इस वर्ष हम 15 अगस्त को रक्षाबंधन मना रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस के साथ भाई-बहन के प्यार का पर्व भी मनाया जाएगा। रक्षाबंधन का यह पर्व हिंदू श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भाव से मनाते हैं। यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है, पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई की कलाई पर पारंपरिक पवित्र धागा बांधती है और अपने भाई के लंबे जीवन और कल्याण के लिए प्रार्थना करती है। जबकि भाई उसे किसी भी प्रकार की हानि से बचाने का वादा करता है। बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। राखी का यह पर्व विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। तो चलिए आज जानते हैं कि किस प्रकार विभिन्न क्षेत्रों के लोग प्रेम और सुरक्षा के इस पर्व को भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाते हैं।
• भारत के असम और त्रिपुरा जैसे राज्य इस त्यौहार को अधिक उत्साह से मनाते हैं, क्योंकि उन राज्यों में बड़ी संख्या में हिंदू रहते हैं। हालांकि राखी का ये त्यौहार अब हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है। सभी धर्मों के लोग अपने भाई-बहनों की कलाई पर रक्षा का धागा बांधते हैं।
• गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा सहित पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में रक्षाबंधन को नारियाल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार विशेष रूप से मछुआरों के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह समय है जब मानसून समाप्त होने की कगार पर होता है और उफानी समुद्र शांत हो जाता है जिससे मछली पकड़ने की नयी शुरूआत होती है। मछुआरे भगवान वरुण (वर्षा के हिंदू भगवान) को धन्यवाद के रूप में नारियल चढ़ाते हैं।
• गुजरात में इस पर्व को पावित्रोपना कहते हैं। यहां के लोग इस शुभ दिन पर भगवान शिव की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि जो कोई भी इस दिन भगवान शिव की पूजा करता है उसे सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। दूब घास को पंचगव्य (गाय का घी, दूध, दही, मूत्र और गोबर) के मिश्रण में भिगोया जाता है और फिर इस धागे को शिवलिंग के चारों ओर बांध दिया जाता है।
• पश्चिम बंगाल सहित पूर्वी भागों में यह पर्व झूलन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यहां यह त्यौहार राधा और कृष्ण के प्रेम को संदर्भित करता है।
• भारत के दक्षिणी भागों में इस पर्व को अवनि अवित्तम कहा जाता है। इस दिन ब्राह्मण जनेऊ नामक पवित्र धागे को बदलते हैं तथा नये धागे को पवित्र डुबकी लगाने के बाद पहनते हैं। जनेऊ को परिवर्तित करना पापों के प्रायश्चित, महासंकल्प, अच्छाई, शक्ति और प्रतिष्ठा से जीवन जीने की प्रतिज्ञा को संदर्भित करता है। विद्वान इस दिन यजुर्वेद का पाठ पढ़ते हैं।
• मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में रक्षाबंधन कजरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन से गेहूं और जौं की बुवाई का मौसम शुरू हो जाता है। परंपरा के अनुसार केवल वे महिलाएं जिनका पुत्र होता है, इस त्यौहार का अनुष्ठान करती हैं। वे पत्तों से बने एक प्याले में मिट्टी इकट्ठा करती हैं जिसे बाद में घर के एक अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है और फिर सात दिनों तक तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए पूजा की जाती है। परिवार की भलाई और अच्छी फसल के लिए देवी भगवती की प्रार्थना की जाती है।
• जम्मू कश्मीर में इस दिन रंग-बिरंगी पतंग उड़ाकर इस त्यौहार को मनाया जाता है।
• उत्तराखंड में इस दिन पुराना जनेऊ बदलकर नया जनेऊ धारण किया जाता है। कुमांऊ गढ़वाल में इस दिन को जंध्यम पूर्णिमा कहा जाता है।
• ओडिशा में रक्षाबंधन को गाम्हा पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, पालतू गायों और बैल को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। विभिन्न प्रकार की मिठाई और केक (Cake) जिसे पिठा कहा जाता है, को परिवारों, रिश्तेदारों और दोस्तों में वितरित किया जाता है।
यूं तो इस पर्व को लेकर कई किंवदंतियां मौजूद हैं किंतु उनमें से एक किंवदंती महाकाव्य महाभारत की एक घटना को भी संदर्भित करती है। जब शिशुपाल को मारते समय भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लगी तो रानी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की उंगली पर अपनी साड़ी की एक पट्टी बांध दी। फिर श्रावण मास की पूर्णिमा को चौपड़ कार्यक्रम के दौरान जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ तो भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को कभी न खत्म होने वाली साड़ी देकर उसके सम्मान को बरकरार रखा तथा उसकी रक्षा की।
इस पवित्र पर्व को विष कारक, पुण्य प्रदायक, पापनाशक आदि नामों से भी जाना जाता है।
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