भारत पाकिस्तान के मध्य चलने वाले मनमुटाव से लगभग सारा विश्व ही अवगत है। भारत-पाक विभाजन को हुए लगभग 72 साल हो गए हैं, किंतु दोनों के मध्य स्थिति अभी भी यथावत बनी हुयी है जिसका प्रमुख कारण सीमा, संपत्ति और धार्मिक कट्टरता है। विभाजन के दौरान सीमा का निर्धारण मुसलमानों और गैर-मुसलमानों, प्राकृतिक सीमाओं, संचार, जल मार्गों और सिंचाई प्रणालियों के आधार पर किया गया था। भारत-पाक सीमा को रेडक्लीफ (Radcliffe) रेखा से विभाजित कर दिया गया था।
विभाजन ने संपत्ति निर्धारण के विवाद को और अधिक बढ़ा दिया। विभाजन के बाद पाकिस्तान ने स्वयं को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया, जबकि भारत ने स्वयं को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया। जिसके चलते भारत में सभी धर्मों के नागरिकों को समान अधिकार मिल गए। इस दौरान बड़ी संख्या में मुस्लिम भारत में अपनी संपत्ति (1,000 मिलियन) छोड़कर पाकिस्तान चले गए तो वहीं पाकिस्तान से हिन्दू अपनी संपत्ति (5,000 मिलियन) छोड़कर भारत आ गए। इस संपत्ति के निस्तारण के लिए 29 अगस्त 1947 को दोनों के मध्य बातचीत प्रारंभ हुयी। भारत इन संपत्तियों का मुआवज़ा चाहता था, जबकि पाकिस्तान इन्हें बेचना या हस्तांतरित करना चाहता था। अंत में 1954 में, भारत ने संसद में विस्थापित व्यक्ति अधिनियम पारित करके शरणार्थियों के लाभ के लिए खाली संपत्ति का उपयोग करने का फैसला किया। 1956 में, दोनों सरकारों ने खाली बैंक खातों, लॉकरों (Lockers) और सुरक्षित जमा राशियों को स्थानांतरित करने का निर्णय लिया। विभाजन के दौरान भारत के पास 4,000 मिलियन नकद राशि शेष थी, जिसमें से 1,000 मिलियन राशि की मांग पाकिस्तानियों द्वारा की गयी। दोनों के मध्य मध्यस्थता को अपनाते हुए भारत द्वारा पाकिस्तान को 750 मिलियन का भुगतान करने का निर्णय लिया गया। किंतु पाकिस्तान ने विभाजन से पूर्व लिए हुए 300 करोड़ रुपये का ऋण देने से इनकार कर दिया। विदेशी ऋणों से भी पाकिस्तान ने अपना पल्ला झाड़ दिया। यहां से दोनों के मध्य तनावपूर्ण स्थिति प्रारंभ हो गयी।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.