मानसिक स्वास्थ्य जीवन का एक अभिन्न अंग है क्योंकि हमारे जीवन का हर कार्य तभी सफल हो सकता है जब हम मानसिक रूप से स्वस्थ रहें तथा हमारे सोचने या विचार करने की क्षमता संतुलित हो। किंतु जब किसी व्यक्ति की सोचने, समझने या विचार करने की क्षमता और उसके व्यवहार में असंतुलित बदलाव आ जाता है तो वह मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है। यह एक ऐसा विकार है जो आपकी मनोदशा, सोच और व्यवहार को प्रभावित करता है। इसके चलते व्यक्ति तनाव में आ जाता है जोकि उसके कार्य, रिश्तों आदि को प्रभावित कर सकता है।
मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति प्रायः निम्नलिखित लक्षणों को महसूस करता है:
• उदास महसूस करना
• विचारों का भ्रमित हो जाना
• अत्यधिक भय
• चिंता या अवसाद
• थकान, कम ऊर्जा, नींद न आने की समस्या
• तनाव
• शराब या नशीली दवाओं के उपयोग के साथ समस्याएं
• खाने की आदतों में बड़ा बदलाव
• अत्यधिक क्रोध, शत्रुता या हिंसा
• आत्मघाती सोच
कभी-कभी मानसिक विकार के लक्षण शारीरिक समस्याओं जैसे पेट में दर्द, पीठ में दर्द, सिरदर्द आदि के रूप में भी प्रकट होते हैं। घबराहट, फोबिया (Phobia) या डर, चिंता, अवसाद, व्यक्तित्व विकार, मनोवैज्ञानिक विकार आदि मानसिक बीमारियों के प्रकार हैं जो निम्नलिखित कारणों से हो सकते हैं:
• जीन (Genes) और परिवारिक इतिहास
• जीवन के अनुभव जो तनाव उत्पन्न करें
• जैविक कारक जैसे मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन
• मस्तिष्क की चोट
• गर्भवती होने पर विषाणु या ज़हरीले रसायनों के संपर्क में आना
• शराब या हानिकारक दवाओं का उपयोग
• कैंसर (Cancer) जैसी गंभीर चिकित्सीय स्थिति होना
• अकेला या अलग महसूस करना
वर्तमान में इस बीमारी की समस्या पूरे विश्व में बहुत प्रभावी हो गयी है जिसके चलते मानसिक रोग से ग्रसित व्यक्ति आत्महत्या का जोखिम उठाने लगे हैं। यह पाया गया है कि, हर 40 सेकंड में, कोई न कोई मानसिक रोगी आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवा देता है। इसलिए दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है जिसकी स्थापना विश्व मानसिक स्वास्थ्य संघ (World federation for mental health - वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ) द्वारा की गयी थी। इस बार मनाया जाने वाला विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस इससे जुड़ी आत्महत्या को रोकने या इससे बचाव करने पर केंद्रित है। इसकी आवश्यकता मुख्य रूप से इसलिए है ताकि मानसिक रोग तनाव का कारण न बने और व्यक्ति की कार्य क्षमता को प्रभावित न करे।
अधिकतर व्यक्ति मानसिक रोग के कारण शर्मिंदगी महसूस करते हैं किंतु यह शर्मिंदगी का विषय नहीं है। यह उन शारीरिक बीमारियों के समान है जिनका उपचार किया जा सकता है। किंतु अगर समय रहते उचित देख-रेख न की जाये तो यह गम्भीर रूप भी ले सकता है। इन्हीं बातों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। यदि मानसिक रोग से ग्रसित व्यक्ति आत्महत्या के विचार या व्यवहार से प्रभावित है तो तुरंत प्राथमिक देखभाल प्रदाता से मदद लें। ऐसे व्यक्तियों को किसी करीबी दोस्त से अपनी भावनाएं साझा करनी चाहिए। यदि आपके प्रियजन में मानसिक बीमारी के लक्षण दिखते हैं, तो उनकी चिंताओं के बारे में उनके साथ खुले रूप और ईमानदारी से चर्चा करें तथा एक योग्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर खोजने में उनकी मदद करें।
यह रोग किसी भी उम्र या लिंग के व्यक्ति को हो सकता है तथा बच्चों, जो कि अपनी भावनाएं ठीक से व्यक्त नहीं कर सकते, उनमें यह समस्या आम होती जा रही है। भारत में 12 से 13% स्कूली छात्र इस समस्या से ग्रसित हैं। माता-पिता व स्कूल की व्यस्त दिनचर्या में वे खुद को अकेला समझने लगते हैं और उदास हो जाते हैं जो बाद में तनाव का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त मानसिक चिकित्सकों की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक दस लाख लोगों के लिए, सिर्फ तीन मनोचिकित्सक उपलब्ध होते हैं। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार स्कूलों में एक काउंसलर (Counsellor) का होना अनिवार्य है, किंतु अभी तक केवल 3% निजी स्कूलों में ही वास्तविक नियुक्ति दर्ज की गयी है जबकि सरकारी स्कूलों में इसकी स्थिति और भी खराब है। काउंसलिंग में यह सामने आया कि छात्र तनावपूर्ण शैक्षणिक माहौल और अपने माता-पिता की उच्च उम्मीदों के शिकार होते हैं। इसलिए स्कूलों में एक काउंसलर का होना बहुत ज़रूरी हो जाता है। काउंसलर न केवल उनकी भावनाओं को समझता है, बल्कि भावनाओं और विचारों को सही रूप देने में उनकी मदद भी करता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Krnifu
2. https://mayocl.in/2AOlG8U
3. https://medlineplus.gov/mentaldisorders.html
4. https://bit.ly/2KWxa3w
चित्र सन्दर्भ:-
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