आज पर्यावरण सुरक्षा विश्व के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बनता जा रहा है। जगह-जगह पर्यावरण संरक्षण की बात की जा रही है। पर्यावरण को हानि पहुंचाने में कृत्रिम संसाधनों का सबसे बड़ा योगदान रहा है। जिस कारण अब लोग कृत्रिम से प्राकृतिक संसाधनों की ओर रूख कर रहे हैं। ऐसे में भारत के पुराने उद्योगों में से एक जूट उद्योग को एक बार फिर से उभरने का अवसर मिल गया है, इसके बहुमुखी लाभों के कारण लोग इसे पर्यावरण संरक्षण हेतु एक आदर्श विकल्प के रूप में देख रहे हैं।
वास्तव में अब तक जूट से अधिकांशतः पैकेजिंग के बैग (Packaging Bag) तैयार किए जाते थे। किंतु पटसन भू वस्त्रों (जूट जियोटेक्सटाइल (Jute geotextiles-JGT)) के प्राकृतिक लाभों को देखते हुए अब बहुमुखी क्षेत्रों में इसका उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा है। पिछले कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering), मिट्टी का कटाव नियंत्रण और नदी के किनारे की सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में पटसन भू-वस्त्र कृत्रिम भू-वस्त्र की तुलना में ज्यादा उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। JGT ‘गीली घास’ के समान आर्द्रता को बनाए रखता है तथा विभिन्न वनस्पतियों के पुनः उत्पादन और वृद्धि में सहायक सिद्ध होता है। इसके साथ ही यह वनों के अभाव में कमज़ोर पड़ी मृदा को सामर्थ्य प्रदान करता है।
पटसन भू वस्त्रों का तकनीकी लाभ और कम उत्पादन लागत होने के बावजूद भी कुल भू-वस्त्र उद्योग में इसका 1% से भी कम उपयोग किया जाता है। सिविल इंजीनियरिंग अनुप्रयोगों के लिए पटसन भू-वस्त्र का तकनीकी मूल्यांकन किया गया जिसमें पाया गया कि कृत्रिम भू-वस्त्र की बजाय पटसन भू-वस्त्र का उपयोग करके लागत पर 35% -50% तक का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
इसके निर्माण की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है:
सर्वप्रथम जूट के तंतुओं को पायसन (तेल और पानी का मिश्रण) के माध्यम से नरम और लचीला बनाया जाता है, जिसके लिए सॉफ़्नर मशीन (Softener machine) का उपयोग किया जाता है। इन तंतुओं के निचले सिरे से कठोर हिस्सा अलग करने के बाद इसे 2-3 बार कार्डिंग (Carding) के माध्यम से संशोधित किया जाता है। जिससे उलझे अव्यवस्थित तंतु, सुलझे हुए टुकड़ों में परिवर्तित हो जाते हैं। इन्हें फिर पतला और समांतर किया जाता है। कताई फ्रेम (Frame) के माध्यम से इन टुकड़ों को अलग-अलग धागों में परिवर्तित किया जाता है। अब इन धागों की एक रील (Reel) तैयार की जाती है, अंततः बीमिंग मशीन (Beam machine) में ताना धागे तथा कॉप वाइंडिंग मशीन (Cop Winding Machine) में बाना धागे तैयार किए जाते हैं। पटसन भू-वस्त्र के निर्माण हेतु करघे में ताना-बाना धागों को बुना जाता है।
पटसन भू-वस्त्र दो प्रकार के होते हैं, बुने हुए और बिना बुने हुए। बिना बुने हुए वस्त्रों को अपशिष्ट जूट के टुकड़े से तैयार किया जाता है। इन्हें गार्नेटिंग कम क्रॉस लैपिंग मशीन (Garneting cum cross lapping machine) में डाला जाता है, जहां इन्हें तंतुओं में विभाजित कर दिया जाता है। फिर जूट से तैयार वस्तुओं को मज़बूती प्रदान करने के लिए इन्हें इनमें जोड़ दिया जाता है। इसकी संपूर्ण प्रक्रिया को इस चार्ट में दर्शाया गया हैं:
इसकी पर्यावरण अनुकूलता देखते हुए इसके उपयोग और उत्पदकता को बढ़ाने की सख्त आवश्यकता है। इसके साथ ही जूट के उत्पादन में वृद्धि कृषकों की आय और इसके उद्यमियों के व्यवसाय को बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगी।
संदर्भ:
1. http://www.indiantextilejournal.com/articles/FAdetails.asp?id=4364
2. https://jute.com/web/guest/products-suppliers/jute-geo-textile
3. http://dda.org.in/cee/IRC/IRC6.pdf
4. https://bit.ly/2LqKZGZ
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.