श्रावण का महीना पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित रहता है। इस माह में विधि पूर्वक शिवजी की आराधना करने से, मनुष्य को शुभ फल भी प्राप्त होते हैं।
श्रावण में भगवान शिव के 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्त्व है। इसलिए इस माह में, खासतौर पर सोमवार के दिन 'रुद्राभिषेक' करने से शिव भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है । अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी की पुजा करते हैं और अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रूप में समर्पित किया जाता है। श्रावण के महीने में भक्त, गंगा नदी से पवित्र जल या अन्य नदियों के जल को कांवड़ में भरकर मीलों की दूरी तय करके लाते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। कलयुग में यह भी एक प्रकार की तपस्या और बलिदान ही है, जिसके द्वारा देवो के देव महादेव को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है।
श्रावण के महीने से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं। उनमे से एक कथा के मुताबिक जब सनतकुमारों ने भगवान महादेव से श्रावण महिना प्रिय होने का कारण पूछा तब भोलेनाथ ने बताया की माता पार्वती ने अपने युवावस्था के श्रावण महीने मे निराहार रहकर शिव जी को पाने के लिए कठोर तप किया जिससे शिव जी प्रसन्न हुए और उन्होने माता पार्वती से विवाह किया। कुछ कथाओं में वर्णन आता है कि इसी श्रावण महीने में समुद्र मंथन हुआ था। मंथन के बाद जो विष निकला, उसे भगवान शिव ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी।
किन्तु कहानी चाहे जो भी हो, श्रावण महीना पूरी तरह से भगवान महादेव की आराधना का महीना माना जाता है। यदि एक व्यक्ति पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करता है, तो वह सभी प्रकार के दुखों और चिंताओं से मुक्ति प्राप्त करता है।
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