भारतीय दर्शन और गणित का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन है और इसके प्रभावों को अन्य कई स्थानों पर देखा जाता है। इन्ही में से एक है पाइथागोरस प्रमेय। पाइथागोरस प्रमेय को बौधायन प्रमेय के नाम से जाना जाता है। यह एक त्रिभुज की तीनों भुजाओं के बीच एक सम्बन्ध बताता है। जैसे c2 = a2 + b2
इस सूत्र को यदि देखा जाए तो इसमें c समकोण की लम्बाई है और a तथा b त्रिकोण की अन्य दो भुजाओं की लम्बाई है। यदि देखा जाए तो सुकरात के पहले का ग्रीस (यूनान) 5वीं और 6ठी शताब्दी के हेराक्लायटस, एम्पेडोक्लेस, ज़ेनोफेन्स और पाइथागोरस आदि के प्रमेयों में सांख्य, जैन और बौद्ध के विचारों की झलक प्राप्त होती है। प्रस्तुत लेख पाइथागोरस प्रमेय और उसके भारत के सम्बन्ध पर आधारित है तो यह प्रश्न उठना कदाचित लाज़मी है कि क्या पाइथागोरस कभी भारत आये थे? हालांकि इस विषय पर कोई मज़बूत तथ्य मौजूद नहीं हैं जो यह सिद्ध कर सकें कि पाइथागोरस भारत आया था लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि लेखों में जो तथ्य प्रस्तुत हैं उनका एक गहरा सम्बन्ध भारतीय सांख्य और दर्शन से है।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्लिखित हैं जिनके अनुसार यह कहा जा सकता है कि वे भारत आये हुए थे-
1. आग, हवा, पानी और पृथ्वी का समन्वय- यह प्राचीन भारत के न्यायिका दर्शन से आया है जिसको वेदों से भी पुराना माना जा सकता है।
2. मानव के तीन वर्ग जो कि ज्ञान, सम्मान और मुनाफे की शपथ लेते हैं जो कि ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्य की ओर इशारा करते हैं।
3. पुनर्जन्म- जो कि भारतीय परंपरा में माना जाने वाला एक महत्वपूर्ण अंग है।
4. पाइथागोरस ने ब्रह्माण्ड से वायु लेने की बात की है जो कि एक असीमित ऊर्जा है। ये वायु भारतीय दर्शन के ‘प्राण’ से काफी मिलती जुलती है।
इन सभी चार बिन्दुओं से एक प्रमाण मिलता है कि ग्रीस (यूनान) के दर्शन में भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण रूप देखा जा सकता है। पाइथागोरस प्रमेय को प्राचीन भारतीय ग्रन्थ बौधायन सुल्बसूत्र के रूप में देखा जाता है जिसका कारण यह है कि पाइथागोरस प्रमेय बौधायन सुल्ब्सूत्र में दिया गया है। यदि बौधायन सूत्र की बात की जाए तो इसकी तिथि 8वीं शताब्दी ईसापूर्व से दूसरी शताब्दी ईसापूर्व मानी जा सकती है। यदि पाइथागोरसवाद के इतिहास पर नज़र डाली जाये तो यह 6ठी शताब्दी ईसापूर्व की मानी जाती है। यह पाइथागोरस के शिक्षाओं और उनके मानने वालों के आधार पर स्थापित किया गया था। ऐतिहासिकता की बात करें तो बेबीलोन की सभ्यता से प्राप्त प्लिम्प्टन 322 टेबलेट (Plimpton 322 Tablet) में पाइथागोरियन ट्रिपल (Triple) पाया जाता है। पाइथागोरस को संगीत के अन्दर के अंतराल का भी अन्वेषणकर्ता माना जाता है और उन्हें एकतंत्री वाद्ययंत्र का भी जनक कहा जाता है।
लेख के अनुसार अब यदि भारतीय इतिहास और पाइथागोरस के विषय में पढ़ते हैं तो यह पता चलता है कि पाइथागोरस प्रमेय संस्कृत के श्लोक स्त्रुति में मौखिक रूप में प्रचलित था। एस. जी. दन्नी के अनुसार यह विधा सिन्धु-सरस्वती सभ्यता, प्राचीन मिश्र, और सुमेर साम्राज्य में भी प्रचलित थी। इसकी जानकारी बेबीलोन की सभ्यता से प्राप्त प्लिम्प्टन 322 टेबलेट से हो जाती है जिसकी तिथि 1850 ईसापूर्व तक जाती है। बौधायन सुल्बसूत्र में यह बड़ी सफाई के साथ प्रस्तुत किया गया है। भारतीय रस्सी के जादू खेल में पाइथागोरियन ट्रिपल को साफ़ तौर पर देखा जाता है।
बौधायन दो के वर्गमूल के लिए एक सूत्र देता है-
ऐसे ही सामानांतर सूत्र पुराने बेबीलोन काल के मेसोपोटामिया के टेबलेट से प्राप्त होता है जिसकी तिथि 1900 से 1600 ईसापूर्व निर्धारित की गयी है।
बुद्ध और जैन जो कि 6ठी शताब्दी ईसापूर्व से सम्बन्ध रखते हैं उनका एक बड़ा प्रभाव पाइथागोरस पर दिखाई देता है, जिस प्रकार से वह एक पैर पर खड़े होने के योग को प्रदर्शित करता है वैसा ही जैनधर्म या आजीविक में प्रदर्शित होता है। आजीविक जैन धर्म के शुरूआती प्रकार को कहा जाता है। इन सभी तथ्यों के अनुसार हम यह कह सकते हैं कि पाइथागोरस का भारतीय दर्शन और गणित से कुछ सम्बन्ध अवश्य था अन्यथा इतनी बड़ी संख्या में समानताएं मिलना कदाचित संभव नहीं है।
संदर्भ:
1. https://www.roger-pearse.com/weblog/2009/11/17/pythagoras-in-india/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Apuleius
3. http://www.angelfire.com/md2/timewarp/historyofphilosophy.html
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Pythagoreanism
5. https://bit.ly/32thg65
6. https://www.normalesup.org/~adanchin/causeries/Visionaries.html
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