चंद्रमा हमेशा से ही हमारी कल्पनाओं और सपनों का हिस्सा रहा है। 1969 को जब मानव चंद्रमा पर पहुंचा तो उससे पहले चांद पर कदम रखना एक स्वप्न के समान था। इस स्वप्न के साकार होने के साथ चंद्रमा की उत्पत्ति के संदर्भ में भी कई सारे तथ्य सामने आये। हालांकि उत्पत्ति के संदर्भ में तथ्य पहले भी दिये गये। किंतु इन तथ्यों को पूर्ण रूप से ठीक नहीं कहा जा सकता था। तो आइये सबसे पहले जानते हैं कि चंद्रमा की उत्पत्ति के संदर्भ में पूर्व में कौन-कौन से सिद्धांत या तथ्य दिये गये।
1600 के दशक में जब गैलीलियो ने दूरबीन की खोज की तो इसके माध्यम से उन्होंने चंद्रमा के परिदृश्य को देखा और अनुमान लगाया गया कि चंद्रमा पृथ्वी के ही समान है जो कि पहाड़ों और मैदानों से मिलकर बना एक बीहड़ स्थान है। यह पहला संकेत था कि पृथ्वी और चंद्रमा किस तरह उनका निर्माण एक साथ हुआ।
1800 के दशक में सुझाव दिया गया कि जब पृथ्वी अपने विकास के प्रारम्भिक चरण में थी तो यह बहुत तेजी से घुमती थी जिसके परिणामस्वरूप इसके एक हिस्से ने अंतरिक्ष में उड़ान भरी और चंद्रमा का गठन किया। इसकी उत्पत्ति को प्रशांत महासागर से भी जोड़ा गया है।
एक अन्य सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी की सतह से करीब 2900 किलोमीटर नीचे एक नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप पृथ्वी की धूल और पपड़ी अंतरिक्ष में उड़ी और इस मलबे ने इकट्ठा होकर चांद को जन्म दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद चंद्रमा की उत्पत्ति के संदर्भ में पूरी तरह से अलग विचार उजागर हुए। रसायनज्ञ हेरोल्ड उरे ने तथ्य दिया कि चंद्रमा आकाशगंगा के दूसरे हिस्से से आया था और जब यह पृथ्वी से होकर गुजर रहा था तो इसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा खींचा गया। इस सिद्धांत को कैप्चर सिद्धांत (capture theory) कहा गया जिसे उस समय बिल्कुल सही सिद्धांत माना गया। किंतु कुछ वैज्ञानिक इससे संतुष्ट न थे। उनके अनुसार अपनी कक्षा को बाधित किये बिना पृथ्वी कैसे चंद्रमा को अपनी ओर खींच सकती थी? हालांकि उन्होंने यह भी सोचा कि दोनों शायद आपस में टकरा गए होंगे।
चंद्रमा की उत्पत्ति के संदर्भ में अभिवृद्धि सिद्धांत भी दिया गया जिसके अनुसार पृथ्वी और चंद्रमा का निर्माण एक साथ हुआ। यह सिद्धांत बहुत जल्द ही नकार दिया गया था क्योंकि यह उस गति की व्याख्या नहीं कर सका जिसके साथ चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
इस प्रकार 1960 के दशक तक यूरे के कैप्चर सिद्धांत को ही प्रमुख माना जाता रहा। किंतु जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने चंद्रमा पर अपना मानवयुक्त मिशन भेजा तो इस मिशन के द्वारा लाये गये चट्टानों के नमूनों ने सभी सिद्धांतों का विखंडन कर दिया। दरसल चंद्र चट्टान के नमूनों से पता चला कि चंद्रमा प्रशांत महासागर की तुलना में बहुत पुराना था अतः प्रशांत महासागर से इसकी उत्पत्ति होना असम्भव था। नमूनों के विश्लेषण में चंद्रमा और पृथ्वी की चट्टानों की रासायनिक संरचना लगभग समान पायी गयी। चट्टानों के नमूनों से यह भी पता चला कि चंद्रमा सौर मंडल के अन्य पिंडों की तुलना में लगभग 29 लाख वर्ष बाद बना।
वर्तमान में पृथ्वी की उत्पत्ति के संदर्भ में विशाल-प्रभाव परिकल्पना (giant-impact hypothesis) को वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकार किया गया है जिसके अनुसार लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले एक विशालकाय पिण्ड पृथ्वी के साथ जा टकराया। यह पिण्ड मंगल के आकार का था जिसे वैज्ञानिकों ने ‘थिया’ (Theia) नाम दिया। टकराव के कारण पृथ्वी का कुछ मलवा उससे दूर जा गिरा और इन मलवों से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई। इस परिकल्पना को वैज्ञानिकों द्वारा काफी सराहा गया क्योंकि चंद्रमा से लाये गये नमूने काफी हद तक इस सिद्धांत की पुष्टि कर रहे थे जिनमें से कुछ निम्न हैं:
• पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा में समान झुकाव है।
• चंद्रमा के नमूने बताते हैं कि चंद्रमा की सतह कभी पिघली हुई थी।
• चंद्रमा में एक अपेक्षाकृत छोटा लौह कोर (iron core) है।
• पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा का घनत्व कम है।
• विशालकाय टकराव सौर मंडल के गठन के प्रमुख सिद्धांतों के अनुरूप हैं।
• चंद्रमा और स्थलीय चट्टान के स्थिर आइसोटोप (Isotope) का अनुपात समान हैं जिसका अर्थ है कि दोनों की उत्पत्ति भी समान है अर्थात चंद्रमा पृथ्वी का ही एक भाग है।
इस प्रकार इस परिकल्पना से अनुमान लगाया जा सकता है कि चंद्रमा, पृथ्वी का ही एक भाग है।
संदर्भ:
1. https://bbc.in/1eFxNK2
2. https://bit.ly/29gsa7l
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2JXW3dr
2. https://bit.ly/2LIXSwP
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