भारत एक ऐसा देश हैं जहां विभिन्न प्रकार के पर्व मनाए जाते हैं जिनके अपने-अपने महत्व तथा विशेषताएं होती हैं। प्रत्येक पर्व को मनाने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य ज़रूर होता है तथा इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए समाज द्वारा ये पर्व विभिन्न रूपों में मनाए जाते हैं। जैसा कि हम जानते ही हैं कि भाई-बहन का रिश्ता बहुत मज़बूत तथा सौहार्दपूर्ण होता है और इसलिए इस महत्व को बनाए रखने के लिए प्राचीन काल से ही रक्षाबंधन और भाई-दूज जैसे पर्व मनाए जा रहे हैं। दोनों ही पर्वों को मनाने का मुख्य उद्देश्य दोनों के रिश्ते में प्रेम भरना तथा रिश्ते को और भी अधिक गहरा करना है। जिस प्रकार रक्षाबंधन में बहनें भाईयों की कलाई में रक्षासूत्र बांधकर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं, ठीक उसी प्रकार से भाई-दूज में बहनें भाईयों को टीका लगाकर तथा आरती उतारकर उनके लम्बे और सुखद जीवन की प्रार्थना करती हैं। इस प्रकार दोनों ही पर्व भाई-बहन के बीच रिश्ते को गहरा करने और मानवीय भावों को जागृत करने का कार्य करते हैं।
यह पर्व दीपावली के ठीक दो दिन बाद मनाया जाता है जो इस बार 29 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। इस पर्व को मनाने के पीछे कई किंवदंतियाँ मौजूद हैं। एक किवदंती के अनुसार एक बार यमराज की बहन यमी, जिन्हें यमुना के नाम से भी जाना जाता है, ने उनके माथे पर तिलक लगाकर उनका स्वागत किया तथा आरती उतारकर मिठाई खिलाई। बदले में यम ने अपनी बहन को प्रेम और स्नेह के प्रतीक के रूप में एक सुंदर उपहार दिया तथा यह घोषणा की, कि जो कोई भी इस दिन अपनी बहन से आरती और तिलक प्राप्त करेगा उसे कभी भी मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं होगी। इसलिए देश के कई हिस्सों में इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षस राजा नरकासुर का वध किया जिसके बाद उनकी बहन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण की आरती उतारकर तिलक, मिठाई और फूलों से उनका स्वागत किया। इसके अतिरिक्त एक अन्य कहानी के अनुसार जब जैन धर्म के संस्थापक महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया, तो उनके भाई राजा नंदीवर्धन उनकी याद में बहुत व्याकुल हुए। इस समय उनकी बहन सुदर्शना द्वारा ही उन्हें सांत्वना दी गयी थी जिस कारण वे व्याकुलता से उभर पाये थे। तब से, भाई दूज के दौरान महिलाएं पूजनीय रही हैं। इस पर्व का अनुष्ठान सुबह से ही प्रारम्भ हो जाता है। आमतौर पर, इस दिन भाई अपनी बहन से मिलने जाते हैं तथा उसके साथ भोजन करते हैं। संस्कृत में, इसे "भगिनी हस्तभोजनम्" कहा जाता है जिसका अर्थ होता है "बहन के साथ भोजन करना"। कुछ स्थानों पर भाई-बहन यमुना नदी के पवित्र जल में डुबकी भी लगाते हैं। भारत में कुछ समुदाय इस दिन चित्रगुप्त की भी पूजा करते हैं जिन्हें यमराज का पौराणिक अभिलेख रक्षक कहा जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में इस पर्व को विविध नामों जैसे भाऊ बीज, भाई टेका या भाई फोता आदि के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में यह पर्व भाई और बहन के बीच स्नेह और प्रेम के शाश्वत बंधन का एक सुंदर पहलू है जो परिवार के सदस्यों के बीच मौजूद मज़बूत पारिवारिक संबंधों को दर्शाता है। संदर्भ:© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.