विश्व तेज़ी से विद्युतीकृत होता जा रहा है और न केवल विकासशील देश अपनी आबादी तक बिजली की उपलब्धता बढ़ा रहे हैं, बल्कि मौजूदा परिवहन बुनियादी ढांचे का विद्युतीकरण तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। दरसल बैटरी इस परिवर्तनकाल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बैटरियां लंबे समय से हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा रही हैं। दुनिया की पहली बैटरी सन 1800 में इतालवी भौतिक विज्ञानी एलेसेंड्रो वोल्टा द्वारा आविष्कार की गई थी।
लिथियम आयन बैटरी (Lithium-ion battery) में, लिथियम धातु बैटरी के माध्यम से एक इलेक्ट्रोड (Electrode) से दूसरे में लिथियम आयन के रूप में स्थानांतरण करते हैं। लिथियम सबसे हल्के तत्वों में से एक है और इसमें सबसे मज़बूत विद्युत रासायनिक क्षमता को देखा जा सकता है। यह लिथियम-आयन बैटरी को एक छोटी, हल्की बैटरी में बहुत अधिक ऊर्जा भंडारण संरक्षित करने में सक्षम बनाता है। नतीजतन, लिथियम आयन बैटरी कई उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics) जैसे लैपटॉप (Laptop) और सेल फोन (Cell phone) में उपयोग की जाने वाली बैटरी बन गई है।
भारत द्वारा चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया से लिथियम-आयन बैटरी को आयात किया जाता है। क्लीनटेकनीका (CleanTechnica) के अनुसार, भारत ने 2018-19 में $ 1.23 बिलियन की लिथियम-आयन बैटरी का आयात किया, जो 2014-15 की तुलना में छह गुना अधिक है। साथ ही क्लीनटेकनीका का अनुमान है कि भारत को 2022 तक न्यूनतम 10 गीगावाट घंटे और 2025 तक 50 गीगावाट घंटे की बैटरी की आवश्यकता होगी। इसकी तुलना में, चीन को 2023 तक 600 गीगावाट घंटे से अधिक वार्षिक बैटरी उत्पादन क्षमता की उम्मीद है।
ब्लूमबर्गएनईएफ (BloombergNEF) के एक विश्लेषण के अनुसार, 2019 की शुरुआत में वैश्विक लिथियम आयन विनिर्माण की क्षमता 316 गीगावाट-घंटे थी। इस क्षमता में चीन की 73% हिस्सेदारी रही है, इसके बाद अमेरिका, 12% वैश्विक क्षमता के साथ दूसरे स्थान पर है। दरसल चीन को सस्ते श्रमिकों का एक बड़ा लाभ है, इस वजह से ही कई विनिर्माण उद्योगों पर चीन हावी है। साथ ही चीन में संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक लिथियम भंडार और अधिक लिथियम उत्पादन मौजूद है। 2018 में, चीनी लिथियम का उत्पादन 8,000 मीट्रिक टन, सभी देशों में तीसरा और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिथियम उत्पादन का लगभग दस गुना था। 2018 में चीनी लिथियम भंडार एक मिलियन मीट्रिक टन था, जो अमेरिकी स्तर का लगभग 30 गुना था।
लिथियम-आयन बैटरी के तीन घटक हैं: मूल सेल (Cell), बैटरी पैक (Battery pack) और बैटरी प्रबंधन प्रणाली। एक पूर्ण बैटरी में एक प्रबंधन प्रणाली द्वारा नियंत्रित पैक में कई सेल शामिल होते हैं। हालांकि, वर्तमान समय में भारत को सेल के व्यवसाय में बड़ा हाथ डालने से पहले थोड़ा विचार कर लेना चाहिए, क्योंकि ऐसी प्रौद्योगिकी को बदलने में समय नहीं लगेगा। लेकिन भारत के लिए अन्य दो घटकों पर ध्यान केंद्रित करना अधिक विवेकपूर्ण हो सकता है। बैटरी पैक इस प्रौद्योगिकी में बदलाव के लिए अधिक प्रतिरोधी हैं और भारत के सॉफ्टवेयर (Software) क्षमता से बैटरी प्रबंधन प्रणाली में काफी लाभ हो सकता है।
यह देखते हुए कि भारत में लिथियम के भंडार की कमी है, हमें "शहरी खनन" पर विचार करना चाहिए ताकि संभवतया रणनीतिक विकल्प के रूप में कचरे से खनिजों का निष्कर्षण हो सके। हाल ही की एक बाज़ार अनुसंधान रिपोर्ट में एक पुनर्नवीनीकरण 23 गीगावाट घंटे की क्षमता वाली लिथियम-आयन बैटरी की कीमत 2030 तक एक अरब डॉलर होगी। वहीं भारत अगले एक दशक में अपने पारंपरिक इंजन वाले वाहनों के एक बड़े हिस्से को इलेक्ट्रिक वाहनों द्वारा बदलने की योजना बना रहा है, विशेष रूप से प्रदूषण को कम करने और इस तरह के वाहनों के निर्माण के माध्यम से रोजगार पैदा करने के लिए। इस सपने को साकार करने के लिए चीन की एक बड़ी भूमिका रहेगी।
यह विशेष रूप से इसलिए है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग करके चलाए जाएंगे, लिथियम-आयन बैटरी में लिथियम-आयन सेल मौजूद होते हैं जो लिथियम, निकल (Nickel), कोबाल्ट (Cobalt) और मैंगनीज़ (Manganese) जैसी धातुओं का उपयोग करते हैं। बोलीविया, चिली, ऑस्ट्रेलिया और कोंगो जैसे देशों में खानों की खरीद के साथ, चीन इन धातुओं के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है।
संदर्भ:-
1. https://bit.ly/2Sook1g
2. https://bit.ly/2st5lrN
3. https://bit.ly/39b3E2Q
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