ञानिक तर्ज पर इनका आगे भी अध्ययन और अवलोकन किया जा रहा है। पौधे के विभिन्न हिस्स को एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidant), एंटीडायरल (antidiarrhoeal) गुणों से भरपूर हैं। सांप या बिच्छू के काटने पर पौधे को एंटीडोट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस पेड की पत्तियां मवेशियों के लिए चारे का एक स्रोत हैं। फूलों का उपयोग प्राचीन काल से रंग और रंजक बनाने के लिए किया जा रहा है। यह उन कीटों के लिए निवास स्थान है, जो शेलैक (Shellac) का उत्पादन करते हैं। शेलैक का उपयोग आभूषण, लघु शिल्प, फार्मा उद्योग में भी किया जाता है। आयुर्वेद में इस पेड़ के कई औषधीय उपयोगिताओं को वर्णित किया गया है। आंखों की बीमारियों से लेकर यकृत की बीमारियों, स्त्री रोग आदि के लिए यह अचूक दवा का काम करता है। ताजा जड़ों की बूंदें नेत्र विकार जैसे मोतियाबिंद आदि को ठीक कर सकती हैं। पीसी हुई ताजी जड़ की बूंदें मिर्गी को तथा पीसे हुए फूल सूजन को कम करते हैं। उबले हुए फूलों को जब निचले पेट पर बांधा जाता है तो यह मूत्र सम्बंधी रोगों को दूर करते हैं। रात भर भिगोए हुए फूलों के पानी को मिश्री के साथ पीने पर गुर्दे का दर्द ठीक हो सकता है। इसके बीजों में फफूंदनाशक और जीवाणुनाशक गुण मौजूद होते हैं। इसके अलावा पेड की लकड़ी का उपयोग कोयला बनाने के लिए किया जाता है। इसके द्वारा उत्पादित गोंद को डाई (Dye) या टैनिन (tannin) के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा यह और भी कई अन्य गुणों से भरपूर है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.