शहरीकरण भारत के लिए आज एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। यह वो प्रक्रिया है जिसमें लोग अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करते हैं। शहरीकरण मुख्य रूप से उच्च आय और उत्पादकता के साथ जुड़ा हुआ है। जहां यह समाज को बड़े और कुशल श्रम बाजार उपलब्ध कराता है वहीं लेनदेन की लागत को भी कम करता है। यही कारण है कि लोग शहरीकरण से आकर्षित हुए हैं। किंतु शहरीकरण के संदर्भ में कुछ मिथक भी हैं। दरअसल शहरीकरण के शुरूआती दौर में नीति निर्माताओं ने कृषि निवेश और ग्रामीण भूमि सुधार के बजाय पूंजी-गहन औद्योगिकीकरण और शहरी बुनियादी ढांचे पर ज़ोर दिया, जिससे शहरीकरण प्रभावी हुआ तथा ग्रामीण विकास असंतुलित हो गया। किंतु यह दौर हमेशा ऐसा ही नहीं चला। हालांकि शहरीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभाव, जैसे प्रदूषण, यातायात क्षेत्र में भीड़-भाड़, जीवन यापन की उच्च लागतें आदि सामने आये किंतु इसने देश के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा दिया जिसमें ग्रामीण क्षेत्र का आर्थिक विकास भी शामिल है। शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्र आपस में जुड़े हुए हैं। शहरीकरण और ग्रामीण-शहरी अनुपात के बीच दो-तरफ़ा संबंधों के लिए लेखांकन करते समय, हम पाते हैं कि शहरीकरण (या सबसे बड़ी शहर की आबादी) शहरी-ग्रामीण असमानताओं को बढ़ाती है। किंतु वहीं कुछ ऐसे आंकड़े भी सामने आते हैं जिन्हें देखकर यह लगता है कि उच्च स्तर पर, शहरीकरण से शहरी-ग्रामीण असमानताओं को कम करने की उम्मीद की जा सकती है। यह वही है जिसकी हम उम्मीद करते हैं क्योंकि शहरीकरण से न केवल शहरी निवासियों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि समतुल्य श्रम प्रवाह और बराबर आय होने के कारण ग्रामीण आबादी भी विकास को साझा करती है।
शहरीकरण के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है। शहरीकरण ने कई गैर-कृषि रोज़गारों को बढ़ावा दिया जिन्होंने भारत के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी दी। पिछले दो दशकों के दौरान, ग्रामीण भारत में गैर-कृषि गतिविधियों में काफी विविधता आई है। जिसने भारत के शहरों और ग्रामीण इलाकों को इतने करीब कर दिया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। शहरी खर्च में 10% की वृद्धि ग्रामीण गैर-कृषि रोज़गार में 4.8% की वृद्धि को बढ़ावा देती है। आपूर्ति श्रृंखला पूरे देश में मज़बूत होने के कारण, शहरी मांग बढ़ने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिल सकता है। ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था उत्पादन संबंध, उपभोग संबंध, वित्तीय संबंध और प्रवास संबंध के माध्यम से एक दूसरे से सम्बंधित हैं। पिछले 26 वर्षों में एक अर्थमितीय दृष्टिकोण के अध्ययन से पता चलता है कि शहरी उपभोग व्यय में 100 रुपये की वृद्धि से ग्रामीण घरेलू आय में 39 रुपये की वृद्धि होती है। जिस प्रणाली के माध्यम से यह होता है वह ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ाती है। आंकड़ों की मानें तो पिछले दशक में देखी गई शहरी घरेलू खपत वृद्धि दर यदि निरंतर बनी रहती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 63 लाख गैर-कृषि रोज़गार उत्पन्न हो सकता है। पिछले एक दशक में शहरी अर्थव्यवस्था में 5.4% की तुलना में ग्रामीण अर्थव्यवस्था औसतन 7.3% बढ़ी है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के आंकड़े बताते हैं कि 2000 में भारत की जीडीपी (GDP) में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का 49% हिस्सा था जबकि 1981-82 में यह 41% और 1993-94 में यह 46% था। यदि शहरी और ग्रामीण आर्थिक विकास के संदर्भ में साझा समृद्धि के लक्ष्यों को बढ़ावा दिया जाए तो शहरी और ग्रामीण विकास के बीच संतुलन उत्पन्न होगा तथा दोनों ही अर्थव्यवस्थाएँ समान रूप से लाभ प्राप्त कर पायेंगी। ऐसा तभी सम्भव है जब शहरीकरण की प्रक्रिया सार्थक नीतियों पर आधारित हो। इसके लिए आर्थिक गतिविधियों की एकाग्रता को सुनिश्चित करना, लोगों को तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों से जोड़ना, बेहतर बुनियादी ढांचे के माध्यम से स्थानों को जोड़ना, तथा ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे उद्योगों को विकसित करना शामिल है जिनके लिए अधिक उन्नत शहर बहुत महंगे हो गए हैं। ये उद्योग छोटे शहरों के लिए आर्थिक आधार प्रदान कर सकते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण चेन्नई के समीप का एक छोटा शहर श्रीपेरंबुदूर है। बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure), बंदरगाह की निकटता, बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं 1999 में हुंडई (Hyundai) के लिए यहां एक ऑटो फैक्ट्री (Auto factory) लगाने के लिए काफी प्रोत्साहन भरी थीं। 2006 तक इसने दस लाख गाड़ियों का उत्पादन किया था। इस प्रकार साझा समृद्धि के लक्ष्यों को प्राप्त कर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का समान आर्थिक विकास प्राप्त हो सकता है।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.