इस्लाम धर्म में ईद का विशेष महत्व है, चाहे वह मीठी ईद हो या बकरा ईद। दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता रखती हैं। आज हम बकरा ईद के अवसर पर इसके ऐतिहासिक पहलू पर एक नज़र डालेंगे, जो कि मुख्यतः इब्राहिम और इस्माइल के बलिदान की याद दिलाने के लिए याद किया जाता है। इस घटना के पीछे यहूदी और इस्लाम की अलग-अलग धारणाएं हैं। यहूदियों के अनुसार इब्राहिम ने आइसेक की बलि दी थी जबकि इस्लाम के अनुसार इब्राहिम ने इस्माइल की बलि दी थी। इस घटना को पूर्णतः जानने के लिए जानते हैं इस्माइल और आइसेक के जन्म के विषय में।
इब्राहिम और उनकी पत्नी सारा के विवाह को कई वर्ष हो गए थे, किंतु उनकी कोई संतान न थी। इसलिए सारा के आग्रह पर इब्राहिम और हाजरा (इनकी दासी) का एक पुत्र हुआ जिसका नाम इस्माइल रखा गया। जब इस्माइल का जन्म हुआ, तब इब्राहिम 86 वर्ष के थे। 90 वर्ष की अवस्था में सारा का भी एक पुत्र हुआ जिसका नाम आइसेक रखा गया, जिसकी घोषणा परमेश्वर द्वारा पूर्व में ही कर दी गयी थी। जब इस्माइल और आइसेक बड़े होने लगे तो इस्माइल ने आइसेक का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया। यह बात सारा को पसंद न आयी। उसने इब्राहिम से इस्माइल और उसकी मां को घर से निकालने को कहा। इब्राहिम इस बात से बहुत दुखी हुआ। ईश्वर ने उससे कहा आइसेक को तुम्हारा ही अंश कहा जाएगा तथा वे आइसेक के साथ ही अपनी वाचा स्थापित करेंगे क्योंकि इस्माइल भी इब्राहिम का वंशज था तो उसके लिए एक विशाल राष्ट्र का निर्माण किया जाएगा।
इब्राहिम ने इस्माइल और उसकी माँ को खाना और पानी देकर घर से भेज दिया। हाजरा ने बीयर-शीबा के जंगल में प्रवेश किया, यहां इस्माइल को प्यास लग गयी, वह प्यास से तड़पने लगा। यह देखकर हाजरा परेशान हो गयी, बच्चे की रोने की आवाज़ सुनकर परमेश्वर ने अपने दूत को उनके पास भेजा। परमेश्वर के दूत ने हाजरा से कहा, “उठो और अपने बेटे को अपने हाथ में लो, मैं उसके लिए एक महन राष्ट्र बनाऊंगा”। जब हाजरा की आँखें खुलीं तो सामने एक पानी का कुंआ था, जिससे हाजरा और इस्माइल की जान बची। दोनों जंगल में रहने लगे और इस्माइल महान धनुर्धर बना। बाद में इस्माइल और उसकी मां मिश्र में आकर बस गए। वहीं से इस्माइल की शादी हुयी तथा इस्लाम धर्म की शुरूआत हुयी। इस्लाम के अनुसार इस्माइल इब्राहिम के पुत्र थे तथा इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि दी थी। इस्लाम में इस्माइल को मुसलमानों द्वारा कई प्रमुख अरब जनजातियों के पूर्वज और मुहम्मद के पूर्वज के रूप में मान्यता प्राप्त है।
जबकि यहूदी इस्माइल को दुष्ट मानते हैं तथा आइसेक को ही इब्राहिम का उत्तराधिकारी स्वीकारते हैं। जिस कारण दोनों के मध्य मतभेद बना रहता है।
हीब्रू बाइबिल (Hebrew Bible) के अनुसार इब्राहिम ईश्वर की आज्ञा का पालन करने हेतु आइसेक की बलि देने को तैयार हो जाते हैं किंतु ईश्वर का दूत उन्हें ऐसा करने से रोक देता है और वे आइसेक की जगह एक भेड़ की बलि दे देते हैं।
यहूदियों के अनुसार इब्राहिम से अपने पुत्र की बलि मांगने के पीछे ईश्वर का लक्ष्य उसकी अपने प्रति श्रद्धा को देखना था तथा दुनिया को ये साबित करना था कि इब्राहिम एक सच्चा भक्त है जो अपने ईश्वर के हर निर्देश का पालन करने को तैयार है।
