धरती पर पौधों की कई ऐसी प्रजातियां हैं जो दिखती तो अलग-अलग हैं किंतु होती समान हैं। शहतूत की मॉरस नाइग्रा (Morus nigra) तथा मॉरस अल्बा (Morus alba) भी इन्हीं प्रजातियों में से एक हैं। मॉरस नाइग्रा काले शहतूत की प्रजाति है जिसे ब्लैकबेरी (Blackberry) भी कहा जाता है। यह प्रजाति परिवार मोरेशिए (moraceae) से सम्बंधित है तथा जो दक्षिणपूर्वी एशिया में मूल रूप से पायी जाती है। इस क्षेत्र में इसकी खेती लंबे समय से की जा रही है। मॉरस नाइग्रा इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें बड़ी संख्या (308) में गुणसूत्र पाये जाते हैं।
अक्सर लोग इसको तथा शहतूत की अन्य प्रजातियों को लेकर भ्रमित हो जाते हैं किंतु ये प्रजातियां अलग-अलग हैं। काले शहतूत की खेती लंबे समय से अपने खाने योग्य फलों के लिए की जा रही है और इसे यूरोप और यूक्रेन सहित चीन के कुछ भागों में भी प्राकृतिक रूप से उगाया जाता है। माना जाता है कि मॉरस नाइग्रा की उत्पत्ति मेसोपोटामिया और फारस के पहाड़ी इलाकों में हुई थी जो अफगानिस्तान, इराक, ईरान, भारत, पाकिस्तान, सीरिया, लेबनन, जॉर्डन, फिलिस्तीन और तुर्की में फैली। इन क्षेत्रों में अक्सर इन फलों से जैम (Jam) और शर्बत भी बनाए जाते हैं। काले शहतूत को 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन में आयात किया गया था और यह उम्मीद की गयी थी कि यह रेशम के कीड़ों को बढ़ाने में सहायक होगा किंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि रेशम के कीड़े काले शहतूत को नहीं बल्कि सफेद शहतूत को पसंद करते हैं।
इसी प्रकार से मोरस अल्बा भी सफेद शहतूत की एक प्रजाति है जोकि तेजी से बढ़ता है। इसकी लम्बाई 10–20 मीटर तक हो सकती है। यह प्रजाति मूल रूप से उत्तरी चीन की है तथा इसकी खेती व्यापक रूप से की जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, किर्गिस्तान, अर्जेंटीना, तुर्की, ईरान, आदि में यह प्राकृतिक रूप से उगाया जाता है। रेशम के व्यावसायिक उत्पादन के लिए सफेद शहतूत की व्यापक रूप से खेती की जाती है क्योंकि रेशम के कीड़े सफेद शहतूत में ही रहना पसंद करते हैं। रेशम के कीड़ों के लिए सफेद शहतूत की खेती चीन में चार हज़ार साल पहले शुरू हुई थी। 2002 में, चीन में 6,260 किलोमीटर भूमि सफेद शहतूत की खेती के लिए उपयोग में लायी गयी थी।
शहतूत की पत्तियां रेशम के कीड़ों के लिए पसंदीदा भोजन हैं जो उन्हें बढ़ाने में मदद करता है। कोरिया में इन पत्तियों का उपयोग चाय बनाने के लिए भी किया जाता है। इसके फलों को सुखाकर इनसे शराब या शर्बत बनायी जाती है। शहतूत की इस किस्म का उपयोग अब एक सजावटी पेड़ के रूप में भी किया जाता है। सफेद शहतूत एक जड़ी बूटी की भांति कार्य करता है। इसकी पत्तियों का चूर्ण बनाकर दवाईयों का निर्माण किया जाता है। फल को प्रायः कच्चा या पकाकर भोजन रूप में उपयोग में लाया जाता है और मधुमेह के इलाज में भी सफेद शहतूत को प्रभावी माना जाता है।
उच्च कोलेस्ट्रॉल (Cholestrol) के स्तर, उच्च रक्तचाप, सामान्य सर्दी, मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द जैसे गठिया, कब्ज़, चक्कर आना, बालों का झड़ना आदि के निवारण के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। सफेद शहतूत में कुछ रसायन होते हैं जो मधुमेह के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं के निर्माण हेतु उपयोगी हैं। इसी प्रकार से काले शहतूत का उपयोग कैंसर (Cancer) के उपचार के दौरान हुए मुंह के घावों के लिए भी किया जाता है। इसमें पेक्टिन होता है जो औषधि निर्माण में प्रयोग में लाया जाता है।
भारत में शहतूत की विभिन्न प्रजातियों का वितरण निम्नवत है:
V1 और S36 रेशमकीट पालन के लिए उच्च उपज देने वाली शहतूत की किस्में हैं। इनकी पत्तियां पौष्टिक होती हैं, जो रेशम कीट के लार्वा (Larvae) की वृद्धि के लिए उपयुक्त हैं। किस्म S36 की पत्तियां दिल के आकार की, मोटी और हल्की हरे रंग की होती हैं। इनकी पत्तियों में उच्च नमी और अधिक पोषक तत्व होते हैं। वहीं इसकी दूसरी प्रजाति V1 1997 के दौरान उत्पादित की गई थी जिसकी पत्तियां अंडाकार, आकार में चौड़ी, मोटी, रसीली और गहरे हरे रंग की होती हैं।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Morus_nigra
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Morus_alba
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Morus_(plant)
4. https://wb.md/2pUR99P
5. https://www.webmd.com/vitamins/ai/ingredientmono-357/black-mulberry
6. http://www.fao.org/3/X9895E/x9895e04.htm
7. http://vikaspedia.in/agriculture/farm-based-enterprises/sericulture/mulberry-cultivation
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://pixabay.com/pt/photos/black-frescos-morus-mulberry-nigra-87304/
2. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Morus_nigra_fruits.JPG
3. https://pxhere.com/vi/photo/1275075
4. https://commons.wikimedia.org/wiki/Morus_nigra
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