विश्व के शीर्ष दस धर्मों में हिन्दू धर्म चौथे स्थान पर है। हिन्दू धर्म के अनुयायी लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल जाएगें। दक्षिण अमेरिका के दो राष्ट्र गुयाना और सूरीनाम में अन्य पश्चिमी राष्ट्रों की अपेक्षा हिदुओं की संख्या सबसे अधिक है। सूरीनाम की 2012 की जनगणना के अनुसार हिन्दू धर्म सूरीनाम में 22.3% है तथा इसके अनुयायियों की संख्या तीव्रता से बढ़ती जा रही है। सूरीनाम में हिन्दू धर्म के अंतर्गत सनातन धर्म (18%), आर्य समाज (3.1%) और हिन्दू धर्म के अन्य रूपों (1.2%) के अनुयायी मौजूद हैं। सनातन धर्म ब्राह्मण पुजारियों और विष्णु और उनके अवतारों जैसे शास्त्रीय हिंदू देवताओं, और साथ ही शिव और देवी की छवि आधारित भक्ति पूजा की केंद्रीय अनुष्ठान भूमिका पर ज़ोर देता है जबकि आर्य समाज एक सुधारवादी आंदोलन को बढ़ावा देता है जो ब्राह्मणवादी सत्ता और मूर्ति पूजन को अस्वीकार करते हैं। 2012 की जनगणना के अनुसार, सूरीनाम में 1,20,623 हिंदू थे, जो कुल जनसंख्या का 22.3% है। अधिकांश सूरीनामी हिंदू, सरनामी हिंदुस्तानी बोलते हैं, जो भोजपुरी की बोली है।
सूरीनाम और गुयाना दोनों में हिन्दू धर्म की शुरूआत एक साथ ही हुयी थी। 1873 और 1916, के बीच 34,304 ब्रिटिश भारतीय गिरमिटिया मजदूर सूरीनाम पहुंचे, जिनमें से 80% हिंदू थे। इनमें से 21,500 ने भारत लौटने की बजाय वहीं रहने का निर्णय लिया। यह गिरमिटिया मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से थे। डच गुयाना में औपनिवेशिक अधिकारियों ने अपने गिरमिटिया मजदूरों को अपनी धार्मिक गतिविधियों का अनुसरण करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया।
हिंदू धर्म सूरीनाम के समाज को परिभाषित करने में एक प्रभावशाली भूमिका निभाता है क्योंकि सूरीनाम में हिंदू धर्म दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। 1975 में सूरीनाम के स्वतंत्र होने के बाद सूरीनाम की लगभग एक चौथाई आबादी नीदरलैंड चली गई थी। नीदरलैंड जाने वाले लोगों में सबसे बड़ा हिस्सा हिंदुस्तानी हिंदुओं का था। परिणामस्वरूप सूरीनाम के कई उच्च सम्मानित पंडित और अन्य हिंदू बुद्धिजीवी नीदरलैंड में रहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था और संस्कृति के निरंतर विस्तार का प्रभाव सूरीनाम पर भी पड़ा जिस कारण ये दोनों इस प्रकार जुड़े जैसे पहले कभी नहीं जुड़े थे। वर्तमान में सूरीनाम जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुज़र रहा है। आने वाले वर्षों के लिए हिंदू धर्म सूरीनाम के जीवन में एक शक्तिशाली प्रभाव बनायेगा।
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन (ISKCON) जो कि एक कृष्ण आन्दोलन था, के प्रभाव सूरीनाम में भी देखे गए। सूरीनाम जाने वाले पहले कृष्ण भक्त 1980 के दशक की शुरुआत में गुयाना के रास्ते से यहां पहुंचे। सूरीनाम में इस्कॉन का पहला केंद्र लगभग दो दशक पहले स्थापित किया गया था, और सूरीनाम के न्यू निकरी में अभी भी इसका एक सक्रिय प्रचार केन्द्र मौजूद है। सूरीनाम में जन्माष्टमी महोत्सव को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/33SQAfZ
2. https://bit.ly/2NrCV9R
3. https://bit.ly/2TYTUBO
4. https://bit.ly/2zjhWOk
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