स्वास्थ्य हर इंसान का मूल अधिकार है, साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर कोई, चाहे उनकी सामाजिक स्थिति या आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, इसका लाभ उठा सकें। भारत की बढ़ती आबादी के साथ सरकार के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करना मुश्किल हो रहा है, इसलिए अधिकतर लोग निजी चिकित्सालयों में जाते हैं। हालांकि, वर्तमान समय में कई गंभीर रोगों का इलाज कराने में एक व्यक्ति के आय से अधिक रूपए खर्च हो जाते हैं।
ऐसे में स्वास्थ्य बीमा भारत में भयावह स्वास्थ्य व्यय के अक्षम प्रभावों को कम करने के लिए एक बहुत ही उपयोगी रणनीति साबित हो सकती है। भयावह स्वास्थ्य देखभाल व्यय की ज़रूरत तब होती है जब किसी रोग के इलाज में काफी खर्चा आता है, यानि घर की कुल उपलब्ध आय से कई ज्यादा अधिक उस रोग के भुगतान में लगते हैं। इसे हम कुछ इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि इलाज में कुल मासिक उपभोग व्यय के 10% से अधिक या गैर-खाद्य खपत व्यय के 40% से अधिक लगता है।
पिछले दो दशकों में स्वास्थ्य देखभाल के वित्तपोषण के एक प्रमुख तंत्र के रूप में इसने भारत में प्रसिद्धि प्राप्त की है। 2007 में 7.5 करोड़ (मुख्य रूप से सीजीएचएस (CGHS) और ईएसआईएस (ESIS) के अन्तर्गत) से 2010 में 30.2 करोड़ यानि चार गुना तक स्वास्थ्य बीमा में बढ़ोतरी को देखा गया। 3 साल की अवधि में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और राज्य द्वारा प्रायोजित योजनाओं ने 24.7 करोड़ लोगों को कवर (Cover) किया है, वहीं इसी तरह की योजनाओं को बाद में महाराष्ट्र, गुजरात, केरल आदि में शुरू किया गया।
वहीं कुछ शोध से पता चला है कि किसी बड़ी बीमारी के होने पर, यदि कोई व्यक्ति अस्पताल में भर्ती होता है तो उसका औसत खर्च 19,210 रुपये तक आता है, हृदय रोग से पीड़ित का 40,947 और सबसे उच्च, कैंसर से पीड़ित का 57,232 का खर्च आता है। लगभग 28% घरों द्वारा भयावह स्वास्थ्य व्यय का खर्च उठाया जाता है और संकट वित्तपोषण का सामना किया जाता है। सभी बीमारियों में, कैंसर ही सबसे अधिक भयावह स्वास्थ्य व्यय (79%) और संकट वित्तपोषण (43%) के खर्च का कारण बना।
आज की जनसांख्यिकीय और महामारी संक्रमण के साथ, कैंसर भारत में एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभर रहा है। शहरी क्षेत्रों में कैंसर की आयु-मानकीकृत व्यापकता प्रति 100,000 व्यक्ति में 97 की है। कैंसर का प्रसार बुजुर्गों में और प्रजनन की उम्र वाली महिलाओं में भी सबसे अधिक देखा जाता है। साथ ही यदि कोई व्यक्ति इसके इलाज के लिए किसी निजी चिकित्सालय में जाता है तो वहाँ उसका कैंसर के इलाज के लिए सार्वजनिक चिकित्सालय से लगभग तीन गुना खर्च आएगा। इसके अलावा, लगभग 40% लोग कैंसर का इलाज मुख्य रूप से उधार, संपत्तियों को बेचकर और दोस्तों और रिश्तेदारों के योगदान के माध्यम से करवाते हैं। इसके अलावा, 60% से अधिक परिवार जो निजी चिकित्सालय से उपचार कराना चाहते हैं, वे अपने प्रति व्यक्ति घरेलू खर्च के 20% से अधिक जेब खर्च को लगाते हैं।
कैंसर में होने वाले खर्च के बोझ को कम करने के लिए सार्वभौमिक कैंसर देखभाल बीमा की परिकल्पना की जानी चाहिए और भारत में गरीब वर्गों को मौजूदा दुर्घटना और जीवन बीमा नीतियों के साथ जोड़ने पर विचार किया जाना चाहिए। इन नीतियों के साथ ही भारत में सार्वजनिक चिकित्सालयों में बुनियादी ढांचे, मानव संसाधनों और देखभाल की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
संदर्भ:
1. https://www.who.int/bulletin/volumes/96/1/17-191759/en/
2. https://bit.ly/2vQNGvP
3. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5945043/
4. https://bmcpalliatcare.biomedcentral.com/articles/10.1186/s12904-019-0426-5
5. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5826535/
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