क्या कहता है, हिन्दू धर्म में परलोक सिद्धांत (eschatology)

जौनपुर

 11-02-2020 01:30 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

सम्पूर्ण प्राणी जगत धरती पर निवास करता है, तथा उसे जीवन की दो सच्चाईयां अपनानी पडती हैं, और वो है जन्म और मृत्यु। धरती पर जो कोई भी जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित होती है और इस प्रकार जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रकिया के चलते कई युग, युगांतर बीतते जाते हैं और यह चक्र निरंतर ऐसे ही चलता रहता है। किंतु ब्रह्मांड का अंत कहां हैं या किस छोर पर है तथा इसक बाद क्या होगा? इसकी जानकारी प्रत्यक्ष रूप से किसी को नहीं है। और इसलिए परलोक सिद्धांत (eschatology) ब्रह्मांड के अंतिम समय या मानवता की अंतिम नियति को जानने का प्रयास कर रहा है। इस अवधारणा को आमतौर पर "दुनिया के अंत" या "अंत समय" के रूप में जाना जाता है। एक प्रकार से परलोक सिद्धांत या एस्केटोलॉजी (eschatology) , थियोलॉजी (Theology) की एक शाखा है जो आत्मा और मानव की मृत्यु, अंतिम निर्णय और अंतिम नियति से सम्बंधित है। हिंदू धर्म की बात करें तो वेदग्रंथों, पुराणों और उपनिषदों में इस संदर्भ में विभिन्न तर्क दिये गये हैं। हिंदू धर्म को व्यापक परंपराओं वाला धर्म माना जाता है और इसलिए किसी भी विशिष्टता के साथ हिंदू एस्केटोलॉजी का वर्णन करना बहुत मुश्किल है। लेकिन हिंदू धर्म की सभी शाखाओं अर्थात वेदग्रंथों में इस संदर्भ में कुछ बुनियादी समानताएं मौजूद हैं। आम तौर पर, जीवन को पुनर्जन्म से अंतिम मुक्ति की ओर एक नैतिक प्रगति के रूप में समझा जाता है। पुनर्जन्म के बीच में केवल मृत्यु ही क्षणिक अंतर है। उसी तरह, इतिहास का भी कोई अंत नहीं है और न कोई सार्वभौमिक पुनरुत्थान है जो विनाश से पहले हो।

संस्कृत ग्रंथों, विशेष रूप से पुराणों ने, वेदों की तुलना में ब्रह्मांड की रचना और विनाश को एक अधिक सटीक उदहारण (pattern) के रूप में दर्शाया या रेखांकित किया है। पुराणों के अनुसार, ब्रह्मांड स्वयं एक जीवित प्राणी है, और इसलिए अन्य सभी प्राणियों की तरह, यह भी जन्म लेता है, जीवित रहता है और मर जाता है। इसके अनुसार प्रारंभिक अवस्था में ब्रह्मांड समुद्र में तैरते एक सुनहरे अंडे की भांति होता है जोकि समुद्र में तब तक तैरता रहता है जब तक जगत निर्माता भगवान ब्रह्मा अपने ध्यान या निद्रा से जाग्रत नहीं हो जाते और इस अंडे को तोड नहीं देते। इसके टूटते ही पृथ्वी, सातों आकाश और सातों अधोलोकों की उत्पत्ति होती है। फिर समय शुरू होता है जिसे भगवान विष्णु के संरक्षण में देखा जाता है। पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड चार युगों का अनुसरण करता है।

