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शीतला देवी एक लोक देवी हैं जिनकी पूजा पूरे भारत के साथ इससे लगे अन्य देशों में भी होती है, जिनमें प्रमुख रूप से उत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान उल्लेखनीय हैं। इस पूरे क्षेत्र में विभिन्न नामों से इनकी पूजा प्रचलित है। माँ, माता जिनमें प्रमुख नाम हैं, जो कि आदिवासियों के द्वारा प्रमुख रूप से पूजी जाती हैं। इसके अतिरिक्त वसंत की देवी, ठक़ुरानी, जागरणी, करुणमयी, मंग़ला, भगवती, दयामयी तथा हरियाणा और गुड़गाँव में इन्हें कृपी (गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी) के रूप में भी पूजा जाता है। शीतला का संस्कृत में अर्थ होता हैं जो ठंडक पहुँचाए और इसी संदर्भ में इनकी पूजा हिन्दुओं और बौद्धों में प्रचलित है। हिन्दुओं में इनको दुर्गा के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इनकी सवारी गधा है, इनके चार हाथ दिखाए जाते हैं जिनमें एक में कटोरा, दूसरे में पंखा, तीसरे में छोटी झाड़ू और चौथे में ठंडे पानी का पात्र दिखाया जाता है जिससे विभिन्न रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
हिंदू परम्परा में इनसे जुड़ी विभिन्न कथायें भी प्रचलित हैं जिनमें इन्हें कभी दुर्गा का तो कभी पार्वती का रूप बताया गया है। ऐसी ही एक कथा के अनुसार जब दानव ज्वरासुर का प्रकोप हद से ज़्यादा बढ़ जाता है तब देवी दुर्गा कत्यायनी के रूप में जन्म लेती हैं। ज्वरासुर ज्वर का दानव था जो कि अनेक बीमारियों को फैलाता था। जब उसने कत्यायनी के नन्हें दोस्तों में अनेक बीमारियाँ फैलाईं जैसे हैजा, चेचक आदि, तब कत्यायनी ने शीतला का रूप धारण करके अपने दोस्तों को ठीक किया और अपने मित्र बटुक को ज्वरासुर को दंडित करने को भेजा। पहले तो ज्वारासुर बटुक को हरा देटा है परन्तु फिर बटुक भैरव का रूप धर कर ज्वरासुर का वध कर देता है। इस तरह देखा जाए तो शीतला देवी का सम्बंध तांत्रिक सम्प्रदाय से देखने को मिलता है।
वैसे तो सम्पूर्ण भारत में ही शीतला देवी की पूजा दिखायी देती है परंतु उत्तर भारत में खासकर, उत्तर प्रदेश में इनका वर्चस्व अधिक मात्रा में देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थित शीतला चौकिया धाम मंदिर शीतला देवी की पूजा के लिए उल्लेखनीय है। शिव और शक्ति की पूजा तो अत्यंत प्राचीन है परंतु यह मंदिर उतना प्राचीन नहीं है। इसकी प्राचीनता अहीरों के काल तक जाती है जो कि हिन्दू राजा थे। इस मंदिर का निर्माण मुख्य रूप से ‘अहीर’ या ‘भर’ के द्वारा किया गया था जो कि शिव और शक्ति के पुजारी प्राचीन समय से ही थे।
बौद्ध धर्म में भी शीतला देवी की पूजा की जाती है। इसमें इन्हें कभी-कभी ज्वरासुर और पार्णशबरी (बीमारियों की देवी) की साथी के रूप में प्रदर्शित किया जाता है तो कभी-कभी इन्हें वज्रयोगिनी (रोगों से छुटकारा दिलाने वाली देवी) से दूर जाते हुए प्रदर्शित किया जाता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Shitala
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Sheetala_Chaukia_Dham_Mandir_Jaunpur
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Jvarasura