जौनपुर उत्तर प्रदेश का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण जिला है जो की शर्की काल में अपनी पराकाष्ठा पर पहुची। जौनपुर का इतिहास लौह काल से शुरू होता है और प्रतिहारों का समय आते आते यहाँ पर प्रस्तर का निर्माण जौनपुर में होने लगा। शर्की काल में जौनपुर में कई इमारतों का निर्माण हुआ था जिनमे से शाही किला, अटाला मस्जिद, बड़ी मस्जिद, झंझरी मस्जिद, चार अंगुल मस्जिद आदि है। शर्कियों के समय के बाद जौनपुर पर लोदियों ने आक्रमण किया और जौनपुर की सुन्दरता को धूमिल करने की कोशिश की यहाँ के मस्जिदों और महलों को तोड़ कर। मुग़ल काल के आते ही जौनपुर फिर से जौनपुर की खूबसूरती में चार चाँद लगने लगे थें।
अकबर का काल जौनपुर के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण था कारण की इस काल में जौनपुर में कई निर्माण हुए जैसे की कलीच खान का मकबरा, शाही पुल आदि। मुग़ल कला को वास्तव में इंडो-इस्लामिक कला के रूप में देखा जाता है। यह कला भारतीय और इस्लामिक कला के संयोग को प्रस्तुत करती है। जौनपुर का शाही पुल भी इसी कला पर निर्मित है। गोमती नदी के ऊपर बना शाही पुल जौनपुर ही नहीं अपितु भारत के सबसे पुराने पुलों में से एक है। इस पुल का स्थापत्य अपने आप में अद्वितीय है। शाही पुल को मुनीम खान पुल या कुछ लोग अकबरी पुल भी कहते है। ये सेतु अकबर के राजस्व से बनाया गया था और फज़ल अली के निर्देशन में तैयार हुआ था।
मुगलों के प्रभावशाली स्थापत्यकौशल के उदाहरण इस पुल को साधने में 15 गुंबदीय स्तंभ बनाये गये थे। ये सेतु वर्तमान में भी प्रयोग किया जाता है। इसके रास्ते में छोटे आरामगाह गुंबद बने है जहां लोग आराम करते देखे जा सकते है। जौनपुर के शाहीपुल पर अंग्रेजी लेखक रूडयॉर्ड किपलिंग ने अपनी अद्भुत् कविता लिखी थी तथा कई विदेशी लेखकों नें इस पुल के बारे में लिखा। जौनपुर के इस पुल की तुलना एक अंग्रेजी घुमक्कड़ जो 19वीं शताब्दी में आया था ने लंदन ब्रिज से किया था। आज भी शाही पुल अपनी शौर्य का गान करता हुआ खड़ा है। शाही पुल के ऊपर एक हांथी और सिंह का अंकन किया गया है जो की प्रतिहार काल का प्रतीत होता है।
7 वीं से लेकर 12 वीं शताब्दी में उत्तर भारत और मध्य भारत में 3 प्रमुख राज वंशों ने साशन किया जिनमे से प्रतिहार, परमार और चंदेल हैं। इन तीनों ही राजचिन्हों में हाथियों और शेरो का अंकन दिखाया गया है। इस अनुसार यह प्रतिहार काल का ज्यादा प्रतीत हो रहा है। कुछ लोगों के अनुसार यह बुद्ध धर्म से प्रेरित है जो की पूर्ण रूप से गलत और काल्पनिक है। हाथी और शेर ताकत के परिपूरक होते हैं इस लिए इनका वंशों से अधिक तारतम्य है। अभी पुरातात्त्विक अध्ययनों से यह पता नहीं चल पाया है की यह प्रतिमा यहाँ पर कहाँ से लायी गयी है परन्तु यह सत्य है की इस प्रतिमा की तिथि करीब 11-12वीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा का और पुल के इतिहास में लम्बे काल का अंतर देखा जा सकता है।
सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Shahi_Bridge
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Mughal_architecture
3. https://www.revolvy.com/page/Shahi-Bridge
4. https://www.jaunpurcity.in/2013/12/beauty-and-history-of-shahi-bridge.html
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