पहला युग, सत्य का युग अर्थात सतयुग है जिसे शांत और निर्मल हृदय वाले लोगों का स्वर्ण युग माना जाता है। अगले युग में पहले की अपेक्षा अपूर्णता दिखाई देती है, हालांकि इस युग में जीवन अभी भी बहुत अच्छा है। इस युग में परिस्थितियां प्रतिकूल हैं लेकिन फिर भी कुछ अच्छे तत्व पृथ्वी को सुंदर बना देते हैं। इस युग के बाद तीसरे युग में परिस्थितियां और भी जटिल हो जाती हैं, जिसमें दुख, बीमारी और मृत्यु मानव अस्तित्व के अंग बन जाते हैं। चौथा और अंतिम युग केवल विघटन, युद्ध, संघर्ष, लघु जीवन काल, भौतिकवाद, वंशानुगतता और अनैतिकता को संदर्भित करता है जिसके अत्यधिक व्यापक होने से पूर्व पूरे ब्रह्मांड का विनाश काल प्रारंभ हो जाता है। इस समय धरती ज्वाला की तरह फट जाती है, जिसके बाद सात या बारह सूरज दिखाई देते हैं। ये सूरज समुद्र को सुखा देते हैं तथा पृथ्वी को झुलसा देते हैं। फिर आकाश पुनः धरती में अत्यधिक पानी बरसाता है जिससे पूरा ब्रह्मांड डूब जाता है। और सुनहरे अंडे के रूप में फिर से समुद्र में तैरने लगता है। यह अंडा तब तक तैरता रहता है जब तक भगवान ब्रहमा फिर नहीं जागते और प्रक्रिया फिर से अनंत की ओर जाने के लिए शुरू नहीं होती।

हिंदू एस्केटोलॉजी वैष्णव परंपरा में कल्कि नामक महान मानव से भी जुडी हुई है। कल्कि को कलियुग के अंत से पूर्व भगवान विष्णु या शिव का दसवां और अंतिम अवतार माना जाता है। इस युग के बाद हरिहर (विष्णु और शिव का सन्युक्त रूप) एक साथ ब्रह्मांड को समाप्त और पुनर्जीवित करते हैं। वर्तमान काल कलियुग को अंतिम युग माना गया है। प्रत्येक युग में नैतिकता में एक प्रगतिशील गिरावट देखी गयी है, जो कलियुग में झगडे और पाखंड के रूप में चरम पर है। हिंदू धर्म में, समय चक्रीय है, जिसमें चक्र या "कल्प" शामिल हैं। प्रत्येक कल्प 8.64 बिलियन वर्ष तक चलता है। व्यक्तिगत स्तर पर जन्म, विकास, क्षय और नवीकरण के चक्र की लौकिक क्रम में पुनरावृत्ति होती रहती है। जब तक कि इसमें कोई दिव्य हस्त्क्षेप नहीं होता। कुछ शैव लोग मानते हैं कि वह (निर्माता या पर मात्मा) लगातार दुनिया को नष्ट कर रहा है और बना रहा है। इस बड़े चक्र के बाद, सारी सृष्टि एक विलक्षण बिंदु पर संकुचित हो जायेगी और फिर उसी एकल बिंदु से विस्तार करेगी, क्योंकि सभी युग फिर से उसी धार्मिक क्रम में शुरू हो जायेंगे। हर युग में ईश्वर का अवतार धरती पर प्रकट होता है। और इस बात के उल्लेख विभिन्न ग्रंथों, उपनिषदों में दिये गये हैं।

इसी प्रकार की अवधारणा बहा-ई (Baháʼí) (यह एक धर्म है जो सभी धर्मों के लिए आवश्यक मूल्यों, और सभी लोगों को एकता और समानता सिखाता है। इसे 1863 में बहा-उ-उल्लाह द्वारा स्थापित किया गया जोकि फारस और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में फैला। आज यह दुनिया के अधिकांश देशों और क्षेत्रों में फैला हुआ है।) में भी मौजूद है। इस धर्म के अनुसार सृजन की न तो कोई शुरुआत है और न ही अंत। इनके विश्वास के अनुसार मानव समय को प्रगतिशील रहस्योद्घाटन की एक श्रृंखला द्वारा चिह्नित किया जाता है, जिसमें ईश्वर के संदेशवाहक या पैगम्बर धरती पर क्रमिक रूप से आते हैं।

संदर्भ:
1.
https://en।wikipedia।org/wiki/Hindu_eschatology
2. https://phnuggle।wordpress।com/the-list/hindu-eschatology/
3. https://bit।ly/2vhiaGQ
4. https://bahai-library।com/buck_eschatological_interface_messianism
5. https://en।wikipedia।org/wiki/Eschatology#Bah%C3%A1'%C3%AD



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