किलों के प्रकार से लेकर उनकी संरचनाओ तक यदि देखा जाये तो कुछ न कुछ विशेषताएं होती हैं जो एक किले को अन्य किलों से भिन्न बनाती हैं। यही कारण रहा है की विभिन्न किलों की अपनी एक वास्तु शैली रही है। इन्ही शैलियों के आधार पर ही विभिन्न किलों का अध्ययन किया जाता है। आगरा के किले से लेकर के नल दुर्ग के किले तक सबमें कई विषमताओं को हम देख सकते हैं। उनके बुर्जों के प्रकारों में, उनके मुख्य द्वारों एवं अन्दर कि संरचनाओं में आदि कई बातें सामने उभर के आती हैं।
यदि शुरुआती किलों की बात करें तो पटना का किला, अहिछत्र का किला, राखीगढ़ी के किले इन सबकी दीवारों से लेकर जौनपुर का किला, लाल किला, वसई का किला, गोलकोंडा किला, मुरुड जंजीरा, लोहागढ़ किला आदि किले कई अन्य प्रकारों को प्रदर्शित करते हैं। जैसे की लाल किला, जौनपुर का किला आदि में कठोर सामग्री उनकी बुर्जों व चाहरदीवारी में भरी जाती थी वहीं वसई किले के बुर्जों में कीचड़ की तरह की सामग्री भरी जाती थी जो तोप के गोलों को रोकने में सक्षम होती थी। इसी प्रकार सदैव अजेय रहा लोहागढ़ किला मिटटी का बना अपनी प्रकार का इकलौता दुर्ग है जो अपने पर आक्रमण करने वाले को कठोर चुनौती देता था तथा उसने आक्रामकों को नाक से चने चबवा दिए थे। किलों की सुन्दरता के भी समय समय पर हमें विभिन्न उदाहरण दिखाई देते हैं जो सामरिक मजबूती के अलावा कला का भी उत्तम उदाहरण हैं। विभिन्न किलों के दरवाजों में भी कई तकनीकी विशेषताएं दिखाई देती हैं जो किले की सुरक्षा के लिए एक अहम् बिंदु हैं। विभिन्न किलों मुख्यतया स्थल किलों के चारो तरफ बनायीं गयी नहरें भी कई अलग अलग प्रकारों से बनवाई जाती थी। यह सारी विशेषताएं किलों को एक आकार व प्रकार प्रदान करती हैं।
चित्र संख्या 1 में जौनपुर किले के मुख्यद्वार के अंदर का भाग प्रदर्शित किया गया है। वह किले की सामरिक स्थिती के दौरान की तैयारियों को दिखाता है। चित्र संख्या दो वसई किले के एक गिरजाघर का है जिसके अंदर चित्रकारी भी की गयी है। यह सौन्दर्य और धार्मिक स्थिति के महत्ता को प्रदर्शित करता है।
1. फोर्टीफाईड सिटीज़ ऑफ़ इंडिया- ए कम्पेरेटिव स्टडी: डाइटर श्लिंग़लोफ़
2. फोर्ट्स ऑफ़ इंडिया: वर्जीनिया फास
3. फोर्ट्स एण्ड पैलेसेस ऑफ़ इंडिया: अमिता बेग, जोगिन्दर सिंह
4. द स्ट्रॉन्गहोल्ड ऑफ़ इंडिया: सिडनी टॉय