अपने गीतों के स्वरोच्चारण के लिए प्रसिद्ध हैं ब्लू थ्रोट पक्षी

जौनपुर

 08-02-2020 07:08 AM
पंछीयाँ

हमारे आस-पास ऐसे कई पक्षी मौजूद हैं, जो अपनी मधुर आवाज के लिए जाने जाते हैं। इनकी आवाज़ वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है जोकि विभिन्न पक्षियों जैसे कोयल, बुलबुल इत्यादि के गीतों के रूप में गूंजती है। ब्लू थ्रोट (Blue throat) नामक पक्षी भी इन्हीं में से एक है, जिसे अपनी विशिष्ट आवाज़ या गीतों के लिए जाना जाता है। ऐसे सुरीले पक्षी जौनपुर में भी मौजूद हैं जिन्हें आसानी से देखा जा सकता है। वैज्ञानिक रूप से ल्यूसिनिया स्वेसिका (Luscinia svecica) के नाम से जाना जाने वाला यह पक्षी छोटे गौरैया के समान होता है जोकि टर्डिडे (Turdidae) परिवार से सम्बंधित है। किंतु अब इसे ओल्ड वर्ल्ड फ्लाइकैचर (Old World flycatcher) के रूप में मूसिकैपिडे (Muscicapidae) परिवार से सम्बंधित माना जाता है।

ब्लू थ्रोट और इसी तरह की छोटी यूरोपीय प्रजातियों को अक्सर चैट (Chats) कहा जाता है। यह घास के एक छोटे से क्षेत्र जोकि अपने चारों ओर उगने वाली घास से अधिक सघन होती है, में अपना घोंसला बनाती है। सर्दियों के मौसम में यह जीव प्रायः उत्तरी अफ्रीका (Africa) और भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करता है। यूरोपीय रॉबिन (European Robin) के समान ही इसका आकार 13-14 सेमी तक होता है तथा पूंछ को छोड़कर शरीर का ऊपरी भाग भूरे रंग का होता है। गले के हिस्से में प्रायः सफेद, नीली, नारंगी, काली आदि रंग की पट्टियों जैसी संरचना बनी होती है। विभिन्न रंग पूंछ के किनारों में प्रायः लाल रंग के पैच (Patch) भी दिखायी देते हैं। इसकी नर प्रजाति को विविध और बहुत ही प्रभावशाली गीतों के लिए जाना जाता है।

ब्लू थ्रोट के समान धरती पर अन्य पक्षी भी मौजूद हैं, जो अपने स्वरोच्चारण (Vocalization) के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके स्वरोच्चारण को उनकी आवाज़ तथा गीतों दोनों से संदर्भित किया जाता है। गैर-तकनीकी रूप से पक्षियों की उस आवाज़ को गीत के रूप में संदर्भित किया जाता है जोकि मानव कान को मधुर प्रतीत होती है। सामान्य आवाज़ और गीत को प्रायः दोनों के बीच की जटिलता और लंबाई के आधार पर विभक्त किया जा सकता है। इनके द्वारा गाये जाने वाले गीत लम्बे तथा अधिक जटिल होते हैं तथा प्रायः प्रेमालाप और संभोग से सम्बंधित हैं। सामान्य आवाज़ का प्रयोग अपने समूह के सदस्यों को पुकारने हेतु अलार्म (Alarm) के रूप में किया जाता है। किसी भी अन्य जानवर की तुलना में पक्षी अधिक जटिल ध्वनि उत्पन्न करते हैं। पूरे जंतु जगत में पक्षियों का शारीरिक विज्ञान और पक्षी गायन की ध्वनिकी (Acoustics) अद्वितीय है, तथा इसे बनाए रखने में ब्रोन्कियल ट्यूब (Bronchial tubes) और सिरिंक्स (Syrinx) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानव के समान ही पक्षियों के गीतों में भी विविधता पायी जाती है। वे भी अपने गायन में पिचों (Pitches), स्वरों (Tones) और तालों (Tempo) का इस्तेमाल बखूबी करते हैं, जिसे महसूस भी किया जा सकता है। इसके अलावा अपने गीतों को याद रखने की क्षमता भी उनमें विद्यमान होती है। पक्षियों का चहचहाना तथा विभिन्न प्रकार की आवाजें निकालना यह भी संकेत देता है कि वे अपना घर कहाँ बनाते हैं। जैसे उल्लू की धीमी आवाज़ को घने जंगली आवास में घूमने के लिए डिज़ाईन (Design) किया गया है। यदि पक्षी घने जंगलों में होते हैं, तो उनके गायन की आवृत्ति एक ही रहती है।

इसके विपरीत जब वे अपना समय पेड़ों के ऊपर बिताते हैं तो उनके गायन की आवृत्ति बदलती रहती है। एक ही निवास स्थान को साझा करने वाली विभिन्न प्रजातियां अलग-अलग आवृत्तियों के गीतों का उपयोग करती हैं, ताकि उनके गायन में भेद किया जा सके। इनके गायन की ध्वनि आवृत्ति स्थलाकृति के साथ बदलती रहती है। सुबह के समय पक्षियों की अपनी-अपनी गायन आवृत्तियां सुनायी देती हैं, क्योंकि दिन के इस समय की वायु अच्छे ध्वनि संचरण के लिए उत्तरदायी होती है। वे अपने गायन के द्वारा एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा भी करते हैं। एक शोध में पाया गया है कि कुछ पक्षी प्रजातियां अधिक शोर वाले क्षेत्रों में निवास करते हैं, क्योंकि शोरगुल ज्यादा होने पर वे आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।

संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Bluethroat
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Bird_vocalization
3.https://www.bl.uk/the-language-of-birds/articles/how-birds-sing
4.https://blog.uvm.edu/fntrlst/2015/04/29/the-musicality-of-birdsong/
5.http://www.startribune.com/birds-have-perfect-pitch/115579384/


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