मित्रता दुनिया की पहली ऐसी चीज़ है जो इस दुनिया को और भी हसीन और दिलचस्प बनाती है। दुनिया भर के कितने ही शायरों ने इसकी परिकल्पना अपनी रचनाओं में की है। जौनपुर और ग्वालियर दोनों स्थानों का इतिहास गौरवमयी और स्वर्णिम रहा है। ये दोनों राज्य अपने समय के सबसे ताकतवर और संपन्न राज्यों में आते थे। ग्वालियर वर्तमान में मध्यप्रदेश में स्थित है। यह जिला अपनी कला और सौंदर्य के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है वहीं जौनपुर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित है। यह जिला भी अपनी कला और वास्तुकला के लिए जाना जाता है।
15वीं शताब्दी में ग्वालियर और जौनपुर अपनी ताकत और वास्तुकला के लिए ही नहीं बल्कि अपने संगीत के लिए भी जाने जाते थे। ग्वालियर में शासन करने वाले राजा मान सिंह तोमर संगीत के बड़े रखवाले होने के साथ ही साथ खुद भी एक संगीतज्ञ होने का भी प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। राजा मान सिंह के राज्यकाल में ग्वालियर घराना अपने चरमोत्कर्ष पर था। वहीं जौनपुर की बात की जाए तो यहाँ पर शासन करने वाले शर्की सुलतान हुसैन शाह शर्की भी संगीत और कला के प्रेमी होने के साथ-साथ संगीत के एक मूर्धन्य पंडित भी हुआ करते थे। हुसैन शाह शर्की को जौनपुर का आखिरी शासक माना जाता है। वे सन 1458 में अपने पिता सुलतान मुहम्मद शाह शर्की के उपरांत सिंहासन पर आये। जौनपुर का क्षेत्र बंगाल तक पूर्व में और आगरा तक पश्चिम में फैला हुआ था, हिमालय के तराई क्षेत्र से लेकर मालवा तक, जिसमें पूरा बघेलखंड और बुदेलखंड भी समाहित था। परन्तु सन 1494 ईस्वी में हुसैन शाह शर्की सिकंदर लोदी, जो कि बहलोल लोदी का पुत्र था, से पराजित हुए। यह युद्ध बनारस के नज़दीक हुआ था। यह लड़ाई हारने के बाद हुसैन शाह शर्की को बंगाल के राजा अलाउद्दीन हुसैन शाह ने पूर्वी बिहार के कुह्लगाँव में अपने राज्य का एक हिस्सा दिया जहाँ पर हुसैन ने शासन करना प्रारंभ किया था। फिरिश्ता के अनुसार हुसैन शाह शर्की गौर में मृत हुआ था। जौनपुर में बाबर के शासन काल में हुसैन के बेटे ने उसके शरीर के अवशेष को जौनपुर लाकर जामा मस्जिद के पीछे बने कब्रिस्तान में दफन किया।
हुसैन शाह शर्की को एक महान गायक और संगीतज्ञ का दर्जा प्राप्त है और उनको कई प्रकार के संगीत रागों का जनक भी माना जाता है जिसमें से एक है ‘ख्याल’ गायकी। मीरत-ऐ-अफताब-नामा के अनुसार हुसैन शाह को गन्धर्व की उपमा से नवाज़ा गया था। मांडू के बाज़ बहादुर और तानसेन को भी इसी पद से नवाज़ा गया था। मीरत-ऐ-अफताब-नामा के लेखक शाह नवाज़ खान ने कहा है कि हुसैन शाह संगीत और कला के मूर्धन्य विद्वान् थे। संगीत ही एक ऐसा कारक था जो हुसैन शाह शर्की की मित्रता राजा मान सिंह तोमर से कराता है। लोदियों से युद्ध के दौरान जब हुसैन शाह पराजित हुए तो उन्होंने तत्काल राजा मान सिंह तोमर को सन्देश भिजवाया कि वे ग्वालियर में शरण के लिए आना चाहते हैं। यह खबर सुनकर राजा मान सिंह तोमर ने अयोध्या के वास्तुविद लाद खान को आमंत्रित किया और उनको लाधेड़ी द्वार बनाने का हुक्म दिया। यह द्वार आज भी ग्वालियर में मौजूद है। आज भी यह दरवाज़ा जौनपुर और ग्वालियर की मित्रता को संदर्भित करता है।
संदर्भ:
1. https://sherazhyder.wordpress.com/sultan-hussain-sharqi/
2. https://www.jstor.org/stable/44304055?seq=1#page_scan_tab_contents
3. http://medieval_india.enacademic.com/210/Husain_Shah_Sharqi
4. http://archaeology.mp.gov.in/en-us/Monuments/Gwalior-Zone/Gwalior
5. https://bit.ly/2kXCDeS
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