इसाई धर्म के पुराने नियम के अनुसार जब इब्राहिम का परीक्षण किया गया तो वह ईश्वर को भेंट स्वरूप अपना पुत्र देने को तैयार हो गया। क्योंकि वह जानता था कि ईश्वर कभी किसी बुरी बात की परीक्षा नहीं लेते। इब्राहिम का विश्वास था कि ईश्वर आइसेक को मृत से भी जीवित करने में सक्षम हैं।
इस्लामिक स्रोतों के अनुसार इब्राहिम ने एक भयानक सपना देखा जिसमें उसने अपने बेटे की बलि दे दी है। वह यही सपना बार-बार देखने लगता है तो वह समझ जाता है कि यह ईश्वर है तो वह इसे ईश्वर की आज्ञा समझकर अपने सबसे प्रिय बेटे की बलि देने को तैयार हो जाता है। वह इस्माइल को लेकर आराफत की पहाडि़यों में जाता है तथा वहां जाकर उसे ईश्वर की इच्छा बताता है। इस्माइल ईश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हो जाता है। पुत्र के दर्द को महसूस न करने के लिए इब्राहिम अपनी आंख पर भी पट्टी बांध देता है। और ईश्वर की आज्ञा अनुसार उस पर चाकू चला देता है जब वह अपनी आंखे खोलता है तो देखता है कि उसके मृत बेटे की जगह वहां पर एक मृत भेड़ पड़ी है। यह देखकर इब्राहिम विचलित हो जाता है, वह सोचता है कि मैंने इश्वर की आज्ञा की अवहेलना की है। तभी उसे आवाज़ आती है कि ईश्वर सदैव अपने अनुयायियों की देखरेख करता है। इब्राहिम और ईस्माइल दोनों अपनी कठिन परीक्षा में सफल हुए। प्रत्येक वर्ष हज यात्रा के दौरान इब्राहिम और ईस्माइल के इस बलिदान को याद करने के लिए हजारों लोग मीना और आराफात का दौरा करते हैं तथा पशु बलि देते हैं।
जब पुत्र बलि की बात की जाती है, तो हरीश्चंद्र के बलिदान को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। राजा हरीश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे, जिन्हें बड़े कष्टों के बाद पुत्र की प्राप्ति हुयी। इन्होंने अपने दानी स्वभाव के कारण विश्वामित्र जी को अपनी सम्पूर्ण संपत्ति सौंप दी। राजा हरीश्चन्द्र ने सत्य के मार्ग पर चलने के लिये अपनी पत्नी (तारा) और पुत्र (रोहित) के साथ खुद को बेच दिया था तथा तीनों गरीबी में जीवन व्यतीत करने लगे। इसी बीच उनके पुत्र को सांप ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। हरीश्चन्द्र शमशान से कर एकत्रिक करके उसे अपने मालिक को सौंपने का कार्य करते थे। जब उनकी पत्नी अपने पुत्र की अंतिम क्रिया के लिए शमशान आयी तो उन्होंने उससे भी कर मांगा, तो तारा ने अपनी साड़ी फाड़कर कर चुकाया। तभी आकाशवाणी हुयी और राजा की ली जाने वाली दान परीक्षा तथा कर्तव्यों के प्रति उनकी ज़िम्मेदारी पूरी हो गयी।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Ishmael
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Binding_of_Isaac
3. https://www.al-islam.org/stories-prophets-tawhid-institute/sacrifice-prophet-ibrahim
4. https://www.chabad.org/library/article_cdo/aid/246646/jewish/Isaac-Ishmael.htm
5. https://www.cbc.ca/kidscbc2/the-feed/learn-all-about-the-muslim-festival-eid-al-adha
चित्र सन्दर्भ:
1. https://www.flickr.com/photos/fikoo/6316322910
2. https://www.earlychurchofjesus.org/human_sacrifice.htm
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