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पेपर मैशे (Papier mache) का शाब्दिक अर्थ है मसला हुआ या कटा हुआ कागज़। यह एक प्रकार की मिश्रित सामग्री है जिसमें प्रायः लुगदी कागज़ का उपयोग किया जाता है। इसकी नमनीयता और मज़बूती को बढ़ाने के लिए मिट्टी, गोंद, स्टार्च (Starch) या अन्य चीज़ों का उपयोग किया जाता है। पेपर मैशे सबसे पहले ईरान से कश्मीर में आया जहां इससे कई वस्तुओं जैसे ट्रे (Tray), बॉक्स (Box), बुक कवर (Book Cover), लैंप (Lamp), पेन केस (Pen Case), खिलौने, फूलदान आदि आज तक बनाए जाते हैं और उन्हें फिर जटिल रूप से रंगा जाता है।
उपरोक्त चित्र श्रीनगर, कश्मीर के मदिन साहिब मस्जिद के सामने पेपर मैशे की क्रियात्मक शैली को प्रदर्शित करता है।
स्थानीय त्यौहारों में खिलौने बनाने के लिए पेपर मैशे का उपयोग उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह अनूठा शिल्प मुगल काल के दौरान विकसित हुआ और अब भी बड़ी संख्या में कारीगरों द्वारा इसका अभ्यास किया जा रहा है। मुगलों के समय में इनसे कई वस्तुएं बनाई गयीं तथा वस्तुओं की सतह को पारंपरिक लघु शैली में रंगा गया। इसके द्वारा कोई भी वस्तु बनाने के लिए पहले कागज़ को पानी में भिगाया जाता है जिसके बाद इसे चिपकने वाले घोल या स्टार्च के साथ मिश्रित कर लकड़ी के सांचों पर आकार दिया जाता है। आवश्यक मोटाई प्राप्त करने के लिए इसके ऊपर परतें चढ़ाई जाती हैं। इसके बाद इसे अच्छे से सुखाया जाता है तथा अंत में इसे रंग और वार्निश (Varnish) से सजाया जाता है।
भारत में विभिन्न प्रकार के उपयोगी और सजावटी पेपर मैशे का उत्पादन किया जाता है तथा कश्मीर को अपने उत्तम पेपर मैशे की वस्तुओं के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहां पेपर मैशे से बने विभिन्न प्रकार के उपयोगी सामान बनाए जाते हैं जिन्हें सुंदर कलाकृतियों से सजाया जाता है। कश्मीर में इस हस्तशिल्प को 14वीं शताब्दी में फारस (ईरान) के मुस्लिम संत मीर सैय्यद अली हमदानी द्वारा लाया गया था। पेपर मैशे एक फ्रांसिसी शब्द है जिसका अर्थ मसले तथा कटे हुए कागज़ है। यह हस्तशिल्प श्रीनगर, और कश्मीर घाटी के अन्य हिस्सों में घरों और कार्यशालाओं में बनाये जाते हैं। इस उत्पाद को भारत सरकार के भौगोलिक संकेत अधिनियम 1999 के तहत संरक्षित किया गया है। यह हस्तशिल्प कश्मीर की कला के रूप में जाना जाता है जिसे वहां मूल रूप से कर-ए-क़लमदान के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसे कलमों और लेखन में प्रयोग होने वाली सामग्रियों को रखने के लिए डिज़ाईन (Design) किया गया था। ऐसा माना जाता है कि इसकी खोज सबसे पहले चीन में हुई थी।
मुगल काल में इस कला को पालकी, छतों, दरवाज़ों और खिड़कियों पर बनाया गया था। मुगल संरक्षण के दौरान, दरबारियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अधिकांश पालकियों को कश्मीर में बनाया और चित्रित किया गया। इस कला के सुंदर नमूने यूरोप और अमेरिका के संग्रहालयों में भी देखे जा सकते हैं। पुराने दिनों में इसे कलात्मक रूप से लकड़ी, विशेष रूप से खिड़कियों, दीवारों, छतों और फर्नीचरों (Furniture) पर लागू किया गया था। पेपर मैशे के निर्माण को दो अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। एक है सख्तसाज़ी (वस्तु बनाना) और दूसरा नक्काशी (सतह को चित्रित करना)।
सख्तसाज़ी में बेकार कागज़, कपड़ा, चावल के भूसे और तांबा सल्फेट (Sulphate) को एक साथ मिलाकर लुगदी बनायी जाती है। लुगदी तैयार होने के बाद, इसे आवश्यक आकार देने के लिए लकड़ी या पीतल के सांचों पर उपयोग किया जाता है। जब लुगदी सूख जाती है, तो इसे एक समान सतह के साथ पत्थर की मदद से घिसकर चिकना किया जाता है। इसे मज़बूत बनाने के लिए इसके ऊपर गोंद का उपयोग किया जाता है। जिसके बाद इसे कठवा नामक लकड़ी से धीरे से रगड़ा जाता है। ब्रश (Brush) की मदद से वस्तु के अंदर व बाहर गोंद और चाक का मिश्रण लगाया जाता है। अब कागज़ के छोटे टुकड़ों को गोंद की मदद से उस पर चिपकाया जाता है।
इसकी रूपरेखा आमतौर पर एक ज़र्दा या पीले रंग के साथ खींची जाती है और रिक्त स्थान में फूलों के डिज़ाईन बनाये जाते हैं। फिर फूलों के कार्यों को विभिन्न रंगों में रंगा जाता है।
संदर्भ:
1.https://www.craftscouncilofindia.org/craft-process/paper-mache/
2.http://www.india-crafts.com/papier_mache/
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Kashmir_papier-m%C3%A2ch%C3%A9
4.https://bit.ly/2nKMfL9
5.https://bit.ly/2zbzChH