भारत में जंगली पशुओं की बहुत अधिक विविधता पायी जाती है और यही कारण है कि यहां ऐसे जीव भी दिखने को मिलते हैं जो सभी को आश्चर्यचकित कर देते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण उत्तरी और मध्य भारत में पाया जाने वाला बारहसिंगा है जो उत्तरप्रदेश के राज्य पशु के रूप में भी सुशोभित है। इस जीव को दक्षिणी-पश्चिम नेपाल और अन्य स्थानों पर भी देखा जा सकता है हालांकि पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे कुछ क्षेत्रों में अब यह प्रायः विलुप्त हो गया है।
बारहसिंगा का सबसे विलक्षण अंग इसके सिर पर लगे सिंग हैं। वयस्क नर में इन सींगों की शाखाओं की संख्या 10-14 के बीच होती है और यही कारण हैं कि इन्हें बारहसिंगा के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है बारह सींग वाला। इसके सींग सामान्य सीगों की अपेक्षा अलग होते हैं, क्योंकि यह युग्मित तथा शाखाओं वाली संरचना है जो पूरी तरह से हड्डी से बनी होती है। इन्हें एंटीलर्स (Antlers) कहा जाता है जिनमें पानी और प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है।
पर्यावरणीय परिवर्तनों के परिणामस्वरूप इसकी संरचना भी बदलती जाती है। इसके विपरीत सामान्य सींग (Horns) अशाखित व अयुग्मित होते हैं तथा केराटिन (keratin) नामक पदार्थ द्वारा आवरित किए जाते हैं। यह स्थायी होते हैं तथा विभिन्न प्रजातियों में लगातार बढ़ते जाते हैं। बारहसिंगा के सिंगों में पाये जाने वाले प्रोटीन और अन्य उपयोगी तत्वों के कारण वर्तमान समय में इनकी मांग बहुत अधिक है।
बारहसिंगा प्रायः गंगा नदी के मैदानी इलाकों में बहुतायत में पाये जाते हैं जिस कारण इसे दलदली हिरण (Swamp deer) भी कहा जाता है। यह हिरण की एक प्रजाति है जिसकी ऊंचाई 44 से 46 इंच तक हो सकती है। शरीर पर प्रायः पीले या भूरे रंग के बाल पाये जाते हैं। तराई इलाकों में बारहसिंगा दलदलीय क्षेत्रों में रहता है और मध्य भारत में यह वनों के समीप स्थित घास के मैदानों में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह उत्तर पूर्वी भारत के असम में भी पाया जाता है। असम में स्थित काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में यह पशु आसानी से देखा जा सकता है। हालांकि कुछ स्थानों पर यह पहले पाया जाता था किंतु अब प्रायः विलुप्त हो गया है।
भारत में बारहसिंगा की मुख्य रूप से तीन उप-प्रजातियां पायी जाती हैं जिन्हें संकटग्रस्त जीव की श्रेणी में रखा गया है। इन प्रजातियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची I के तहत शामिल किया गया है। मध्य प्रदेश स्थित कान्हा नेशनल पार्क जोकि 940 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है, में भी इस जीव के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। यह उद्यान न केवल भारत के सबसे बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है, बल्कि इसे एशिया के सर्वश्रेष्ठ वन्यजीवों के खजाने में से एक माना जाता है जिनमें बारहसिंगा भी शामिल है।
बढते शिकार, आवास, घास के मैदानों की कमी तथा भोजन की अनुपलब्धता आदि ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से इस जीव की संख्या बहुत कम हो चुकी है तथा इसे संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। इसके संरक्षण के लिए उन अभ्यारण्यों जहां ये जीव पाये जाते हैं, में संरक्षण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। बारहसिंगा की आबादी को बचाने के लिए 1954 में बारहसिंगा के लाइसेंस (License) प्राप्त शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था किंतु यह प्रतिबंध उन शिकारियों के खिलाफ अत्यधिक अप्रभावी था जिनके पास लाइसेंस नहीं था। ऐसे शिकारियों की संख्या लाइसेंस प्राप्त शिकारियों की तुलना में बहुत अधिक थी।
सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Barasingha
2. https://bit.ly/2R1Qi28
3. https://bit.ly/2XWWWbp
4. https://bit.ly/35JhtD1
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2sscKHI
2. https://pxhere.com/en/photo/431057
3. https://www.flickr.com/photos/internetarchivebookimages/14749405642
4. https://bit.ly/2rENxsV
5. https://www.pexels.com/photo/brown-deer-2014947/
6. https://www.pexels.com/photo/brown-deer-1634094/
7. https://www.flickr.com/photos/sankaracs/5845654857
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