पगड़ी भारत के विभिन्न प्रदेशों के परिधानों का हिस्सा है जिसका प्रयोग प्राचीन काल से ही किया जा रहा है। केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देश ऐसे हैं जहां पगड़ी का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। यह सिर पर बांधे जाने वाला एक परिधान या पहनावा है जिसे घुमावदार रूप देकर सिर पर बांधा जाता है।
पगड़ी पहनने वाले समुदाय भारत के अतिरिक्त दक्षिण पूर्व एशिया, अरब प्रायद्वीप, मध्य पूर्व, मध्य एशिया, उत्तरी अफ्रीका इत्यादि में देखे जा सकते हैं हलांकि इन क्षेत्रों में इन्हें बांधने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। भारत में सिख धर्म के लोग प्रायः पगड़ी में ही नजर आते हैं। मुख्य रूप से धार्मिक अनुष्ठानों में कई हिंदू लोग इसे धारण करते हैं। मुस्लिम धर्म के शिया समुदाय के लोग भी पगड़ी पहनने को आवश्यक मानते हैं तथा यह सूफी विद्वानों का भी पारंपरिक परिधान रहा है। कभी-कभी बालों की रक्षा के लिए या कैंसर के इलाज के बाद महिलाओं के लिए एक हेडकैप (Headcap) के रूप में भी पगड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।
पगड़ी की उत्पत्ति को प्रायः अनिश्चित माना जाता हैं। इसका पहला उल्लेख चौदहवीं शताब्दी के अंत में मिलता है। कुछ प्राचीन सभ्यताओं जैसे कि प्राचीन भारत, मेसोपोटामिया, सुमेरियन आदि ने पगड़ी का उपयोग प्राचीन काल से ही किया। बीजान्टिन (Byzantine) सेना के सैनिकों द्वारा पाइज़ोलिस (phakeolis) नामक पगड़ी पहनी जाती थी। माना जाता है कि इस्लामी पैगंबर, मुहम्मद ने भी सफेद रंग की पगड़ी पहनी थी। शिया पादरियों द्वारा आज भी सफेद रंग की पगड़ी पहनी जाती है। कई मुस्लिम पुरुष हरे रंग की पगडी का उपयोग करते हैं क्योंकि उनका यह मानना है कि यह स्वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, खासकर सूफीवाद के अनुयायियों के बीच।
भारत में पगडियों की कई शैलियां हैं, जो हर क्षेत्र या धर्म के लिए विशिष्ट स्थान रखती हैं। ये पगडियां आकार, रंग इत्यादि में भिन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, मैसूर पेटा, मराठी फेटा, पुनेरी पगड़ी और सिख पगड़ी। इन्हें मुख्य रूप से सम्मान का प्रतीक माना जाता है तथा विभिन्न आयोजनों में इसे मेहमानों को भेंट भी किया जाता है। भारत में पगडी के रंगों को अक्सर अवसर या परिस्थिति के अनुरूप चुना जाता है। उदाहरण के लिए भगवा रंग वीरता या बलिदान (शहादत) के प्रतीक के रूप में, सफेद रंग शांति के प्रतीक के रूप में, गुलाबी रंग वसंत से संबंधित या विवाह समारोहों के अवसर पर पहना जाता है। इसके इतिहास को देंखे तो इसका इतिहास 4,000 साल पुराना है।
वर्तमान समय में इसका उपयोग प्रायः धूप, बारिश या ठंड से बचने के लिए भी किया जाता है। प्राचीन काल के कुछ क्षेत्रों में केवल विशेष समूह के लोगों को ही इसे पहनने का विशेषाधिकार था। कुछ क्षेत्रों में विभिन्न रंगों की पगड़ी धारण करने का आदेश दिया गया था ताकि इससे लोगों की पहचान की जा सके। मुगल साम्राज्य की स्थापना से पहले भारत में केवल शाही लोगों और उच्च अधिकारियों को ही पगड़ी पहनने की अनुमति थी। इस परिधान को अक्सर मोर के पंखों और गहनों से सजाया जाता था। इस्लामी शासन द्वारा भारत की इस अवस्था में परिवर्तन लाया गया। मुगलों की पगड़ी प्रायः शंकुधारी हुआ करती थी। 1658 में जब औरंगजेब सत्ता में आया, तो उसने गैर-मुस्लिमों को पगड़ी पहनने से रोकने का प्रयास किया, यह तय करते हुए कि केवल इस्लामी शासक वर्ग के लोगों को ही इसे पहनने का अधिकार होगा। किंतु इसका विरोध करते हुए सिख समुदाय के लोगों ने पगड़ी को अपने सम्मान के प्रतीक के रूप में धारण किया। यह सिखों की स्वतंत्रता, समानता, और जाति भेद को समाप्त करने का प्रतीक बन गयी थी।
ब्रिटिश शासन के तहत पगड़ी को धारण करने में परिवर्तन आए। अंग्रेज सिखों के सैन्य कौशल से प्रभावित थे और उन्होंने सैन्य निर्माण के लिए सिखों की भर्ती करना शुरू किया। अंग्रेजों ने सभी सैनिकों के लिए पगड़ी पहनना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों ने रेजिमेंटों का निर्माण किया और सिख सैनिकों की पहचान करने के लिए पगडी में एक गोल हथियार उपयोग किया। जब देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की तो धार्मिक समूहों ने अपनी पहचान फिर से बनाने के लिए पुनः पगडी का उपयोग अपने-अपने प्रतीकों के रूप में किया।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Turban
2. https://edition.cnn.com/style/article/turbans-tales-history/index.html
3. http://www.millinerytechniques.com/turbans.html
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/345K7Ns
2. https://bit.ly/2RyKMVh
3. https://pixabay.com/pt/photos/%C3%ADndia-homem-turbante-indiano-787720/
4. https://pxhere.com/en/photo/1593038
5. https://bit.ly/2PqChsH
6. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Turban_from_Gujarat.jpg
7. https://in.pinterest.com/pin/367184175839718204/?lp=true
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